दावे, हकीकत और सुभाष चंद्र बोस

दावे, हकीकत और सुभाष चंद्र बोस

रत्ना वर्मा
18 अगस्त वो तारीख है, जिसे लेकर ना जाने कितने ही सवाल पिछले सात दशकों में उठे हैं. ये वो तारीख है जब हवाई हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन की खबर आई. कुछ ने इसे सच माना और कुछ ने इसे कभी नहीं माना. नेताजी की मौत की खबर से उपजे रहस्य की तह में जाने के लिए तीन आयोग बने. क्या थी उनकी रिपोर्ट, क्या था उनकी नजर में सच. एक रिपोर्ट सुभाष बोस के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने भी तैयार की, जिसे उन्होंने पहले जांच आयोग के खिलाफ असहमति रिपोर्ट के तौर पर पेश किया.

रिपोर्ट्स कहती हैं कि 18 अगस्त 1945 को दोपहर ढाई बजे ताइवान में एक दुखद हवाई हादसे में नेताजी नहीं रहे. हालांकि हादसे के समय, दिन, हकीकत और दस्तावेजों को लेकर तमाम तर्क-वितर्क, दावे और अविश्वास जारी हैं. अलग-अलग देशों की आला खुफिया एजेंसियों ने अपने तरीकों से इस तारीख से जुड़ी सच्चाई को खंगालने की कोशिश की. कुछ स्वतंत्र जांच भी हुई. कई देशों में हजारों पेजों की गोपनीय फाइलें बनीं. तमाम किताबें लिखीं गईं. रहस्य ऐसा जो सुलझा भी लगता है और अनसुलझा भी.

हकीकत ये है कि 18 अगस्त 1945 के बाद सुभाष कभी सामने नहीं आए. बहुत से लोग 80 के दशक तक दावा करते रहे कि उन्होंने नेताजी को देखा है. अयोध्या में रहने वाले गुमनामी बाबा को बेशक सुभाष मानने वालों की कमी नहीं लेकिन पहले जस्टिस मनोज मुखर्जी आयोग और फिर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित विष्णु सहाय आयोग साफ कहा कि गुमनामी बाबा को सुभाष नहीं माना जा सकता. वैसे ये पहेली ही है अगर वो सुभाष नहीं थे तो उनके पास नेताजी से संबंधित इतने ढेर सारे सामान कैसे थे. वो क्यों हमेशा पर्दे के पीछे रहे. गुमनामी बाबा की सेवा करने वाली लखनऊ की श्रीमती सरस्वती देवी के बेटे राजकुमार शुक्ला ने भी मुखर्जी आयोग के सामने पेश होकर कहा-उनकी मां हमेशा कहती थीं कि गुमनामी बाबा नेताजी ही थे.

दो और बाबाओं के सुभाष होने की चर्चाएं खूब फैली, उसमें शॉलमारी आश्रम के स्वामी शारदानंद और मध्य प्रदेश में ग्वालियर के करीब नागदा के स्वामी ज्योर्तिमय को नेताजी माना गया.

कुछ साल पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सबसे प्रिय भतीजे और सहयोगी शिशिर बोस की पत्नी और सांसद रहीं दिवंगत कृष्णा बोस जापान गईं. उनका कहना था कि वो उसी विमान हादसे में मरने वाले जनरल सिदेई के परिवारवालों से मिलीं. सिदेई उसी विमान में थे, जो 18 अगस्त 1945 को तायहोकु एयरपोर्ट से उड़ा. सिदेई उस हादसे में मौके पर मारे गए. कृष्णा बोस ने कहा जब वो इस परिवार से मिलीं तो वो हैरान थे कि आखिर अब तक भारतीय इस हादसे और नेताजी के निधन को क्यों स्वीकार क्यों नहीं कर पा रहे हैं. इतने लंबे समय से ये क्यों भारत में एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है.

खुद नेताजी की बेटी अनिता बोस फाफ मानती रही हैं कि उनके पिता का निधन हवाई हादसे में हुआ. इस पूरे मामले में बोस परिवार बंटा हुआ है. एक हिस्से ने हमेशा माना कि सुभाष जीवित हैं और लौटेंगे. उस हिस्से ने रैंकोजी मंदिर में उनकी अस्थियों को स्वीकार नहीं किया. इसीलिए वो अस्थियां कभी ससम्मान भारत लाई नहीं गईं.

जब देश आजाद हो रहा था कि तो कांग्रेस के बड़े बड़े नेताओं को भी लगता था कि नेताजी जिंदा हैं. ये माना गया कि वो सोवियत संघ पहुंच गए हैं. महफूज हैं. आजादी के बाद जब नेहरू मंत्रिमंडल गठित होना था तो अक्सर ये सवाल नेहरू और सरदार पटेल से प्रेस कांफ्रेंस में पूछा जाता था कि अगर सुभाष लौट आए तो सरकार में उन्हें कौन सी जगह मिलेगी. बहुत से लोगों को लगता था कि सुभाष ने सोवियत संघ से नेहरू को चिट्ठी लिखकर बताया है कि वो किस हाल में हैं. ये भी माना गया कि ब्रिटेन सरकार के दबाव में सुभाष को सोवियत संघ से रिहाई में दिक्कत आ रही है.

