देश के गांधी अड्डों की सूरत बदलनी चाहिए

देश के गांधी अड्डों की सूरत बदलनी चाहिए

संदीप नाईक

एक ही है सेवाग्राम देश में, एक है कस्तूरबाग्राम इंदौर में और फिर देशभर में फैले हैं – गांधी चबूतरे और गांधी आश्रम , पीठ, अध्ययनकेन्द्र और पुस्तकालय नुमा अड्डे, जिनमें अब ना गांधी जिंदा हैं और ना गांधी के सिद्धांत या मूल्य। बचा है तो झगड़ा, तर्क – कुतर्क, हिसाब – किताब, श्रेय लेने की पागल दौड़ और खादी के झब्बे पहने नकली लोग – जो ना कुछ कर पा रहे हैैं और ना इन अड्डों की कुर्सियां छोड़ रहें हैं। अपने पोपले मुंह और नकली बत्तीसी से देश का ज़मीनी गांधी चबाते अब सिर्फ येन केन प्रकारेण अनुदान डकारने की फिराक में रहते हैं। हाँ – यह अभी संतोष की बात है कि मोदी सरकार के पांच करोड़ का अनुदान लौटाकर मॉरल बनाये रखते है और छबि भी, जिसमें सेवाग्राम भी शामिल है।

गांधी के 150 वर्ष – माध्यम या सन्देश

विकास संवाद का बारहवां आयोजन सेवाग्राम, वर्धा 

मुझे व्यक्तिगत रूप से लगने लगा है कि पिछले 32 वर्षों में देश भर में गांधी, विनोबा या अन्य सर्वोदयी महान संतों के आश्रम  के पास अकूत चल-अचल सम्पत्ति हो गई है। या तो ये सब राजसात करके नया कुछ किया जाये या इन्हें पुनरुद्धार करके नवसृजन किया जाये, क्योंकि अब ये सिर्फ बड़े-बड़े ढाँचे हैं जो बड़ा तगड़ा मेंटेनेंस मांगते हैं और इतना रुपया इस देश में नहीं कि गरीबी, भुखमरी, बीमारी, मलेरिया, कुपोषण या रोजगार के बदले इन्हें बनाए रखने के लिए धन उपलब्ध करवाया जाए।

शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य, पशु पालन, खेती, स्वाध्याय, सौर ऊर्जा , खादी उत्पादन और ग्रामीण विकास के सभी क्षेत्रों में ये जिन तरीकों को अपना रहे हैं वे महज पुराने होने से असफल नहीं है, बल्कि अब उन तौर तरीकों में प्रतिबद्धता, मूल्य और सिद्धांतों का गहरा घालमेल है। अंदर ही अंदर इन जगहों पर बैठे लोगों में कुर्सियों से चिपके रहने का भी बड़ा लालच है और उम्र के आठवें, नवमें दशक में पदों के प्रति लालसा खत्म नहीं हो रही। ये लोग वो दीमक बन गए हैं जो गांधी का चरखा चबा गए, भरे पेट पर देश खा गए, फिर भी ये भूखे के भूखे – मांग रहें अनुदान।

मुझे हर जगह देशी विदेशी लोग बहुतायत में दिखते हैं, यात्रियों के झुंड दिखते हैं, गांधी को लेकर झंडा उठाए, अपना एजेंडा लिए लोगों के हुजूम नजर आते हैं। अधिकाँश युवा हैं, जिनके पास विकल्प है, वे कर्मशील भी हैं। सम्भवतः दृष्टि ना हो पर दृढ़ इरादे जरूर हैं, पर कोई भी प्रबंधन इन्हें जगह नहीं देना चाहता। मसलन सेवाग्राम में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय है। जैसा भी है कच्चा – पक्का, जहां गांधी अध्ययन के युवा छात्र हैं। अभी तक दर्जनों पी एच डी कर निकल चुके हैं, पर कोई भी इस पैतृक संस्थान में टिकता हुआ नज़र नहीं आया, आखिर क्यों?

मैं मुतमईन हूँ कि कांग्रेस हो या भाजपा या कोई और राजनैतिक सत्ता गांधी को इस्तेमाल सब करेंगे पर गांधी चाहता कोई नहीं।  सेवाग्राम में सरकार ने 145 करोड़ की विकास योजना बनाई है। इसे वर्धा विकास प्राधिकरण लागू कर रहा है। पुराना पोस्ट आफिस तोड़ने की फिराक में है। उसके ठीक सामने पक्की नाली बनाई गई है जो सात करोड़ की है और पीछे सार्वजनिक शौचालय बन रहे हैं। मगन भाई संग्रहालय की विभा ने बताया कि लोगों के विरोध के बाद भी सरकार हस्तक्षेप करके सेवाग्राम को विकसित करने पर आमादा है,  इसका मूल स्वरूप बिगाड़ रही है और सौ रुपये में बनी बापू की कुटिया आज करोड़ों रुपयों की बर्बादी देख रही है। सवाल कई हैं। गांधी के 150 साल पूरे होने पर 2 अक्टूबर से देशभर में आयोजन होंगे। इसकी अभी कोई तैयारी दिखाई नहीं देती। सर्वोदय सेवा संघ कलेक्टिव के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारी बूढ़े हो चुके हैं। सिर्फ मेकेनिकल ढँग से नित्य प्रार्थनाएँ गाने से काम नहीं चलेगा अब और खादी के झब्बे पहनने से भी देश गाँधीमय नहीं हो पाएगा ?


संदीप नाईक। सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक-विचारक।  सी- 55 , कालानी बाघ, देवास, मप्र , 455001। आप इनसे मोबाईल – 9425919221 या मेल आई डी – [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं