बंगाल में मोदी दादा या ममता दीदी? तेरा क्या होगा पीके?

बंगाल में मोदी दादा या ममता दीदी? तेरा क्या होगा पीके?

डॉ चंदन शर्मा

बंगाल चुनाव में अंतिम चरण की वोटिंग के साथ नतीजों पर चर्चा शुरू हो गई है। इस बीच बंगाल चुनाव के कुछ टर्निंग प्वाइंट पर नजर डालते हैं। चार चरण के चुनाव के बाद तृणमूल के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के ऑडियो बम का विस्फोट हुआ। ऑडियो बम की गूंज बनी हुई है। सत्ता पक्ष हो अथवा विपक्ष, उसे अपने तरीके से प्रचारित कर रहे हैं, एक-दूसरे को घेर रहे हैं। भाजपा की जीत को लेकर कही गई बातों को लेकर पीके यानी प्रशांत किशोर सवालों के घेरे में हैं। ऑडियो बम को क्लब हाउस लीक भी बताया जा रहा है। क्लब हाउस चैट आइओएस पर एक ऑडियो ड्रॉप एप्लीकेशन है। चैट में पीके कुछ पत्रकारों के साथ बंगाल की जमीनी हकीकत और पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का जिक्र कर रहे हैं। ऑडियो बम फूटने के बाद भाजपा ने इसे टीएमसी की हार स्वीकारोक्ति बता दिया। वहीं तृणमूल कांग्रेस भी सतत पलटवार करती रही। प्रशांत किशोर भी कैसे चुप रहते। उन्होंने कहा, भाजपा की ओर से पूरे चैट को सार्वजनिक नहीं किया गया। इसे सेंसर किया गया। पीके ने दोबारा कहा कि भाजपा बंगाल में 100 सीट नहीं पाएगी। यदि ऐसा हुआ तो चुनावी रणनीतिकार का काम वे छोड़ देंगे। 

चैट में पीके एक पत्रकार के जवाब में कहते हैं कि देश में कुछ प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनको मोदी में भगवान दिखते हैं। गलत दिखे, सही दिखे, वह अलग बहस का मुद्दा हो सकता है। बंगाल में ज्यादातर हिंदी भाषी मोदी के समर्थक हैं। अब तक जो सर्वे सामने आए हैं, उसमें मोदी और ममता दोनों बराबर लोकप्रिय हैं। मोदी लोकप्रिय हैं, इसमें कोई शक नहीं है। बंगाल ने भाजपा का स्वाद चखा नहीं है। लोगों को लग रहा है कि 30 साल 35 साल से जो नहीं मिल रहा है, बीजेपी आएगी तो वो मिल जाएगा। यहां एंटी इनकंबेंसी भी केंद्र के खिलाफ नहीं है, राज्य सरकार के खिलाफ है। मोदी की रैली में भीड़ आने का एक कारण ध्रुवीकरण है और वो लोकप्रिय भी हैं। ऑडियो में दावा है कि बंगाल में जो ध्रुवीकरण हुआ है. उसके कारण करीब एक करोड़ से ज्यादा हिंदी भाषी और दलित समुदाय इस बार मोदी जी के साथ है। लोकसभा में ही इसका असर दिखा था।

अप्रैल के मिजाज को समझने के लिए थोड़ा पीछे लौटते हैं। 28 नवंबर 2019 को बंगाल में तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे घोषित हुए। ये तीन सीटें थीं, खड़गपुर सदर, कालियागंज एवं करीमपुर। तीनों पर टीएमसी ने जीत का परचम लहराया। यहीं से बंगाल में प्रशांत किशोर के प्रवेश की राह खुल गई। तीन सीटों के उप चुनाव के लिए ममता दीदी ने प्रशांत किशोर को रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी। उपचुनाव के परिणाम से तय होना था कि विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर तृणमूल के रणनीतिकार की भूमिका में रहेंगे अथवा नहीं। उप चुनाव में जीत के बाद ममता और अभिषेक बनर्जी पीके के कायल हो गए। दरअसल लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत से ममता बनर्जी भी सदमे में थी। बंगाल में मोदी का जादू चल चुका था। भाजपा का वोट शेयर तृणमूल से बस साढ़े तीन प्रतिशत कम रह गया था। भाजपा के सीटों की संख्या दो से बढ़ कर 18 पहुंच गई थी तो ममता की सीटें 34 से घट कर 22 पर अटक गई थी।

