रेणुजी की धरती की शान रहा विद्यालय आज विरान पड़ा है

रेणुजी की धरती की शान रहा विद्यालय आज विरान पड़ा है

अखिलेश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार

ये तस्वीरें उस विद्यालय की वर्तमान स्थिति बयां कर रही हैं जिसका अपना स्वर्णिम इतिहास रहा है । रेणु जी से अनगिनत नामी गिरामी लोगों की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा इस विद्यालय में हुई है । आजादी से बहुत पहले सन 1916 ई में इस विद्यालय की स्थापना हुई थी । तब शायद इस बहुत बड़े इलाके के लिए यह एक मात्र शिक्षा संस्थान रहा होगा । जब मैं यहां हॉस्टल में रहकर पढ़ता था तब यह स्कूल सम्मिलित पूर्णियां ( अररिया और किशनगंज को मिलाकर ) जिले के 5-7 श्रेष्ठ विद्यालयों में से एक हुआ करता था । तस्वीर में जिस कमरे की तरफ मैं इशारा कर रहा हूं, उसी कमरे में हम कभी रहा करते थे । कितनी रौनक थी तब । हम बच्चों से पूरा कैंपस गुलजार था । आयताकार हरे भरे फिल्ड के चारों तरफ क्यारियों में सलीके से तरह तरह के फूलों और कोरोटन के पौधे लगे हुए थे । पूरा कैंपस बांस की बत्तियों से बने जाफरी से घेरा हुआ था और मुख्य द्वार पर बांस का सुंदर सा द्वार भी हुआ करता था । पीपल के पेड़ के चारों ओर बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था जहां रोज पूजा होती थी । उसी चबूतरे से कुछ दूरी पर एक कुआं हुआ करता था जो अब नहीं दिख रहा है । जिस विद्यालय की मैं बात कर रहा हूं उसका नाम है – आदर्श मध्य विद्यालय, सिमरबनी ।

आज से 25-30 वर्ष पूर्व तक जिस विद्यालय में पढ़कर मैं गौरवान्वित महसूस करता था उसे इस हाल में देखना बहुत पीड़ादायक है साथ ही मन में इतने सवाल भी उठ रहे है जिसे कलमबद्ध करना मुश्किल लग रहा है मुझे । आखिर इन विगत वर्षों में बिहार के सरकारी विद्यालयों का इतना पतन हुआ कैसे ? इसके लिए मैं सीधे तौर पर इन वर्षों में रहे सरकार, शिक्षा मंत्रियों, स्थानीय जन प्रतिनिधियों, जिलाधिकारियों, शिक्षा पदाधिकारियों और प्रधानाचार्यों को मानता हूं । इन सबकी जिम्मदरी थी कि वे उत्तरोत्तर विद्यालय को और आगे ले जाते न कि डुबोते डुबोते इस हाल में लाकर छोड़ते । उस स्वर्णिम दौर के बहुत सारे लोग मिल जाएंगे जो इसी विद्यालय में पढ़कर आज बहुत ऊंचाइयों पर हैं । शायद हमलोग स्वर्णिम दौर के आखिरी बैच थे क्योंकि मैंने जब यह पता लगाने का प्रयास किया कि हमारे बाद इस विद्यालय से शिक्षा पाने वाले कोई ऐसे छात्र हैं जो आज कैरियर में बहुत सफल हों तो जवाब निराशाजनक ही मिला ।

खैर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, लिखता भी, यदि मैं साहित्य का छात्र रहता ।
पीछे की तरफ कुछ नए भवन जरूर बने हैं पर पूरा कैंपस वीरान सा दिखता है । हां, एक बात जरूर मन में आ रही है कि जब भी कुछ सामर्थ्य होगा और मौका मिलेगा तो इसके जीर्णोद्धार का सफल प्रयास जरूर करूंगा ।