पिता अनंत, पिता कथा अनंता

पिता अनंत, पिता कथा अनंता

पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से

मेरे पिता, मेरे हरि। मेरे पिता अब उस अनंत हरि में समा गए, जिसे मैंने देखा नहीं। मैंने जिस हरि को देखा, महसूस किया वो मेरे पिता हैं, हमारे पापा हैं। मेरे हरि- पापा ने अपनी देह लीला समेट ली है। ऐसे वक्त में पापा ने हरि से नाता जोड़ा जब हरि का गीता ज्ञान चारों ओर कुछ और अर्थ तलाश रहा है।

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः।

पापा ने हम भाई बहनों के नाम अपने हरित्व की वसीयत अपने जीते जी कर दी। किसी को उन्होंने अपनी कारोबारी कला सौंपी, किसी को अपनी कर्मठता, किसी को शब्द साधना का जिम्मा सौंपा, किसी को अपनी जिद, किसी को अपना क्रोध, किसी को अपना संयम। और इस सबके साथ हम सभी को एक भाव समान रूप से बांटा- प्रेम का, स्नेह का, बंधुत्व का, साहचर्य का। मेरे पास उनके दिए भाव हैं, श्रद्धा स्वरूप ये उनको समर्पित।

हे हरि तेरा तुझको अर्पित, क्या लागे है मेरा।

बचपन से पापा के साथ मिलने की चिर तड़प का रिश्ता रहा। शुरुआती समय में हॉस्टल में होने की वजह से गिनती के दिन साथ रहने को मिले। बाद के दिनों में नौकरी ने इतनी मोहलत नहीं दी। मेहरबानी हरि की, ये तड़प अब तक बनी रही। पिछले कुछ वक्त से, मैं और पापा बस सोचते रह गए। कभी पापा ने मन बनाया तो मैंने कहा ठहर जाइए। कभी मैंने सोचा तो तारीख टलती रही।
… और जब पापा की तबीयत खराब होने की खबर मिली, तो मानो मन की आशंकाओं ने उथल पुथल मचा दी। दिल्ली से पूर्णिया की ओर ऐसा बेचैनी भरा सफर पहली बार था। पहली बार था, जब पापा का फोन नहीं आ रहा था। वरना पापा घंटे दो घंटे पर फोन करते रहते। मानो मेरे साथ मेरे हरि भी सफर में होते।


मेरे पिता सिलीगुड़ी के अस्पताल में थे। रास्ते भर अपने कुछ अजीजों से आरजू करता रहा, किसी अच्छे अस्पताल में दाखिले की कोशिश चलती रही। 1 मई को सिलीगुड़ी पहुंचा। संयोगवश और पापा के पुण्य प्रताप से निवेदिता अस्पताल में दाखिला मिला। शिफ्टिंग के दौरान कुछ पलों का आमना सामना हुआ। बेचैनी और पापा का हाल देख कुछ न कह सका। पापा को मेरी मौजूदगी का एहसास हुआ, पर कोई सीधी बात न वो कह सके ना मैं।
पापा ने अपने सान्निध्य में कुछ पल बिताने का मौका दे दिया। मेरे पहुंचने तक एक छोटे से नर्सिंग सेंटर में कष्ट सहते रहे। मैं आया तो अस्पताल ही नहीं बदला, हमारा अपराध बोध भी कम कर दिया। ये मेरे पिता की हरि लीला है।
हे हरि, हमें हमारे अपराधों के लिए माफ कर दें।
दुख है चारों ओर। मेरा दुख छोटा है। मेरे भावुक पिता के लिए इस दुख से लगातार गुजरना मुमकिन ना था। मेरे पिता ने इस सांसारिक यात्रा में प्रेम की बगिया तैयार की है। श्राद्ध के इन दिनों में पूरी श्रद्धा से यादों के जो फूल चुन पाऊंगा, वो आपसे साझा करता रहूंगा।

पापा, सच है न- हरि का भजे सो हरि का होये।

पापा की चिंताओं में सबसे ज्यादा प्यार तलाशने वाला, सबसे ज्यादा प्यार पाने वाला पुत्र।