हमारे बदहाल गांव और सशक्तीकरण का छलावा

हमारे बदहाल गांव और सशक्तीकरण का छलावा

शिरीष खरे

सशक्तीकरण का अर्थ है देश के वंचित तबकों के जीवन में बदलाव लाना। इससे वह अलग-अलग क्षेत्रों में अवसर हासिल करने में सक्षम बने और समाज में अपना सक्रिय योगदान दे सके। सशक्तीकरण की प्रक्रिया में मानव-जनित असमानताओं को तो दूर करने की पहल होती ही है, प्रकृति प्रदत्त गैर-बराबरी को भी दूर करने की पहल होती है। हालांकि, किसी भी प्रकार की असमानता से जुड़ी समस्याएं सरल नहीं हैं। उन्हें सुलझाना भी एक जटिल चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए चार स्तरों पर सशक्तीकरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है।  

ग्रामशाला पार्ट-8

भारतीय दृष्टिकोण से यदि सशक्तीकरण की प्रक्रिया का विश्लेषण किया जाए तो हमारे समाज में आनुवांशिक आधारित आर्थिक-राजनीतिक शासन व्यवस्था रही है, इसलिए यह प्रक्रिया धीमी रही है। सशक्तीकरण की प्रक्रिया में ‘समानता’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बिना समानता की भावना का प्रसार करते हुए सशक्तीकरण की कल्पना करना बेमानी है। भारतीय संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है। यह संविधान का प्रमुख मूल्य भी है। समानता लोकतंत्र को सशक्त बनाता है और सशक्तीकरण के माध्यम से इसे सामाजिक व्यवहार में आत्मसात करने के प्रयास होते रहे हैं। यही वजह है कि समाज के वंचित तबकों को संपत्ति से लेकर साक्षरता के अधिकार के लिए राजनीतिक संरक्षण दिया गया है। इसका नतीजा सामाजिक व्यहार में देखने को मिलता है। इसी तरह, महिलाओं को संपत्ति विशेषकर पिता और पति के जमीन के अधिकार से जोड़कर राजनीतिक तौर पर सशक्त बनाने का अवसर मिला है। यह कहीं-न-कहीं पृति सत्तात्मक समाज में हस्तक्षेप है। इसी तरह, वचिंत समुदायों के लिए आरक्षण के पीछे भी यह एक कारण है।

दूसरी तरफ, आर्थिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए नीतियों के माध्यम से कई योजनाएं चलाई जाती हैं। इसके पीछे उद्देश्य है कि गरीबी दूर हो और जीवनृ-स्तर में सुधार आए। भावना यह रही कि ऐसा होगा तो समानता अपने आप आ जाएगी। एक बात और राजनीतिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए सभी लोगों के लिए अनुकूल विकास की प्रथमिकताएं तय करने के लिए अधिकार प्रदान किए जाते हैं। इसके पीछे उद्देश्य है निर्णय की प्रक्रिया में सबकी भागीदारी हो। भावना यह कि सत्ता नीचे से ऊपर की ओर आए। चौथी बात ये कि सांस्कृतिक तौर पर सशक्त बनाने के लिए समाज की पहचान बताने वाली मान्यताओं, मूल्यों भाषा, कला और प्रगतिशील प्रथाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करना। साथ ही इनका संरक्षण करना। उदाहरण के लिए, भारतीय गांव में पंचायती व्यवस्था रही है। इसी के माध्यम से गांव का शासन चलता रहा है। इन्हें ‘छोटे-गणतंत्र’ नाम भी दिया गया है और गांधीजी इसे ‘ग्राम स्वराज’ की अवधारणा में देखते हैं। गांधीजी ने ग्राम-स्वराज के सपने को साकार करने के लिए पंचायती-राज और विकेंद्रीकरण पर जोर दिया था। इसके तहत पंचायतों को संवैधानिक मान्यता दी गई। तीन-स्तरीय व्यवस्था के तहत जिला परिषद, ग्राम-सभा और पंचायत बनाई गईं। पंचायतों का पांच वर्ष का कार्यकाल दिया गया। वंचित तबकों को आरक्षण की व्यवस्था लागू कराई गई। महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण दिया गया। राजनीतिक सशक्तीकरण के तहत दूसरा महत्त्वपूर्ण अधिकार व्यस्क मताधिकार है। इसमें जाति, धर्म, लिंग, आर्थिक हैसियत के आधार पर बिना कोई भेदभाव किए 18 साल के हर नागरिक को मत देने का अधिकार दिया गया है।

यहां यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि सशक्तीकरण की दिशा में विधान या कानून पहला कदम है। किंतु, लगता है कि अभी भी आरक्षण को पचाने में सवर्ण और सम्पन्न तबके को काफी समय लगेगा। ऐसे कई उदाहरण हैं जब दलित या महिला होने के नाते पंचायत स्तर पर उसके लिए सशक्तीकरण के रास्ते पर कई बाधाएं खड़ी की जा रही हैं। यदि महिला दलित या आदिवासी है तो यही चुनौती और अधिक बढ़ जाती है। इन सबके बावजूद आज के समय में पहले से कहीं अधिक परिवर्तन आया है। इसलिए कानून में परिवर्तन करके सामाजिक तौर पर लोगों की चेतना में परिवर्तन लाने के प्रयास हुए हैं और धीमा ही सही लेकिन यह परिवर्तन दिख रहा है।

कई जानकार सशक्तीकरण की प्रक्रिया में किसी दूसरे तबके के मौजूदा अधिकार छिन जाने के तौर पर भी देखते हैं। किंतु, आज अधिक व्यापक और अधिक स्वीकार्य दृष्टिकोण की वकालत की जा रही है। इसमें जो तर्क दिए जा रहे हैं उनमें कहा जा रहा है कि लोगों को ‘शक्ति’ देने या लोगों ‘के साथ शक्ति’ को अपने आप उभरने और ‘भीतर से शक्ति’ देने को मजबूत बनाया जाए। भारतीय पृष्ठभूमि में सशक्तीकरण को इस तरह देखा-समझा गया है कि इसमें वंचित समदाय अपने सांस्कृतिक मूल्यों को बरकरार रखते हुए राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक तौर पर सशक्त बनें।


shirish khare

शिरीष खरे। स्वभाव में सामाजिक बदलाव की चेतना लिए शिरीष लंबे समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दैनिक भास्कर , राजस्थान पत्रिका और तहलका जैसे बैनरों के तले कई शानदार रिपोर्ट के लिए आपको सम्मानित भी किया जा चुका है। संप्रति पुणे में शोध कार्य में जुटे हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।