‘पिंक’ के मुरीद अब ‘ऐसी-वैसी लड़की’ का तमगा बांटते हैं!

‘पिंक’ के मुरीद अब ‘ऐसी-वैसी लड़की’ का तमगा बांटते हैं!

शालू अग्रवाल

फिल्म पिंक का एक सीन

पता नहीं हम कब सुधरेंगे। मुझे उस वक्त का इंतज़ार है जब कथनी ही करनी होगी, इनके बीच का भेद मिट जाएगा। ये भेद मन को बहुत सालता है, विशेषकर अगर यह भेद महिलाओं के सम्मान से जुड़ जाये तो पीड़ा गहरी होती है। ऐसा ही एक वाकिया आज हुआ। लगभग 4-5 रोज पहले मेरी एक सहेली से मुलाकात हुई। वो एक निजी कम्पनी में नौकरी करती है। एक आयोजन के कवरेज में हम मिले। इस आयोजन में शहर की अन्य महिलाएं व पुरुष भी आमंत्रित थे, जो मुझे जानते हैं। सहेली से काफी देर बातचीत के बाद में  प्रोग्राम से निकल आई, वो भी चली गई।

कल दुबारा एक अन्य प्रोग्राम की कवरेज के दौरान मेरे एक परिचित (पुरुष) मुझसे मिले, जो उस दिन भी मिले थे। हालचाल पुछने के बाद उन्होंने मुझसे कहा- ‘उस दिन आप उस प्रोग्राम में किस लड़की से बात कर रही थी। वो बहुत ऐसी-वैसी लड़की है। बड़ी हाई-फाई सी। एक दिन मैंने उसे सिगरेट पीते देखा था। आप कहाँ उससे मेलजोल रखी हैं। ये तो बात करने लायक भी नही हैं। सिगरेट पीती है तो पता नही क्या क्या करती होगी?’

फिल्म पिंक का एक सीन

उनके श्रीमुख से यह शब्द सुनकर मुझे काफी गुस्सा आया। ये वही आदमी है, जिसने pink फिल्म देखने के बाद मुझसे क्या कई लोगों से कहा था- बड़ी अच्छी फिल्म है। हम लोग लड़कियों के चरित्र का अंदाजा उनके कपड़ों से लगाते हैं जो ग़लत है। लोगों को अपनी छोटी सोच सुधारने के लिए पिंक देखनी चाहिए और पता नही क्या क्या। और आज खुद एक अच्छी खासी लड़की को कह रहे हैं कि वो सिगरेट पीती है इसलिए ऐसी वैसी लड़की है।

आखिर ये ऐसी वैसी शब्द का  मायने क्या है? लड़की दुपट्टा पहनकर निकले तो वो ओल्ड पुरानी सोच की है। जीन्स में निकले तो ऐसी वैसी। पिंक जैसी फिल्में देखकर निर्माता की तारीफ करते नहीं थकेंगे। हॉल में टसुए बहाएंगे। सोशल मीडिया पर चैटिंग के लिए सुंदर लड़की खोजेंगे, और किसी लड़की ने अगर जीन्स पहन ली, खुलकर ना बोल दिया तो उसे ऐसी वैसी लड़की बोलेंगे। मतलब क्या है ये ऐसी वैसी का। फिर तो जो लड़का पान चबाये, सिगरेट को हाथ भी लगा दे, तंबाकू छू ले, नेकर पहने, हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करे वो घोर नास्तिक, चरित्रहीन है। ऐसे सभी लोग जो दुकानदार हैं, ऑफिस या अन्य जगह नौकरी करते हैं, जिनका वास्ता महिलाओं से हर समय होता है, सभी बहुत ही ऐसे वैसे टाइप हैं, जो खानदान की इज्जत मिटटी कर चुके हैं।


शालू अग्रवाल। मध्यप्रदेश के जबलपुर की निवासी। पिछले कई सालों से मेरठ में रहते हुए पत्रकारिता में सक्रिय। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर और सीसीएस, मेरठ से उच्च शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का अध्ययन। आपकी संजीदा और संवेदनशील पत्रकारिता को कई संस्थाओं ने सराहा और सम्मानित किया।⁠⁠⁠⁠