फसल खरीद ना होने पर देवरिया के पिंडी गांव में चुनाव बहिष्कार का फैसला

फसल खरीद ना होने पर देवरिया के पिंडी गांव में चुनाव बहिष्कार का फैसला

सत्येंद्र कुमार यादव

लोकसभा  चुनाव में गांव के स्थानीय मुद्दे नदारद हैं । कोई राष्ट्रवाद के नाम पर चुनाव लड़ रहा है तो कोई गरीबी के नाम पर, लेकिन राष्ट्र में रहने वाले लोगों की सुध कितनी कौन ले रहा है ये हर कोई जानता है । इस चुनाव के बीच जब स्थानीय मुद्दों को लेकर लोग आवाज उठाते नजर आते हैं तो खुशी होती है, लेकिन जब अगले ही पल खबर आती है कि लोग जमीनी मुद्दों के लिए चुनाव बहिष्कार करने को मजबूर हैं तो दुख भी होता है । ऐसा ही एक गांव है देवरिया का पिंडी, जो लार ब्लॉक में पड़ता है। गांव के किसानों ने रविवार को फसल क्रय केंद्र की बदहाली को लेकर एक बैठक की और फैसला किया कि जब तक फसल क्रय केंद्र पर किसानों की फसल खरीदी नहीं जाएगी तब तक वो मतदान नहीं करेंगे । सवाल ये है कि आखिर हमारी सरकारें किस लिए होती हैं, हमारा सिस्टम काम क्यों नहीं करता, हमारे नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं के लिए क्यों दर दर की ठोकर खानी पड़ती है ।

ऐसा नहीं है कि पिंडी गांव या लार ब्लॉक में संसाधन नहीं हैं, सुविधाएं तो हैं लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है । खाद-बीज के लिए गोदाम है जिसका इस्तेमाल 15 साल पहले तक बेहतर तरीके से होता था । खाद-बीज वहीं से आता था । कई गांव के लिए उपयोगी था, लेकिन अब नहीं है। अब भवन जर्जर हो चुका है, हो सकता है कि इसके मरम्मत के लिए सरकार पैसे देती हो, लेकिन उन पैसों का क्या होता है? वे पैसे कहां खर्च होते हैं संबंधित सचिव या अधिकारी ही बता सकते हैं । अक्सर गोदाम की तस्वीर तब सामने आती है जब कोई सचिव नियुक्त होती है, वो गेंदाफूल के माला पहनकर अपने चंगु मंगुओं के साथ फोटो खींचवाता है और लोगों को दिखाता है । उसके बाद पता नहीं कोई इस भवन में आता जाता है या नहीं । फिलहाल गांव वाले और पड़ोसी गांव वाले यहां पर गेहूं क्रय केंद्र चालू करने की मांग कर रहे हैं। 5 मई को हुई बैठक में लोगों ने मतदान बहिष्कार का फैसला लिया और कहा कि जब तक किसानों के हित को देखते हुए इस गोदाम में काम शुरू नहीं होगा तब तक लोग आवाज उठाते रहेंगे ।

कई लोग किसानों की इस पहल का विरोध भी कर रहे हैं । उनका कहना है कि ब्लॉक पर ले जाकर गेहूं बेचिए । अगर सरकार यहां से खरीद करेगी तो उसे ट्रक का किराया देना पड़ेगा । एक रात ट्रक रोकने पर अतिरिक्त 2800 रुपए देने होंगे । इस तरह के तर्क देने वाले ये नहीं सोचते कि इस क्षेत्र में छोटी जोत के किसान हैं । अगर वो ट्रैक्टर पर गेहूं लेकर जाएंगे तो उन्हें भी किराया देना पड़ेगा, कम से कम 2000 रुपए । हर किसान अगर एक फेरी पर इतना पैसा खर्च करेगा तो उसे फायदा क्या होगा ? अगर सरकार एक ट्रक में गेहूं भरकर ले जाती है तो उससे किसानों का ज्यादा फायदा होगा। जब गोदाम में आनाज भर जाए तब आप ट्रक बुलाकर उसे देवरिया या कहीं और भेज दीजिए । छोटी जोत के किसानों के सामने दिक्कत यही होती है कि उनके पास पैदावार ज्यादा नहीं होती । ऐसे में अगर किराये में पैसे खर्च कर देंगे तो उनका नुकसान होगा । सरकार ने इसी परेशानी को देखते हुए चार-पांच गावों के बीच एक बड़े गोदाम और क्रय केंद्र बनाने का फैसला लिया था । लेकिन इसका इस्तेमाल राजनीति करने और माला पहनने तक ही सीमित रह गया है ।