बस एक शख्स था, जो कह रहा था कि नेताजी ने उसके सामने अस्पताल में आखिरी सांसें ली हैं, वो थे आजादी के बाद पाकिस्तान में जाकर बस गए कर्नल हबीब उर रहमान. नेहरू सरकार ने काफी दबाव के बाद 50 के दशक में पहला जांच आयोग शाहनवाज खान की अगुवाई में बनाया गया. उसने रिपोर्ट दी कि नेताजी का निधन तायहोकु में प्लेन क्रैश में ही हुआ. फिर 70 के दशक में गठित जस्टिस जीडी खोसला आयोग इसी नतीजे पर पहुंचा. लेकिन 90 के दशक के आखिर में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा बनाए गए तीसरे मुखर्जी आयोग ने इस निष्कर्ष को पलट दिया. मुखर्जी आयोग ने कहा कि सुभाष का निधन उस दिन हवाई हादसे में नहीं हुआ. हालांकि तीनों आयोगों की कार्यवाहियों और निष्कर्षों में बडे़ झोल भी हैं. 1957 में सुभाष के बड़े भाई सुरेश बोस ने अपनी असहमति रिपोर्ट में दावा कि जापानी अधिकारियों ने गैर आधिकारिक तौर पर बताया कि सुभाष सुरक्षित सोवियत सीमा में पहुंचा दिए गए थे.
हालांकि इस सारी रिपोर्ट्स के बीच कई बड़े सवाल भी हैं

  • जापान ने उनके निधन की खबर जारी करने में पांच से छह दिन क्यों लिए.
  • आखिर क्यों नेताजी के निधन से जुड़ा कोई भी रिकॉर्ड अस्पताल से लेकर शवदाह गृह और हादसा वाले एयरपोर्ट पर नहीं है
  • उनके शव की फोटोएं क्यों नहीं सही तरीके से खींचीं गईं
  • – क्या वो वाकई वार क्रिमिनल थे. उनका नाम ब्रिटेन ने युद्ध अपराधी की सूची में रखा था
  • सुभाष की उस घड़ी का रहस्य क्या है, जो उन्होंने आखिरी समय में पहनी हुई थी.
  • फ्रांसीसी जासूसी एजेंसी क्यों मानती है कि जापान ने ही बोस को कैद कर लिया

सुभाष की अज्ञात यात्रा बहुत रहस्यपूर्ण और कौतुहल लिए हुए है. सुभाष चंद्र बोस पर प्रकाशित लेखक संजय श्रीवास्तव की नई किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा में उसी ओर देखने की कोशिश की गई है. सुभाष पर उपजने वाले तमाम सवालों का जवाब खोजने के साथ तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट, बडे़ भाई सुरेश चंद्र बोस की अहसमति रिपोर्ट को विस्तार से पहली बार दिया गया है.
नेताजी की ये खासियत थी कि वो असंभव को संभव कर दिखाते थे. ये काम उन्होंने अपनी जिंदगीभर किया. उनका जीवन किसी तपस्वी की ही तरह था. कठोर स्थितियों में वो लगातार सादगी से रहे, जापान में वो वही खाना खाते थे, जो सैनिक खाते थे. अफगानिस्तान में उनके जमीन पर सोने की भी नौबत आई. आध्यात्मिक तौर पर वो रहस्यपूर्ण और साधना साधक थे. उनके जीवन के कई रहस्य बिंदू थे. उन्होंने कोई एक दो साल नहीं बल्कि नौ सालों तक अपने और एमिली शेंकल से संबंधों को छिपाकर रखा.

सुभाष बोस पर हालिया सनसनीपूर्ण किताबों की तुलना में ये सुभाष पर काफी तथ्यपरक और शोधपूर्ण तरीके से लिखी किताब है,जो सुभाष ही नहीं बल्कि उनके जीवन से जुड़े लोगों और सवालों पर नजर दौड़ाती है. इस किताब में हर पक्ष को संतुलित तौर पर देखने का प्रयास किया गया है.सुभाष की अज्ञात यात्रा आज भी अज्ञात है. हालांकि इसका पटाक्षेप जापान की राजधानी तोक्यो के रैंकोजी मंदिर में रखी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियों की डीएनए जांच से हो सकता है.
किताब – सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा
लेखक – संजय श्रीवास्तव
संवाद प्रकाशन, मेरठ
मूल्य 300 रुपए(पेपर बैक)
(अमेजन पर उपलब्ध)
पेज -288

रत्ना श्रीवास्तव
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