पहाड़ के खिलाड़ियों के लिए खुशखबरी

पहाड़ के खिलाड़ियों के लिए खुशखबरी

बीडी असनोड़ा

उत्तराखंड को बीसीसीआई की मान्यता मिल गई है। खुशी के साथ बहुत भावुक करने वाला क्षण है। 9 नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड बना तो राज्य की अपनी टीम बनेगी ये सोचकर हम रोमांचित होते थे, लेकिन मान्यता मिलने में 19 साल लग गए। इसमें दोष राज्य की आपस में झगड़ती क्रिकेट एसोसिएशनों का ही था। बीसीसीआई तो शुरू से ही तैयार बैठी थी कि आप एक हो जाइए हम मान्यता दे देते हैं। खैर… देर आए, दुरुस्त आए।

अब उत्तराखंड के क्रिकेट प्रशासकों पर है कि वो राज्य के क्रिकेट को कितना ऊपर उठा पाते हैं। ऐसा न हो कि उत्तराखंड का क्रिकेट सिर्फ देहरादून तक ही सिमट कर रह जाए। खेल की असली प्रतिभाएं तो पहाड़ों में हैं। हालांकि वहां मैदान नहीं हैं। खेतों में क्रिकेट खेलकर खिलाड़ी अपने हुनर को मांजते हैं। राज्य के 9 जिले ठेठ पहाड़ी हैं, देहरादून और नैनीताल का बड़ा हिस्सा पहाड़ी है, लेकिन यहां के युवाओं में आपको खेल के लिए भरपूर जोश-जुनून-जुझारूपन और जन्मजात प्रतिभा मिलेगी। प्रकृति ने उन्हें मजबूत फेफड़े दिए हैं। पहाड़ की कठिन परिस्थितियों ने उन्हें लड़ाका बनाया है। पहाड़ चढ़ते-उतरते स्टेमिना अपने आप आ जाती है। मेहनत में उनका कोई सानी नहीं है, ओलंपियन और भारतीय एथलेटिक्स टीम के कोच सुरेंद्र सिंह भंडारी का उदाहरण सबके सामने है। कैसे एक पिछड़े गांव के युवा ने ओलंपिक तक का सफर तय किया। वो भी तब जब उनके गांव से सड़क करीब 12 किलोमीटर दूर थी। मैराथन धावक नितेंद्र सिंह रावत गरुड़ की पगडंडियों पर दौड़कर ओलंपिक में जलवा दिखाने रियो-डि-जिनेरो पहुंचे। मनीष रावत चमोली के संकरे और खतरनाक रास्तों पर भागकर ओलंपिक में दौड़े।

 क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड को उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना चाहिए। यहां से उन्हें अच्छे तेज गति के गेंदबाज, बड़े शॉट लगाने वाले बल्लेबाज और बेहतरीन विकेट कीपर मिलेंगे। पहाड़ों में खेतों में जब क्रिकेट खेली जाती है तो न तो पैड होते हैं, न ग्लब्ज, विकेट कीपर अपने पैर से गेंद रोकता है, बिना ग्लब्ज के हाथ से गेंद पकड़ता है, पैर से गेंद रोकने पर उसे गेंद की लाइन के पीछे आना होता है। इससे कोच को विकेट कीपर की गेंद के साथ पोजीशन के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बस उसकी स्किल को निखारना होगा।

पहाड़ में जो गेंदबाज होते हैं उनकी रफ्तार प्राकृतिक रूप से 130-135 किलोमीटर प्रति घंटा से ऊपर ही होती है। बस उन्हें एक गेंदबाज की फिटनेस, सधा हुआ रनअप और फॉलोथ्रू के बारे में सिखाना होगा ।

खेतों में काम करने, जंगल से लकड़ी काटने, भारी सामान उठाकर मीलों पैदल चलने और तेज बहाव वाली नदियों में तैरने से बल्लेबाज की कलाई और कंधे मजबूत होते हैं। इसीलिए पहाड़ में ज्यादातर बल्लेबाज बिग हिटर होते हैं। ऐसे बल्लेबाजों को 45 डिग्री एंगल पर हवाई शॉट खेलना सिखाकर निखारा जा सकता है। पहाड़ के खिलाड़ियों का सबसे मजबूत पक्ष उनकी फील्डिंग होती है। खेतों में कूदते फांदते खिलाड़ियों को जब विलियर्ड्स की टेबल जैसा घास से भरा मैदान मिलेगा तो उनकी गेंद पकड़ने के लिए डाइब देखने लायक होगी। अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों से सीखें

 क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड को घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों और उनकी टीमों की गतिविधिओं पर बारीक नजर रखने की जरूरत है। गुजरात, कर्नाटक, मुंबई, दिल्ली, बड़ौदा, पश्चिम बंगाल, पंजाब और सौराष्ट्र की टीमें घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करती रही हैं। इनसे क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड बहुत कुछ सीख सकता है और अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन को निखार सकता है, लेकिन जिस टीम से सबसे अच्छा सीखा जा सकता है वो विदर्भ की टीम है। जब से चंद्रकांत पंडित विदर्भ के कोच बने इस टीम ने लगातार दो बार रणजी ट्रॉफी जीती है, खिलाड़ियों से अगर आप पूछेंगे तो विदर्भ की सफलता का सूत्र आसानी से आपको पता चल जाएगा। पिछला रणजी सीजन खत्म होने के बाद जब बाकी टीमें आराम करने चली गई थीं, तब विदर्भ ने इस बार के रणजी सीजन के लिए कैंप लगा दिया था। जब तक बाकी टीमें रणजी ट्रॉफी के लिए वॉर्म करती हैं, विदर्भ के खिलाफ मैच फिट हो चुके होते हैं। यही प्रोफेशनलिज्म उत्तराखंड को अपनाने की जरूरत है। सबसे जरूरी राज्य में तीनों फॉर्मेट टेस्ट, वनडे और टी-20 की कई प्रतियोगिताएं रणजी सीजन से पहले आयोजित करनी होंगी। इन प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन के आधार पर टीमों का चयन हो।

  उत्तराखंड के खिलाड़ियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। मनीष पांडे, ऋषभ पंत, पवन नेगी, पुनीत बिष्ट, रॉबिन बिष्ट, सुमित नरवाल, पवन सुयाल और अभिमन्यु ईश्वरन जैसे खिलाड़ियों ने राज्य की टीम नहीं होने के कारण दूसरे राज्यों के लिए क्रिकेट खेली। इनमें से मनीष पांडे, ऋषभ पंत और पवन नेगी ने भारतीय टीम में जगह बनाई। अब उत्तराखंड की खुद की टीम बनेगी तो यहां के धोनी, पंत और पांडे जैसे कई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने खेल की चमक बिखेर सकेंगे। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड कैसे अपने खिलाड़ियों को निखारता है, कैसे उन्हें राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाता है ये अब उसकी जिम्मेदारी है।

बीडीअसनोड़ा , उत्तराखंड के गैरसैंण के निवासी। वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता। लंबे अरसे से वो गांव से जुड़े मुद्दों को अलग-अलग मंचों से उठाते रहे हैं।