परेशानी सिर्फ गेहूं क्रय, खाद-बीज की उपलब्धता को लेकर नहीं है । हमारे लार ब्लॉक पर एक महिला प्रसूति केंद्र भी बनाया गया है । बिल्डिंग चमचमा रही है लेकिन डॉक्टर नहीं हैं । हमारे गांव से देवरिया की दूरी 45 किलोमीटर है । जहां पर सदर अस्पताल है । जब भी किसी प्रेगनेंट महिला को दिक्कत होती है उसे 45 किलोमीटर दूर जाना होता है । एंबुलेंस की सुविधा तो है लेकिन वक्त पर एंबुलेंस नहीं मिलती है । ऐसे में लोग 1500 रुपए खर्च कर देवरिया जाते हैं । इसी समस्या को देखते हुए लार ब्लॉक में महिला प्रसूति केंद्र बनाया गया था ताकि इस क्षेत्र की महिलाओं को फायदा हो। लेकिन अभी तक यहां पर डॉक्टर नहीं है । इस बात से भी लोग नाराज हैं और इस चुनाव में मतदान ना करने का फैसला लिया है ।

एक गांव को क्या चाहिए ? एक गांव में क्या होना चाहिए ? अस्पताल ? वो भी है हमारे गांव में। शिक्षण संस्थान ? बीएड तक की पढ़ाई की सुविधा है । इंग्लिश मीडियम स्कूल ? वो भी है, अच्छी पढ़ाई होती है। शिक्षा के क्षेत्र  में आजादी के पहले से ही यहां सुविधाएं हैं। खाद-बीज और अनाज क्रय-विक्रय केंद्र भी है । लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ भवन होने से गांव की समस्याएं खत्म हो जाती हैं या उन सरकारी भवनों में सरकारी कर्मचारी और संसाधन भी होना चाहिए ?

ग्राम सभा पिंडी से बड़े नेताओं का संबंध रहा है । वर्तमान में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडे का संबंध भी हमारे गांव पिंडी से है। इन्होंने गांव में बहुत पहले शादी घर बनवाया था लेकिन बाकी सुविधाओं का कभी ख्याल नहीं रखा । आस पास के गांवों में 50 हजार से ज्यादा की आबादी रहती है। इतनी बड़ी आबादी की सुविधाओं की अनदेखी क्यों की जा रही है । जो लोग आवाज उठा रहे हैं, जो इन मुद्दों पर लिख रहे हैं उन्हें ही भला बुरा कहा जा रहा है । फोन कर इन मुद्दों को दफन करने का दबाव भी डाला जा रहा है । लेकिन कहते हैं कि हर समाज में कुछ लोग होते हैं जिन पर किसी धमकी, किसी का दबाव काम नहीं करता । ऐसे लोग स्थानीय मुद्दों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं । ऐसे ही लोगों में शुमार हैं प्रसेनजीत सिंह, संदीप पांडे, संदीप तिवारी शरीखे लोग । जो समाज में बदलाव के साथ सोते प्रशासन और सरकार को जगाने की मुहिम में जुटे हैं । उम्मीद कीजिए की जल्द से जल्द इनकी मुहिम असर दिखाए और सुविधाओं का लाभ पूरे इलाके को मिल सके ।


सत्येंद्र कुमार यादव, देवरिया के पिंडी गांव के मूल निवासी, एक दशक से ज्यादा वक्त से मीडिया में सक्रिय । ईटीवी, इंडिया टीवी, न्यूज नेशन जै्से देश के जाने माने मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं । संप्रति नेटवर्क 18 में कार्यरत ।