खाये पिये कुछ नहीं, गिलास फोड़े बारह आना

खाये पिये कुछ नहीं, गिलास फोड़े बारह आना

राकेश कायस्थ

अक्टूबर 2015 की बात है। बिहार के चुनावी तमाशे के बीच अचानक एक एमएमएस सामने आया। औघड़ सरीखे एक मैले-कुचैले बाबाजी हाथ उठाकर कह रहे थे— लालू यादव का नाश हो। बाबाजी के सामने खड़े थे, नीतीश कुमार। बाबाजी ने अपने आशीर्वाद की पुष्टि करते हुए उनके गाल पर एक तगड़ा चुम्मा जड़ा तो सुशासन बाबू किसी नव-ब्याहता की तरह लजाकर एक कदम पीछे हट गये। बीजेपी ने वीडियो क्लिप प्रसाद की तरह बंटवाया। बाद में अपनी सफाई में नीतीश ने कहा— वीडियो बहुत पुराना है। बीजेपी वाले गठबंधन तुड़वाना चाहते हैं, लेकिन उनकी चाल कामयाब नहीं होगी। अगले दिन पटना में पत्रकारों ने लालू यादव को घेर लिया। लालू बोले— नीतीश मेरा छोटा भाई है। ई तांत्रिक-फांत्रिक के कहने से कुच्छो ना होता है? एक पत्रकार ने पूछा— आप तो कहते थे, नीतीश के आंत में दांत हैं। लालू हंसते हुए बोले— ना अब फिर से मुंह में आ गया है, हम चेक कर लिये हैं।

नब्बे के बिछड़े भाई 2015 में फेविकोल का जोड़ लेकर एक साथ आये थे। बिहार में मोदी के अश्वमेध का घोड़ा रूका तो अनगिनत लोग साधु-साधु कर उठे। महागठबंधन के महाविजय के बाद लालू ने एलान किया— बिहार का झंझट खतम हुआ, अब दिल्ली में झंझट शुरू होगा। अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया। ख़बर आई कि महागठंधन जल्दी ही जातिवार जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने के लिए देशभर में आंदोलन छेड़ेगा, मंडल पार्ट टू के दावे को अमली जामा पहनाने की कोशिश की जाएगी और देश की राजनीति बदल जाएगी। दिन बीते, महीने और फिर साल। मैने बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार से पूछा कि पटना के रास्ते दिल्ली जाने के मंसूबे का क्या हुआ तो उन्होने जवाब दिया— लालू अपने चरसी बेटे से परेशान हैं, और नीतीश आरजेडी से। आंदोलन कौन करेगा? लालू को तेज प्रताप का विभाग और अपने मुकदमे संभालने से फुर्सत मिले तब तो आगे की सोचे। लालू बीच-बीच में अपने आगे का पॉलिटिकल रोडमैप बताते रहे, लेकिन नीतीश आदतन खामोश रहे। एक बार किसी ने नीतीश से पूछा— लालू तो आपके नेचुरल अलाई नहीं हैं। क्या उनके साथ गठबंधन चलाने में परेशानी नहीं होती? नीतीश ने जवाब दिया— गठबंधन कोई भी स्वभाविक नहीं होता है। कुछ कॉमन प्लेटफॉर्म ढूंढकर हमें साथ काम करना होता है। बीजेपी के साथ भी जेडीयू का गठबंधन लंबे समय तक चला लेकिन वह भी कहां स्वभाविक था?

मुझे लगता है राजनीति में जो कुछ होता है, स्वभाविक होता है, अस्वभाविक कुछ भी नहीं। बिहार के नये नाटकीय घटनाक्रम ने इस मूल अवधारणा को फिर स्थापित किया है कि सियासत नूरा कुश्ती के सिवा कुछ भी नहीं है। क्या तेजस्वी यादव पर लगा सिर्फ एक आरोप नीतीश के गठबंधन से अलग होने का कारण है? अगर वजह इतनी होती नीतीश अपने साथ कई बाहुबलियों और अनंत सिंह जैसे छंटे हुए हिस्ट्रीशीटर्स को क्यों रखते? गठबंधन साझीदार की पवित्रता नीतीश के लिए इतना बड़ा आधार था तो फिर उन्होने एनडीए गठबंधन में उन्होने उस पार्टनर को नंबर टू की हैसियत क्यों बख्शी जिनके बारे में पटना में मुहावरा प्रचलित है कि वे रोज सुबह 20 लाख थैली घर पहुंचने पर ही ब्रश करते हैं। नरेंद्र मोदी के साथ जिस तथाकथित वैचारिक मतभेद का हवाला देकर नीतीश ने 2013 में खुद को एनडीए से अलग किया था, वह वैचारिक मतभेद भला अब किस तरह दूर हो गया? मोदी ने उन नीतीश कुमार के साथ मिलकर करप्शन के खिलाफ लड़ने का फैसला क्यों किया जिनकी सरकार के कथित भ्रष्टाचार की लिस्ट वे चुनावी रैलियों में न्यूज़ चैनलों के टॉप हंड्रेंड न्यूज़ की तरह गिनवाया करते थे?
लालू यादव इस पूरे मामले में खुद को पीड़ित पक्ष की तरह पेश कर रहे हैं और स्वतंत्र चिंतकों के तबके को उनसे हमदर्दी भी है। कहा ये जा रहा है कि नीतीश कुमार ने जनादेश का अपहरण किया है क्योंकि वोट उन्हे अकेले नहीं मिले थे। एक दलील ये भी है कि लालू को फंसाने का पूरा अभियान पटना में उनकी महारैली के एलान के बाद हुआ। चलो मान लिया, लेकिन क्या क्या वाकई लालू के पास कोई मोरल हाई ग्राउंड है? सिर्फ सामाजिक की न्याय का नारा बुलंद करने से उन तमाम कारनामों को किस आधार पर वैधता मिल सकती है, जो लालू के पूरे कुनबे ने किया है? लालू बार-बार जिस विपक्षी एकता का हवाला देते रहे, उसे बचाने के लिए उन्होने क्या किया?

समाजवाद का पिछड़ावाद बनना उसकी स्वभाविक परिणति थी, लेकिन पिछड़ावाद परिवारवाद बना तो आहिस्ता-आहिस्ता अपनी गति को प्राप्त हो गया। मौजूदा राजनीति का हर आख्यान अपने आप में एक प्रहसन है। कोई भी भ्रम अब बाकी नहीं है। विपक्षी एकता की पूर्णाहुति के बाद भक्तजन किसे गालियां देंगे? `अपवित्र’ गठबंधन से निकलने के बाद भक्तों के मन मंदिर में नीतीश की हैसियत वैसी ही हो गई है, जैसी राम दरबार में हनुमान की। भक्त अब नीतीश को गालियां नहीं देंगे बल्कि उसी तरह प्रसाद चढ़ाएंगे जैसे शिव मंदिर में गये लोग लोटे का बचा दूध नंदी बैल पर डाल जाते हैं।


rakesh-kayasthराकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय । खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ, टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।