उनकी ‘सज्जनता’ की परतों में छिपे हैं स्त्री के कई ज़ख़्म

उनकी ‘सज्जनता’ की परतों में छिपे हैं स्त्री के कई ज़ख़्म

वर्षा निगम

बिहार के मशहूर चित्रकार राजेंद्र प्रसाद गुप्ता की कृति।

पिछले दिनों मेरी मुलाकात एक सज्जन से हुई। सज्जन, इतने सज्जन की क्या कहूं। मुझे लगता है कि रामायण के राम से अगर सीता कहती कि वो उन सज्जन के साथ इतने साल रहकर आई हैं, तो राम भी सीता की अग्निपरीक्षाा नहीं लेते। उन्हें अपनी बीवी पर कितना यकीन था या है ये तो नहीं पता लेकिन इन सज्जन पर ज़रुर रहता। अब आप समझ ही सकते हैं कि वो शख्स कितने सज्जन हैं। सज्जन ही नहीं काबिल-ए-तारीफ भी। जैसे जागरुक नागरिक, मददगार इंसान, सबसे अच्छे बेटे, बेस्ट पापा, बेस्ट पति और भी वगैरह-वगैरह, ऐसा लगता है कि परफेक्शन का क्रेश कोर्स करके पैदा हुए हैं।

कभी-कभी मन में आता था कि आखिर कोई इतना परफेक्ट कैसे हो सकता है। लेकिन उनके अच्छेपन की इतनी मिसालें हैं ना कि कभी हिम्मत ही नहीं हुई, कि इस बारे में किसी से कुछ बात भी की जा सके। पिछले दिनों एक प्रोजेक्ट पर साथ काम करना हुआ। बातों -बातों में कई बातें ऐसी सामने आईं, जिसने मुझे हैरान तो नहीं किया लेकिन हां सजग जरुर कर दिया। अरे भई, पता चला कि जिस तरह तकनीक अपडेट होती है ना, उसी तरह इंसान भी वक्त के साथ अपडेट होता है।
अरे, अब ये सार्वजनिक जगह पर पत्नी को डांटना, अपमानित करना, बच्चों को लताड़ना, ये सब पुराने तरीके हो गए हैं। नया तरीका इमेज मेकिंग का है। आप बीवी को पूरी छूट दो, सबके सामने कहो, ये जो करना चाहे करे, मैंने कहां रोका है। लेकिन जब भी उसे कुछ करने का मन हो, आप या तो ऑफिस चले जाओ या जरुरी काम निकाल लो। बीवी भी तो समझेगी ना कि पति ऐसा नहीं है, बस वक्त की कमी है।

बीवी जब सबके सामने बात करे तो ध्यान से सुनो, लेकिन जैसे ही अकेले हो,कान पर जूं ना रेंगे, क्या फर्क पड़ता है। उस वक्त आप पत्नी को जोर से लतिया भी दो तो क्या जाता है, आखिर किसने देखा, जो आपकी इमेज पर फर्क पड़ेगा। उफ्फ, इन औरतों की तो ना रोज की किटकिट है। एक बात को टेप-रिकॉर्डर की तरह घुमाती रहती हैं। ये बात जब मैंने सुनी तो यकीन ही नहीं हुआ कि ये वो सज्जन कह रहे हैं, जो इस बात के लिए ही मशहूर हैं कि अपने परिवार का कितना ख्याल रखते हैं। मैंने सोचा,अब भई जब एक बार में बीवी की बात ध्यान से नहीं सुनोगे, तो बार बार तो कहना ही पड़ेगा ना। लेकिन बॉस की सुनें तो फायदा होता है, बीवी की कोई बात जब उन्हें नई लगेगी, तब ध्यान दे दिया जाएगा।