ममता के साथ पीके की किस्मत भी दावं पर लगी।

प्रशांत किशोर की टीम के लिए नए ग्राहक तैयार करने का यह सही समय था। बिहार में उनका कार्यालय बंद ही हो चुका था। ऐसे समय में आईपैक यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी की टीम की मीटिंग ममता बनर्जी और भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ हुई। ममता ने पीके को उप चुनाव की तीनों सीटों पर जीत दिलाने का लक्ष्य दिया। पीके ने इसे चुनौती के रूप में लिया। खड़गपुर सदर में तृणमूल का जीतना भाजपा के लिए बड़ा झटका था। यह सीट बंगाल भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष के लोकसभा सदस्य बनने से खाली हुई थी। टीएमसी के बिमलेंदु सिन्हा ने करीमपुर से जीत हासिल की। कालियागंज को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है। जहां टीएमसी प्रत्याशी तपन देब विजयी हुए। धीरे-धीरे टीएमसी की रणनीति पीके की टीम तय करने लगी। इसका दुष्परिणाम भी हुआ। बड़े-बड़े नेता तृणमूल छोड़ भाजपा के होते चले गए। भाजपा में आए ज्यादातर नेताओं ने खुले तौर पर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेेक बनर्जी के बढ़ते कद और पार्टी में प्रशांत किशोर के बढ़ते हस्तक्षेप को ही टीएमसी छोड़ने का कारण बताया। टीएमसी के कुछ नेताओं के भाजपा में जाने का कारण आर्थिक नुकसान भी था। टीएमसी का ज्यादातर फंड आईपैक इस्तेमाल करने लगी। एक प्रेसवार्ता तक करने के लिए टीएमसी के नेताओं को पीके की टीम पर निर्भर होना पड़ रहा था। टीएमसी का बजट आईपैक को शिफ्ट होता गया। प्रशांत किशोर के काम करनेे का तरीका भी यही रहा है। जिस राज्य में भी डील करते हैं वहां खुल कर काम करने के नाम पर पार्टी पर ही अप्रत्यक्ष कब्जा कर लेते हैं। पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही हुआ।

बंगाल के लिए आईपैक के 1500 कर्मचारी चुनाव मैदान में डटे रहे। हर विधानसभा में प्रत्यक्ष तौर पर चार-चार आदमी पदस्थापित किए गए। इसके अलावा 400 लोग मॉनिटरिंग के लिए नियुक्त किए गए। सूत्रों के मुताबिक विधानसभा वाइज काम करनेवाले वॉलेंटियर कम सैलरी व कमीशन के आधार पर पर रखे जाते हैं। दो वॉलेंटियर का काम केवल व्हाटसएप ग्रुप बनाना होता है और विधानसभा के नए लोगों को जोड़ऩा। दो लोग जो पीके के कार्यालय से जाते हैं, वॉलेंटियर की मदद करते हैं। सबसे ऊपर लीडरशीप टीम होती है, जिसे एलटी बोला जाता है। एलटी में चार लोग होते हैं, जिनकी ज्यादातर मीटिंग बेहद गोपनीय होती है। इसमें चार लोगों के अलावा आईपैक के निदेशक शामिल होते हैं। ऐसी ज्यादातर मीटिंग में प्रशांत खुद भी मौजूद होते हैं। गोपनीय बैठकों में सरकारी योजनाओं के अमल, मतदान के रुझान, मतों के  ध्रुवीकरण,  जातीय समीकरण सहित तमाम मसलों पर चिंतन-मंथन होता है, रणनीति तय की जाती है। ईसी मेंबर इसके नीचे आते हैं। इलेक्शनरी काउंसिल में 18 से 20 लोग होते हैं। पीआईयू यानी पॉलिटिकल इंटेलिजेंस यूनिट, डीटी यानी डिजिटल टीम जैसी कई अलग-अलग टीमें भी होती है। टीम में जरूरत के मुताबिक चार से बीस तक सदस्य होते हैं।

