58 दिन से सड़क पर क्यों अन्नदाता ?

58 दिन से सड़क पर क्यों अन्नदाता ?

देश के किसान विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी और बिजली ( संशोधित ) बिल को रद्द करने की मांग को लेकर  आंदोलनरत हैं। किसानों के आंदोलन के 58 दिन में 147 किसानों की जान जा चुकी है । सरकार और किसान संगठनों के बीच  10वें दौर की बातचीत बेनतीजा रही । किसान संगठन सरकार से कृषि कानून वापस लिए जाने की मांग पर अडे हुए हैं। सरकार संशोधन के बाद अब कानून को 18 महीने तक सस्पेंड करने की बात तक आ गई है, लेकिन किसान अपनी बात पर अड़े हैं । ऐसे में 11वें दौर की बातचीत में क्या होगा ये शुक्रवार की होने वाली बैठक में पता चलेगा । ऐसे में आंदोलन में शामिल अखिल भारतीय किसान खेत-मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्यवान से बदलाव प्रतिनिधि ब्रह्मानंद ठाकुर ने बात की और किसानों की जिद की वजह को समझने की कोशिश की ।

बदलाव- किसान  आंदोलन के 58 दिन बीत चुके हैं, 147 किसानों की जान जा चुकी है लेकिन किसान के रुख में कोई नरमी नहीं आई है, ऐसा क्यों ?

सत्यवान- किसान इस बात को अच्छी तरह समझता है कि कृषि कानून पूंजीपतियों और कार्पोरेट घरानों को मदद पहुंचाने के लिए लाया गया है। इससे देश के किसान बर्बाद हो जाएंगे । अब इनके सामने संघर्ष के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। यही कारण है कि काले कानून के खिलाफ किसानों का संघर्ष पूरे जोश और उत्साह से जारी है।  ऐसे में यदि सही क्रांतिकारी नेतृत्व पूरी ताकत के साथ मौजूद रहे तो समाज में क्रांतिकारी बदलाव ला ही देती है। जनता का वीरतापूर्ण संघर्ष इसी रास्ते जन्म लेता है।  मनुष्य इसी तरह इतिहास का निर्माण करता आया है । वर्तमान किसान आंदोलन में इतिहास निर्माण की यही प्रक्रिया चल रही है।

बदलाव- इस किसान आंदोलन में जितने किसान संगठन शामिल हैं, उनकी विचारधारा, राजनीतिक दृष्टिकोण और स्वार्थ अलग-अलग है। ऐसे में इस आंदोलन के भविष्य को किस रूप में देखते हैं ?

सत्यवान- हां, यह सही है और इसी आधार पर केन्द्र की सरकार ने सोचा था कि वह इस आंदोलन में आसानी से फूट डाल सकेगी। इसके लिए उसने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है लेकिन उसे सफलता नहीं  मिली। वैचारिक मतभेद चाहे जो रहे हों लेकिन कार्पोरेट घरानों के हित में बनाए गये इन तीनों कृषि कानूनों के सवाल पर सभी किसान संगठन एकजुट हैं । किसान संगठन जानते हैं तकि उनकी लड़ाई पूंजीपतियों से है। अपने जीवन और जीविका को बचाने के लिए यह लड़ाई उन्हें हर हाल मे जीतनी है।  उनका यही संग्रामी मनोभाव किसानों को ताकत प्रदान कर रहा है।  यह आंदोलन  सफल होकर रहेगा । इसमें कोई संदेह नहीं है।

बदलाव- सरकार कह रही है कि वह कानून में संशोधन को तैयार है, इस पर किसान संगठनों को एतराज क्यों है ?

सत्यवान- ये कानून किसानों को देखकर नहीं बल्कि कारोबारी घरानों का फायदा देखकर बनाया गया है । किसानों के हित का कानून होता तो किसान संगठनों से बात की गई होती । इसलिए हमारी मांग कानून में थोड़ा-बहुत संशोधन  करने का नहीं, इसे पूरी तरह वापस लेने का है और सरकार इसके लिए तैयार नहीं है।

बदलाव- कॉन्ट्रैक्ट खेती को सरकार किसानों के हित में बता रही है जबकि किसान इसे बर्बादी का सबब बता रहे हैं। कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग कोई नया तो है नहीं ।

सत्यवान- मौजूदा बीजेपी सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तरह ही पूंजीपतियों की सेवा कर रही है। जिस कृषि नीति को कांग्रेस ने लागू किया था, आज बीजेपी उसी को आगे बढ़ा रही है। इसी का परिणाम है कि आम आदमी के जीवन में दुख, तकलीफ, गरीबी और बदहाली कई गुना बढ़ गई है। नये कृषि कानून में आनुबंध की सारी शर्तें पूंजीपतियों के हित में हैं। इसमें फसलों की गुणवत्ता के आधार पर उसकी कीमत तय होगी। गुणवत्ता का निर्धारण कम्पनियों के विशेषज्ञ करेंगे। किसानों की इसमें कोई रोल का नहीं होगा। कम्पनियां उनके साथ धोखाधडी करेंगी। किसान इसके खिलाफ कोर्ट में नहीं जा सकता है क्योंकि किसान और कम्पनियों के बीच किसी तरह के विवाद का निबटारा एस डीएम और फिर डीएम करेंगे। यह अधिकारी सीधे केन्द्र सरकार के नियंत्रण मे काम करेंगे । राज्य सरकारें मूक दर्शक बनी रहेगी। क्या राजसत्ता से संरक्षण प्राप्त बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से किसान लड़ पाएगा ?  जाहिर है, किसाम अपने खून पसीने से उपजाई फसल कौड़ी के दाम इन कम्पनियों के हाथ बेचने को विवश हो जाएगा।

किसानों को संबोधित करते सत्यवान

बदलाव – आपकी राय में किसानों की भलाई के लिए सरकार को तत्काल क्या कदम उठाना चाहिए?

सत्यवान- सरकार सच में किसानों का भला चाहती तो वे किसानों को उनके उपज की लागत का डेढ़ गुना  लाभकारी मूल्य दिलवाने की व्ययवस्था करती, खाद ,बीज, डीजल, सिंचाई हेतु सस्ती बिजली उपलब्ध  कराती,  देश की जनता को सस्ती दर पर जरूरत की सामग्री मुहैया कराती। लेकिन ऐसा वे नहीं करेगी क्योंकि इससे जनता को तो फायदा होगा लेकिन पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के मुनाफे में कमी आएगी।  पूंजीपतियों के इशारे पर चलने वाली कोई भी सरकार उसके विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं कर सकती, यह बात जनता समझ चुकी है।

बदलाव- अंत में  एक और सवाल, आप इस आंदोलन के जरिए देश के किसानों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

सत्यवान- इस संघर्ष ने भारत के किसान आंदोलन के इतिहास में एक अनूठी मिसाल कायम की है। किसान बहादुरी से डटे हुए हैं लेकिन इस आंदोलन को अंतिम जीत तक ले जाने के लिए सिर्फ बहादुरी ही काफी नहीं है। जरूरत है, दुश्मन की विभिन्न चालबाजियों के बारे में सतत जागरुक रहने की। हम लड़ेंगे और जीतेंगे, किसी में दम नहीं कि वह हमें परास्त कर दे।

बदलाव- शुक्रिया

ब्रह्मानंद ठाकुर।बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।