महिला उत्पीड़न के ख़िलाफ़ फाइटिंग सेंटर बने ‘शीरोज़’

महिला उत्पीड़न के ख़िलाफ़ फाइटिंग सेंटर बने ‘शीरोज़’

रश्मि गुप्ता

रूपाली की कैब आने में देरी हो रही थी और मैं भी अपनी कार का इन्तजार कर रही थी। कबीरा जंक्शन की प्रस्तुति अभी ख़त्म हुई थी। रूपाली आकर बोलने लगी जब तक आप कार का इन्तजार कर रही हैं चलिए तब तक कुछ बतियाते हैं। उसने अपना मोबाईल खोला और अपनी आने वाली भोजपुरी फिल्म का पोस्टर दिखाने लगी। पोस्टर में हीरोइन को दिखाते हुए बोली ये मैं हूँ। मैं बिल्कुल अपनी माँ की तरह दिखती हूँ। मेरी आँखें उस पर रुकी रह गईं। लगभग तीन महीने पहले रूपाली के चेहरे पर एसिड फेंक दिया गया था। आज वो लखनऊ के शीरोज कैफे में मेरे साथ बैठी बतिया रही थी। मैं उससे कैसे हुआ ये सब पूछना चाह रही थी। पर शायद वो ये समझ गई थी। इसीलिए उसने कहा कि कब हुआ , कैसे हुआ , ये मत पूछियेगा. उसे आज गुस्सा था कि कबीरा जंक्शन में उसका डांस परफार्मेंस नहीं हो पाया हालाँकि उसे आज गाने का मौका मिल गया था।

रूपाली जैसी कई और एसिड अटैक का शिकार लड़कियां लखनऊ में शीरोज कैफे चलाती हैं। शीरोज, ये नाम हीरोज की तर्ज पर ही रखा गया है। मैं इस कैफे में पहली बार गई थी। पर मेरे कुछ दोस्त अक्सर यहाँ आते रहते हैं। किताबें, काफी और खूब सारी जगह यहां की विशेषता है। आप घंटों बैठ किसी मुद्दे पर चर्चा कर सकते हैं अपनी मित्र मंडली के साथ। न आपको कोई टोकेगा और न ही आपसे यह उम्मीद करेगा कि आप कुछ ऑर्डर करेंगे। इस कैफे को राज्य सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग की मदद से एसिड विक्टिम ही चलाती हैं। पूरा प्रबंधन इन्हीं लोगों के हाथ में है। सरकार ने इन्हें प्रशिक्षित भी किया है।

शीरोज का चलाने में निर्भया फण्ड का भी उपयोग किया जा रहा है। गौरतलब है कि वित्त मंत्रालय ने महिलाओं की सुरक्षा और संरक्षा बढ़ाने के उद्देश्य से निर्भया फण्ड नामक एक समर्पित कोष बनाया हुआ है, जिसमें 2000 करोड़ की कार्पस निधि है। विभिन्न राज्यों में हिंसा की शिकार हुई महिलाओं को एक ही स्थान पर सारी सुविधाएं देने के उद्देश्य से वन स्टाप क्राइसिस सेंटर बनाये गये हैं। इनको वित्तीय सहायता उपरोक्त निर्भया फण्ड से ही मिलती है। अधिकतर जगहों पर ये सेंटर सरकारी अस्पतालों में चलाये जा रहे हैं।

यदि शीरोज का एक मॉडल के रूप में लिया जाये तो हिंसा की शिकार हुई महिलाओं के लिए यह सशक्तिकरण का बेहतरीन माध्यम साबित हो सकता है। हर राज्य के प्रत्येक जिले में शीरोज कैफे बनाकर, प्रशिक्षण देकर, उनका प्रबंधन इन्हीं महिलाओं के हाथ में दिया जा सकता है। इस तरह के कैफे खुद हिंसा की शिकार महिलाओं की काउंसलिंग में मदद करेंगे। यदि इन्हीं कैफे में वन स्टाप क्राइसिस सेंटर भी चलाना शुरू कर दिया जाए , और एक प्रशिक्षित डॉक्टर, महिला पुलिस अधिकारी और वकील इन्हीं कैफे में स्थायी तौर पर बैठना शुरू कर दें , तो महिलाओं को अपनी बात कहने में आसानी होगी। साथ ही हिंसा की वजह से जो मानसिक तनाव वे झेल रही होंगी , उनके लिए ये एसिड अटैक विक्टिम खुद एक प्रेरणा साबित होने लगेंगी। शीरोज कैफे जैसे मॉडल उस पुरुषवादी मानसिकता को भी तोड़ने का काम करते हैं जहाँ लोगों को यह लगने लगता है कि अब उसका सब कुछ ख़त्म हो चुका है। बल्कि यह उनकी बेहतर जिंदगी की नई कहानियां भी गढ़ते हैं।


रश्मि गुप्ता। आप जेंडर और महिला अधिकारों पर सक्रिय रूप से लिखती हैं। मूलतः बरेली (उत्तर प्रदेश) की रहने वाली है।