आईपैक की टीम एक साथ कई मोर्चे पर काम करती रहती है। जिस प्रोजेक्ट में लग गए, उसमें संपूर्ण फोकस। बंगाल में आईपैक के लोगों के अलावा हिंदी भाषी कैंपेन के नाम से अलग से एक टीम बनाई गई। खुद प्रशांत किशोर इसके कामकाज की समीक्षा करते रहे। इस टीम ने हिंदी भाषियों को आकर्षित करने के लिए पूरे साल दर्जनों छोटे बड़े कैंपेन लांच किए। प्रशांत साफ तौर पर यह मान रहे थे कि हिंदी भाषी वोट बैंक ममता से खिसक चुका है। इसी टीम ने ममता के हिंदी भाषियों के साथ एक्सक्लूसिव कार्यक्रम भी रखवाए। इसी टीम से ममता के वायरल भाषण को तैयार किया जाता था, जिसमें कहा गया कि ठेकुआ भी खाता है, लिट्टी भी खाता है। ममता के इसी भाषण में छठ की महिमा से लेकर हिंदी भाषियों के योगदान और सहयोग की बात की गई थी। आईपैक के सर्वे में बंगाल में 100-110 सीट को आसान माना गया था जहां ममता के काम पर कैंपेन आदि चला कर दोबारा जीत हासिल की जा सकती थी। इसके लिए दीदी के बोलो, बंगाल गर्वो ममता आदि कई कैंपेन चलाए गए। द्वारे सरकार जैसे कार्यक्रम सरकारी स्तर पर ग्रासरूट लेवल पर चलाए गए। 70-80 बिग फाइट सीट थी, जिस पर टिकट काटने के लिए प्रस्ताव दिया गया। इसके अलावा डिफिकल्ट सीटें चिह्नित की गई। सर्वे के मुताबिक ऐसी सीटों पर जीत मुश्किल लगी। इसके लिए पीके की टीम ने गंभीर प्रयास शुरू किए। स्वाभाविक तौर पर सबके लिए अलग-अलग बजट तय किया गया। इतनी कवायद का कितना लाभ ममता को मिला है, यह दो मई का परिणाम बताएगा। यह तय है कि टीएमसी की सफलता और विफलता में प्रशांत का भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। यह भी सच है कि आईपैक को प्रत्यक्ष तौर पर डायरेक्टर प्रतीक जैन देखते हैं। ऐसे में बंगाल में भाजपा की बड़ी जीत पर प्रशांत अपने आप को कुछ दिनों के लिए इस काम से स्ट्रेटजी के तहत अलग कर लें, तो कोई आश्चर्य नहीं है। वे लगातार बोलते रहे हैं कि बंगाल में भाजपा के 100 सीट से अधिक जीतने पर वे अपना काम छोड़ देंगे।      

ऑडियो चैट लीक कांड के बाद प्रशांत किशोर को लगातार सफाई देनी पड़ रही है। सोशल मीडिया पर उन्हें भाजपा का एजेंट भी बताया जा रहा है। पीके से नाराजगी बढऩे पर एक बार बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा था कि अमित शाह के फोन करने पर उन्होंने पीके को जेडीयू उपाध्यक्ष बनाया था। हालांकि इस बयान के पीछे नीतीश और प्रशांत में बढ़ती कटुता रही थी। 2014 तक भाजपा के रणनीतिकार रहे पीके की नजदीकी नीतीश के साथ ऐसी हुई जेडीयू के उपाध्यक्ष तक हो गए। बिहार चुनाव में नीतीश और लालू की जोड़ी को कामयाब करने का श्रेय भी पीके को जाता है। हालांकि राजद का साथ ज्यादा दिन नीतीश को नहीं भाया, न ही नीतीश का साथ पीके को। 2020 में बिहार विधानसभा का चुनाव था। 2019 से ही प्रशांत किशोर ने जदयू की पार्टी लाइन से हटकर बयानबाजी शुरू कर दी थी। दरअसल पार्टी के अंदर भी आरसीपी सिंह सहित कई नेता पीके का विरोध लगातार कर ही रहे थे। आखिरकार पीके नीतीश से अलग हुए। इतना ही नहीं उन्हें अपना बिहार कार्यालय तक समेटना पड़ा। इसके बाद पीके का पूरा फोकस बंगाल पर ही चला गया।

