30 सितंबर को आइए और समझिए हमने अपने बुजुर्गों को कैसी ज़िंदगी दी

30 सितंबर को आइए और समझिए हमने अपने बुजुर्गों को कैसी ज़िंदगी दी

 टीम बदलाव

विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस की पूर्व संध्या पर बदलाव और ढाई आखर फाउंडेशन की ओर से ‘कल और आज’- कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुनें नाम से 30 सितंबर को जो कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा है उसमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल हो रहे हैं जिनके काम के बारे में जब जानेंगे तो उनको सैल्यूट करने का दिल करेगा। हम बात कर रहे हैं अर्थ सेवियर फाउंडेशन की। गुरुग्राम के बंधवाड़ी गांव से संचालित अर्थ सेवियर फाउंडेशन पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ बुजुर्गों की सेवा का भी अदभुत काम कर रहा है। आज अर्थ सेवियर फाउंडेशन 400 ऐसे बुजुर्गों की देखभाल कर रहा है जिन्हें घर-परिवार या फिर समाज ने एक तरह से उपेक्षित और तिरस्कृत कर दिया था। जहां ना तो किसी की जाति देखी जाती है और ना किसी का धर्म। बस एक की मकसद है और वो है मानव जाति की सेवा।

अर्थ सेवियर फाउंडेशन की स्थापना साल 2008 में रवि कालरा जी ने की। रवि कालरा का मानना है कि मानव जाति की सच्ची सेवा ही सही मायने में कर्मयोग है । रवि कालरा की संस्था का काम जितना प्रेरणादायी है उतना ही मार्मिक है उसकी स्थापना से जुड़ी कहानी। करीब एक दशक पहले रवि कालरा ताइक्वांडो ट्रेनर का काम करते थे। उनके पास कई सेंटर भी थे, लेकिन एक घटना ने उनके जीवन को झकझोर कर रख दिया। साल 2007 की बात है। दक्षिण दिल्ली में घूमते वक्त एक दिन रवि कालरा की नजर एक कचेरे की पेटी पर पड़ी, जहां एक बच्चा बैठा हुआ था, थोड़ा और नजदीक जाकर कालरा जी ने जो कुछ देखा उसने उनके अंत:मन को हिलाकर रख दिया। भूखा बच्चा कचरे की पेटी से कुछ निकालकर खा रहा था और उसके बगल में बैठा एक कुत्ता भी उसी कचरे की पेटी से अपना पेट भर रहा था यानी बच्चा और कुत्ता दोनों एक साथ कचरे की पेटी से अपना पेट भर रहे थे। ये दृश्य देखकर कालरा जी का मन बहुत व्यथित हुआ और एक साल के भीतर ही साल 2008 में उन्होंने अर्थ सेवियर फाउंडेशन की स्थापना की।

महज 10 साल के भीतर रवि कालरा का अर्थ सेवियर फाउंडेशन गुरुग्राम और आस-पास के बेसहारा बुजुर्गों के लिए वरदान बन गया। आज अर्थ सेवियर फाउंडेशन के पास शेल्टर होम्स, वृद्धा आश्रम हैं जिसमें बेसहारा लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिलता है। यहां खुशी और अपनापन मिलता है। रवि कालरा इनके साथ ऐसे घुल-मिलकर रहते हैं जैसे कोई अपनों के साथ रहता है।

रवि कालरा के साथ उनकी टीम उनके इस काम में मदद करती है, जिसमें बड़ी संख्या में वॉलेंटियर शामिल हैं। संस्था को चलाने में नूतन, हेमा बिष्ट और मोनिका गुलिया भी दिन रात जुटी रहती हैं। ये तीनों बतौर डायरेक्टर संस्था से जुड़ी हुई हैं। संस्था में रहने वाले बुजुर्गों को क्या चाहिए । उनकी सेहत को लेकर रूटीन चेकअप कब होना है या फिर कोई इमरजेंसी हो तो ये तीनों डायरेक्टर बखूबी अपने काम को अंजाम देती हैं। बदलाव और ढाई आखर फाउंडेशन के साझा आयोजन में रवि कालरा जी शामिल नहीं हो पा रहे हैं, वो उस दिन शहर से बाहर हैं। नूतन, हेमा बिष्ट और मोनिका गुलिया हमारे बीच होंगी। उनके साथ कुछ बुजुर्ग भी हमारे बीच होंगे। जीवन को समझने और अपनी संवेदनाओं को जिंदा रखने के लिए हमारे पहले सत्र के इन मेहमानों से रूबरू होना, कष्टप्रद तो होगा लेकिन जरूरी भी है।