एशिया में नफ़रत से आज़ादी की जंग बाकी है!

एशिया में नफ़रत से आज़ादी की जंग बाकी है!

पुष्यमित्र

लाल किले से पीएम मोदी, सौजन्य डीडी

वैसे तो बचपन से लेकर आज तक हमने कभी सोचा नहीं कि 15 अगस्त की तारीख का इसके सिवा और क्या महत्व हो सकता है कि यह हमारी आजादी की तारीख है। इस रोज हमने अंग्रेजों को भगा दिया था। देश पर अपना राज कायम हुआ था। मगर इस तारीख़ को कुछ और भी घटनाएं दुनिया में घटी थी। जैसे हमारे आजाद होने के एक साल बाद दोनों कोरिया भी इसी तारीख को आजाद हुए और दोनों अलग अलग तरीके से इस दिन अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। जहां तक मुझे याद आता है कि एक या दो अफ्रीकन मुल्क भी इस दिन आजाद हुए थे। और कहीं यह भी पढ़ा कि आज ही नेपोलियन महाशय का भी बर्थडे है।

मगर आज की तारीख की जो सबसे अजीब बात है वह यह है कि आज ही जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में आत्म-समर्पण किया था। खास कर ब्रिटेन इस तारीख को बहुत यादगार मानता रहा है। जापान ने भी इस तारीख को याद रखा है, मगर दूसरे तरीके से। वह इस रोज युद्ध में शहीद हुए सैनिकों और मारे गए लोगों को याद करता है। उसके आत्म समर्पण से महज एक हफ्ते पहले उस के दो शहरों पर दो परमाणु बम गिराए गये थे, जिसकी वजह से उसकी बहुत बड़ी आबादी अकाल कलवित हो गयी थी। यह कोई छोटा ज़ख्म नहीं था। यह ठीक है कि जापान उस वक़्त फासीवादी ताकतों के साथ खड़ा था, मगर उसे झुकाने के लिये कथित न्यायप्रिय मित्र राष्ट्रों ने जो कारनामा किया। आम नागरिकों पर जिस तरह परमाणु बमों का परीक्षण किया, वह दुनिया के इतिहास की सबसे जघन्य घटना है। इसलिये 15 अगस्त, 1945 की तारीख भी उदास कर देने वाली है, मगर ब्रिटिश सरकार इस तारीख को अपने शौर्य से जोड़कर देखती है।

दुःखद यह भी है कि हमारे आजादी का दिन भी इसी कथित शौर्य की याद में माउंटबेटन ने 15 अगस्त को चुना। उस पूर्व अंग्रेज फौजी के लिये यह अंग्रेजों के लिये बड़ा दिन था। इसलिये उसने तय किया कि भारत को भी इसी तारीख को आजाद किया जाएगा। यह तारीख हमारी चुनी हुई नहीं है। हमसे पूछा भी नहीं गया होगा शायद। मगर जापान के अथाह दुःख वाली तारीख को अंग्रेजों ने जाते-जाते हमपर थोप दिया। और हमारे हुक्मरानों ने इसे मान भी लिया।

दिक्कत यह है कि हम एशिया के मुल्क आपस मे बहुत लड़ते हैं, मगर हमें तबाह करके रखने वाले मुल्क के प्रति अक्सरहाँ श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं। जापान को तबाह करने की इस साजिश में न सिर्फ अमेरिका, बल्कि ब्रिटेन और साम्यवादी सोवियत रूस का भी हाथ रहा है। वहां एटम बम सिर्फ जापान को आत्म-समर्पण करने के लिये नहीं गिराया गया, बल्कि अमेरिका ने यूरेनियम और प्लूटोनियम दोनों किस्म के बमों का जिंदा लोगों पर परीक्षण किया और उसकी ताकत देखी। स्टालिन ने भी इस मौके पर अमेरिका की पीठ थपथपाई।

और हमारी आजादी क्या किसी एटम बम के परीक्षण से कम थी। 1948 तक मुल्क को आजाद करना था। मगर माउंटबेटन हड़बड़ी में थे। एक साल पहले ही तारीख तय कर दी। कागज पर दो मुल्कों का नक्शा बांट दिया और झोला उठाकर चले गए। इस बीच यहां भी लगभग उतने ही लोग मारे गए जितने जापान में एटम बम से मरे। हमारे यहां बंटवारे में लोग मर गए, मार डाले गए। मगर हम जिन्ना से तो खूब नफरत करते हैं, माउंट बेटन को श्रद्धा भाव से देखते हैं।

ब्रिटिशर्स ने हमें 200 साल तक जमकर लूटा। न सिर्फ हमें कंगाल बना दिया बल्कि हमारे कॉन्फिडेंस की भी वाट लगा दी। मगर हम ब्रिटेन से नफरत नहीं करते। हम नफरत करते हैं अपने कमजोर पड़ोसी पाकिस्तान से और वह भी हमसे नफरत करता है। दिलचस्प है कि नफरत की यह बुनियाद भी अंग्रेज ही हमारे लिये छोड़ गए हैं। वरना सदियों से हमारे साथ रहे, हमारे साथ अंग्रेजों के जुल्म का शिकार होने वाले, जरूरत पड़ने पर हमारे साथ लगभग 1920 तक अंग्रेजों से लड़ने वाले लोग हमारे दुश्मन क्यों? उसके बाद ही तो मुस्लिम लीग को लोगों ने ठीक से स्वीकार करना शुरू किया औऱ अंग्रेजों के फूट डालो और शासन करो के ट्रैप में हम फंसते चले गए।

यह उपनिवेशवादियों की नीति रही है। पहले जर्मनी को दो टुकड़े में बांटा, फिर कोरिया को। भारत को। और हमें आपस में लड़ाकर उलझा दिया। आज भी अमेरिका भारत बनाम चीन का मिथ गढ़ता है। इराक और ईरान बरसों एक दूसरे से लड़ते रहे। इजराईल और फिलिस्तीन के झगड़े जगजाहिर हैं। जापान जितनी नफरत चीन से करता है, अमेरिका और इंग्लैंड से नहीं करता। पूरा एशिया इसी नफरत का शिकार है और उसे तबाह करने वाले यूरोपीयन मुल्कों में इतना तालमेल है कि वे यूरिपियन यूनियन तक बना लेते हैं। अमेरिका तुर्की को दबा रहा है, हम अपना घाटा सह कर उसके साथ खड़े हैं। इससे पहले उसने एक-एक कर मिड्ल ईस्ट के मुल्कों को तबाह किया। अफगानिस्तान बर्बाद हुआ। मगर इन घटनाओं के वक़्त पूरा एशिया चुप रहा।

यह सब क्यों लिख रहा हूँ, इसका मकसद क्या है, मालूम नहीं। मगर ऐसा लगता है कि आजादी के 71 साल बाद भी हम उपनिवेशवादियों के किसी ट्रैप में फंसे एक दूसरे से नफरत कर रहे हैं। फिर भी आजादी के दिन की शुभकामनाएं बांटने का यह दिन तो है ही। आपको भी मुबारकबाद।


PUSHYA PROFILE-1पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।