क्या इस सदी में गंगा वाकई साफ हो पाएगी?

क्या इस सदी में गंगा वाकई साफ हो पाएगी?

सत्येंद्र कुमार यादव

ऋषिकेश में गंगा

दिल्ली में 28 मई को एक ई रिक्शा चालक की इसलिए हत्या कर दी गई कि उसने दो युवकों को खुले में पेशाब करने से रोका। दोनों युवकों ने अपने 20 से 25 साथियों के साथ मिलकर ई-रिक्शा चालक को इतनी बेरहमी से पीटा कि उसकी मौत हो गई। स्वच्छ भारत अभियान और नमामि गंगे योजना क्यों दम तोड़ रही है, इसके पीछे ये कारण भी हैं। किसी को सड़क पर गंदगी फैलाने से रोकने पर मारपीट की नौबत आ जा रही है। नॉर्थ दिल्ली के जीटीबी नगर मेट्रो स्टेशन की घटना ताजा उदाहरण है।

24 मई को मित्र रंजेश शाही के साथ मैं ऋषिकेश घूमने गया था। गंगा में डुबकी लगाई और सैर सपाटा भी किया। गंगा में रॉफ्टिंग के दौरान जब मैंने गंगा किनारे खड़ी इमारतों, होटलों, दुकानों पर नजर डाली तो देखा कि गंदे नाले गंगा में गिर रहे हैं। जितना कचरा है वो गंगा किनारे रखा जा रहा है। यानि पूरी गंदगी गंगा में फेंकी जा रही है। कोई किसी को रोकने वाला नहीं है। केंद्र सरकार नमामि गंगे योजना पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। पता नहीं उन पैसों से गंगा की सफाई हो रही है या पैसों की सफाई। नगरों की साफ सफाई, कचरा डंप करने के लिए जगह की व्यवस्था करना नगर-निगम का काम होता है। केंद्र से लेकर राज्य सरकार और नगर निगम बीजेपी के पास है। फिर अपनी सरकार की योजनाओं पर अमल क्यों नहीं कर रही है बीजेपी ?

गंगा में गिरता प्रदूषित पानी ।

गंगा यानी वो नदी जो हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक के विशाल भू-भाग को जीवन देती है। वो नदी जिसके जल को अमृत की उपमा दी जाती है। जिसके जल का आचमन कर लोग खुद को धन्य मानते हैं। लेकिन अपने उद्भव से अविरल गंगा की निर्मल धारा पहाड़ों से उतरते ही जहरीली हो जाती है। 15 दिन पहले एक RTI के जरिए खुलासा हुआ कि हरिद्वार में गंगा का पानी नहाने योग्य नहीं है। क्योंकि हरिद्वार में करीब 60 से ज्यादा नालों का गंदा पानी गंगा में मिल रहा है। हरिद्वार से पहले ऋषिकेश में कितने नाले गंगा में गिर रहे हैं उसकी बात तो छोड़ दीजिए। इन गंदे नालों और गंगा में गिरने वाले कचरों की वजह से मैदान में उतरने से पहले ही गंगा इतनी मैली हो चुकी है कि उसके जल के आचमन से आप बीमार पड़ सकते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से RTI के तहत जो सूचना मिली वो गंगा सफाई के लिए किए जा रहे प्रयासों की हक़ीकत बता रही है। उत्तराखंड में 11 जगहों पर गंगा में जहर घोला जा रहा है। हरिद्वार के आश्रमों, धर्मशालाओं और होटलों की गंदगी भी गंगा में ही मिल रही है। नतीजा गंगा में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है।

गंगा में शहर का कचरा।

3 महीने पहले के सैंपल और 2011 के सैंपल के नतीजे करीब एक जैसे हैं। जो हाल 2011 में गंगा का था, आज भी वही है। केंद्र के मानक बताते हैं कि नहाने के पानी का स्तर 500 फिकल कोलिफोर्म प्रति 100 मिलीलीटर होना चाहिए। लेकिन हरिद्वार के सप्त ऋषि क्षेत्र में 1000, हरकी पैड़ी में 1500 और जगजीतपुर में 75 लाख फिकल कोलिफोर्म प्रति 100 मिलीलीटर पाया गया है। 2016 में लखनऊ की 10वीं कक्षा की छात्रा ने RTI के तहत जानकारी मांगी थी। NDA शासनकाल में गंगा सफाई के लिए 3 हजार 703 करोड़ आवंटित किए गए। इसमें से शुरुआती के 2 साल में 2 हजार 958 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए लेकिन इस पतित पावनी नदी की दशा जस की तस बनी हुई है। उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री इसी बात से खुश नज़र आ रहे हैं कि केंद्र ने नामामि गंगे योजना के तहत प्रदेश को 8 सौ करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। ऋषिकेश, हरिद्वार में गंगा इतनी मैली है तो जरा सोचिए कानपुर और काशी में गंगा में कितना जहर होगा ।

पहाड़ से उतरते ही जहरीली क्यों हो गई गंगा ?

वाराणसी में गंगा की स्थिति पर एक साल पहले नेशनल काउंसिल ऑफ रेडिएशन प्रॉटेक्शन मेजरमेंट्स की रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा किया गया था। रिपोर्ट में बताया कि गंगा किनारे रहने वालों को कैंसर का ख़तरा ज़्यादा है। वाराणसी में कैंसर के काफी मामले सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक गंगा में 50 फीसदी प्रदूषण सिर्फ यूपी से हो रहा है। यूपी में 12 % बीमारियों की वजह गंगा का मैला पानी है। शायद यही वजह है कि गंगा की हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2014 में केंद्र सरकार से सवाल पूछा था.. ‘क्या गंगा इस सदी में साफ हो पाएगी ? उमा भारती ने 2018 तक गंगा को साफ करने का वादा किया है। जो स्थिति फिलहाल हमारे सामने है उसमें सबसे ज्यादा जिम्मेदारी नागरिक और नगरपालिकाओं की है। इसके साथ ही राज्य और केंद्र सरकार की लापरवाही भी जिम्मेदार है। सफाई अभियान और योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिए जितना पैसे विज्ञापनों पर खर्च हो रहा है, उसकी एक हिस्से राशि से दिल्ली में हजारों शौचालय बन गए होते और ई रिक्शा चालक रविंद्र की हत्या नहीं होती। ऋषिकेश में भी कचरा रखने की व्यवस्था हो गई होती। सरकार के साथ-साथ नागरिकों में सुधार की बहुत जरूरत है। क्योंकि हम बदलेंगे तभी युग बदलेगा।


satyendra profile imageसत्येंद्र कुमार यादव,  एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रिय । मोबाइल नंबर- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है