सैनिक स्कूलों में निजी संस्थाओं की एंट्री क्यों ?

सैनिक स्कूलों में निजी संस्थाओं की एंट्री क्यों ?

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार

अंग्रेजी तो अंग्रेजी, हिंदी के टीवी चैनल वाले भी लहलोट हैं कि 2021-22 में सरकार देश के दो बड़े सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी का निजीकरण करेगी। इन बैंको और बीमा कंपनियों पर नजर गड़ाये कारपोरेट कंपनियों के मालिकानों से भी ज्यादा उत्साहित टीवी चैनलों के एंकर्स दिख रहे थ। अब 100 नये सैनिक स्कूल खोले जायेंगे। नये बजट में 1 फरवरी को इस आशय का ऐलान हुआ। इस खबर का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है कि ये 100 सैनिक स्कूल गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की पार्टनरशिप में चलाये जायेंगे।
सैनिक स्कूल प्रबंधन या शिक्षण में गैर सरकारी संगठनों (NGOs) से पार्टनरशिप क्यों? सैन्य-मामलों चाहे वह सेना में जाने के योग्य प्रशिक्षित-प्रोफेशनल तैयार करने वाले शिक्षण संस्थान ही क्यों न हों, उनमें निजी क्षेत्र की घुसपैठ क्यों? कौन होंगे ये एनजीओ (NGO)? देश में बहुत बड़े-बड़े NGO किसी राजनीतिक विचारधारा या संकीर्ण-सांप्रदायिक सोच से प्रेरित विवादास्पद संगठन भी चला रहे हैं। इनमें कई संगठन समाज और राजनीति में सैन्यवाद के पैरोकार भी हैं। अनेक NGO कारपोरेट समूह भी चला रहे हैं। अब तक देश के सैनिक स्कूलों का संचालन रक्षा-मंत्रालय के अधीन काम करने वाली एक सैनिक स्कूल सोसाइटी करती है। इसके बोर्ड के पदेन अध्यक्ष होते हैं रक्षा मंत्री। अभी कुल 31 सैनिक स्कूल का कर रहे हैं. पहले 26 ही थे, 5 नये स्कूल मौजूदा सरकार ने जोड़े थे। अब 100 नये जोड़ रही है और साथ में इनके संचालन-प्रबंधन की व्यवस्था भी बदली जा रही है. ऐसा क्यों? मुझे लगता है, हमारे जैसे देश में सैन्य मामलों को बहुत गंभीरता और जरुरी सतर्कता से लिये जाने की जरुरत है. बजट के इस खास प्रावधान पर संसद में संजीदा और सुसंगत बहस जरूर होनी चाहिए