आईपैक की आड़ में राजनीति में सीधे तौर पर जाने की कोशिश में अब तक विफल ही रहे हैं प्रशांत। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने तक वह भाजपा के साथ थे। उसके बाद कई राज्यों में आईपैक के लिए चुनावी रणनीति बनाते रहे। बंगाल चुनाव से पहले भाजपा को सौ से ज्यादा सीट मिलने पर अपना काम छोड़ देने की घोषणा करने के बाद चुनाव के बीचों बीच लीक ऑडियो चैट में भाजपा की जीत की बात करना भविष्य के लिए नया रास्ता तैयार करने की भी रणनीति दिखती है। सवाल उठना लाजिमी इसलिए भी कि पीके जैसे बड़े चुनावी रणनीतिकार एक चैट की प्राइवेसी ओपन रखने की गलती कैसे कर सकते हैं। इस ऑडियो चैट से इतर भी प्रशांत किशोर कई बार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा के लिए बोलते नजर आए हैं। शिवसेना से रिश्ते ठीक करने के प्रयासों की खबर भी मीडिया में उछली थी।

पीके पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद पंजाब का रुख करेंगे, ऐसा माना जा सकता है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए अपना प्रधान सलाहकार नियुक्त किया है। हालांकि इस पर प्रशांत किशोर की टीम ने स्पष्ट किया है कि पंजाब के आगामी चुनाव से इसका कोई वास्ता नहीं है। अमरिंदर सिंह के पिछले चुनावी वादों पर कितना अमल हुआ, इसकी पड़ताल कर पंजाब सरकार को सलाह देने भर का समझौता हुआ है। हालांकि जानकार बताते हैं कि अमरिंदर और पीके का आपसी सामंजस्य अच्छा है। इसलिए पंजाब के विधानसभा चुनाव पूरे होने तक पीके उनके साथ रहेंगे। साउथ में भी पीके की टीम अपना आधार और बाजार तलाश ही रही है।

जानिए क्लब हाउस चैट को-

पिछले साल जब दुनिया कोराना से जूझ रही थी, गूगल में काम कर चुके रोहन सेठ का एक ऑडियो चैट एप्लीकेशन चंद महीनों में ही हिट हो गया। अप्रैल 2020 में अल्फा एक्सप्लोरेशन कंपनी के डेविड पॉल के साथ मिल कर बनाया गया यह एप्लीकेशन एपल के आईओएस प्लेटफार्म के जरिए एक करोड़ से ज्यादा डाउनलोड हो चुका है। यह ऐसा ऐप है जिसमें ऑडियो के ज़रिए सामूहिक बातचीत की जा सकती है। लिखने और उसके बाद पोस्ट करने का झंझट नहीं होने से भी लोग इसे पसंद कर रहे हैं। इस ऐप में कई तरह के चैट-रूम होते हैं। हर क्लब में किसी एक टॉपिक पर बातचीत होती है। पसंद के टॉपिक पर चर्चा करने वाले क्लब को जॉइन कर वहां हो रही बातचीत सुन सकते हैं। टेस्ला के संस्थापक एलन मस्क, फेमस न्यूज एंकर ओपरा विनफ्रे और फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग भी इस प्लेटफार्म पर आ चुके हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में यह इतनी जल्दी हिट हो गया। अब इसे एंड्रायड प्लेटफॉर्म पर भी लाने की तैयारी है।


(चंदन शर्मा। दैनिक जागरण, धनबाद संस्करण के संपादकीय प्रभारी।)