प्रिय दर्शन हिंदी पत्रकारिता में पिछले कुछ वर्षों में छिछलापन लगातार बढ़ा है। अब न वैसे बौद्धिक संपादक बचे हैं
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एक कप प्याली की ऊष्मा और मिठास से भरे सोलंकी सर
पशुपति शर्मा चन्द्रभान सिंह सोलंकी। मीडिया के उन कुछ चुनिंदा लोगों में हैं, जिनसे मैं हमेशा कुछ सीखता रहा हूँ।
रुला दिया यार तूने चंद्रशेखर
निशांत नंदन के फेसबुक वॉल से साभार हैलो… क्या हाल है ठीक ही है सर चल रहा है सब…क्या हुआ
कोरोना की जंग में बिना तैयारी वाले मीडिया के लड़ाके
महेंद्र सिंह के फेसबुक वॉल से साभार अब मीडिया वालों के घर भी corona पहुंच चुका है, फिर भी कुछ
कौशलेंद्र- एक धीमी मौत के लिए आश्वस्त हैं हम सभी
पशुपति शर्मा शनिवार, सुबह… एक मित्र से सुना था उसका नाम-कौशलेंद्र। बहुत कुछ नहीं जानता, उसके बारे में। मित्र ने
चित्रा, कुछ तो लोग कहेंगे…
आनंद बक्षी साहब इस देश को गजब समझते थे तभी लिखा था ‘कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है
दम तोड़ता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
वीरेन नंदा/ वर्तमान समय में लोकतंत्र का चौथा खंभा पूरी तरह जमींदोज नजर आ रहा है। एक वह समय था
क्यों विपक्ष और जनपक्ष हो जाना ही निष्पक्ष पत्रकारिता है?
पुष्यमित्रजब मैं लिखता हूं कि पत्रकार का काम शास्वत विपक्ष हो जाना है तो कई मित्र को आपत्ति होती है।
दीपक चौरसिया- सफरनामे में तालियों का शोर और सन्नाटा
पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार। दीपक चौरसिया। पत्रकारिता का एक बड़ा नाम। मैं और मेरे हम-उम्र साथी जिस
टीवी की डिबेट का स्तर चौक-चौराहे की चर्चा से भी बदतर-सच्चिदानंद जोशी
बदलाव प्रतिनिधि, गाजियाबाद प्रेस की स्वतंत्रता एवं मीडिया का आत्म नियमन विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय मीडिया संगोष्ठी गाजियाबाद के