पत्नी से पूरा अटेंशन चाहिए लेकिन जब पत्नी कुछ कहे तो साथ-साथ काम निपटाते रहना चाहिए। वक्त का सही इस्तेमाल करना ही तो इन्हें परफेक्ट बनाता है। खैर, कई काम एक साथ निपटाना, सज्जन की खासियत है। पत्नी पूरी तरह आज़ाद है। कहीं भी आए-जाए, बस हाँ, ये ध्यान रखे कि पति और बच्चे कब घर लौटते हैं, उस हिसाब से घर में ही रहे। नौकरी, अरे प्रगतिशील समाज में नौकरी से ज़्यादा ज़रुरी है खुद का विकास। औरतों को आत्मनिर्भर होना चाहिए ही, लेकिन ये निर्भरता का आत्म से कोई लेना-देना नहीं।

जनाब कहते हैं हफ्ते में जब-जब बीवी पर आत्मनिर्भर होने का भूत सवार होता है, मैं कुछ आइडिया उनके सामने लाकर रख देता हूं, मेरा काम खत्म। बस फिर कुछ कहने की कोशिश भी करे अगर पत्नी, तो मेरे पास तो जवाब है ना कि मैं तो चाहता हूं तुम कुछ करो, पर तुम ही नहीं कर पा रही। कोई बात नहीं, वक्त आएगा, मौका आएगा, इंतज़ार करो। ये बातें सुनकर हर सभ्य आदमी सज्जन आदमी का प्रशंसक बन जाता है। लेकिन सोने के पिंजरे में रहने वाली चिड़िया का मन कौन जाने, जो ऐसे मायाजाल से घिरी है कि कोई देख भी नहीं पा रहा कि पिंजरा कहां से शुरु है और उसकी सीमा क्या है। पिंजरा है ही नहीं, पंख भी सभी को दिखाई दे रहे हैं लेकिन पांव में पड़ी वो जंजीरें नहीं, जो ना मन बांध पा रही हैं, ना ही उड़ ही जाने दे रही हैं।

जब सज्जन साहब की सज्जनता का आईना टूटा तो मुझे उनके ढोंग पर बड़ा गुस्सा आया। लेकन कुछ हद तक गुस्सा उनकी पत्नी पर भी आया। अरे, पढ़ी-लिखी है, जीवन में बहुत कुछ कर चुकी है, फिर क्यों इस माहौल में जी रही है। एक दिन मैंने पूछ ही लिया। जवाब मिला, वो जानती है कि वो सब कर सकती हैं, समाज से लड़ना फिर भी आसान है लेकिन घर की लड़ाई बहुत मुश्किल होती है। वो भी तब जब समाज तो क्या आपका परिवार आपका साथ देने के बजाय, सज्जनता की मिसालें देने में लगा हो।

किससे कहूं कि क्या तकलीफ है। कभी कभी खुद को कोसती हूं क्यों नहीं हो जाती उन औरतों की तरह जिन्हें परवाह नहीं किसी बात की, जिन्हें इस बात की आदत है कि पति के पैसे पर उनका पूरा हक़ है। मुझे बहुत अच्छी लगती हैं वो औरतें तो किटी पार्टी के लिए हर महीने नई ड्रेस लेती हैं, खुद पर जमकर पैसा लुटाती हैं। मुझे किसी बात की कमी नहीं, लेकिन मन का ये जो कीड़ा है ना, अंदर ही अंदर कुरेदता रहता है, कुछ करने को, सोने नहीं देता। कोई नहीं वक्त का इंतज़ार है बस।

सज्जन की पत्नी की गहरी सांस और चेहरे पर आई हल्की मुस्कान, उन्हें बहुत सुंदर बनाती है, आज जाना ये नया मेकअप है, जो अपडेटेड तरीका है, जख्मों को छिपाने का।


वर्षा निगम। इंदौर की मूल निवासी वर्षा निगम इन दिनों एनसीआर में रहती हैं। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की शिक्षा हासिल की। सहारा चैनल के साथ लंबी पारी। रंगकर्म और साहित्य में गहरी अभिरुचि।

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