मेरे मन का चोर और उसकी ईमानदारी

मेरे मन का चोर और उसकी ईमानदारी

अरविंद सिंह की फेसबुक वॉल से साभार/

ये टीकम सिंह जी है। हुआ ये कि कल शाम गाज़ियाबाद रहने वाली बहन के पास जाने के लिए निकला तो एक बैग इनके ऑटो में छोड़ दिया। बहन के साथ गप्पे लड़ाते हुए रात साढ़े बारह बजे के आसपास याद आया कि बैग ऑटो में ही छूट गया है तो झटका सा लगा। धीरे धीरे दिमाग हिसाब लगाने लगा कि उस बैग में क्या था। मेरी बिल्कुल नई शर्ट…,कुछ और कपड़े… पगड़ी … चार्जर…, कुछ मेडिसन। एयर फोन ..और खुद ब्रांडेड बैग। मन कसैला सा हो गया।हालांकि एक सकून की बात ये भी थी कि बैग में मेरा ऑफिस का आईकार्ड भी था।जिस पर इमरजेंसी नंबर के तौर पर मेरा गांव के घर का नंबर लिखा था।बहरहाल गप्पे छोड़कर कयासों का दौर शुरू शुरू हो गया और इंसानी दिमाग जिस तरह से सोचता है, कुछ कुछ हम भी सोचने लगे। मेरा मन रह रह कर उस नई शर्ट में अटका था,जो मुझे बहुत प्यारी लगी थी और जिसका टैग भी मैंने नही हटाया था।बहन और मैं अनुमान लगाने लगे कि वो चाहे तो शर्ट बेच भी सकते है..एकदम नई है, टैग भी नहीं हटा है।कीमत देखकर उनका मन ना बदल जाये ..इयरफोन, चार्जर ,इयरफोन और बाकी सामान भी उनके काम ही आ जायेगा। कुल मिलाकर थोड़ा मन, उदास सा हो गया,अनिश्चितता की इस मनोदशा में बस एक ही उम्मीद थी कि ऑटो वाले भाईसाहब उस नंबर पर फोन कर ले।और फिर पापा-मां से नंबर लेकर मैं उनसे संपर्क कर लूँ।

खैर, मैं स्वभाव के मुताबिक एक लाइन की प्रार्थना कर सो गया। रात को ही घण्टी बजी।फोन पर पापा थे। आटो ड्राइवर भाईसाहब ने उनसे सम्पर्क किया था। वैसे ये भी पता चला कि वो सोसायटी के गार्ड के साथ ऊपर तीसरी मंजिल तक आये थे।पर जब ढूढ़ने में नाकाम रहे तो गार्ड ने उनसे खुद बैग लेकर बाद में पहुचाने की बात की, पर उन्होंने उन्हें बैग न देकर फोन किया। सुबह वैशाली मेट्रो स्टेशन पर मिलना तय हुआ।मैं नियत वक़्त पर पहुँच गया। पर वो आये नहीं, अचानक से उनके फोन उठाने भी बंद कर दिए। करीब 1 घण्टा वहीं खड़े खड़े गुजर गया। जब बहुत बार फोन उठाने पर भी कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला तो एक बार ये भी लगा कि कहीं उनका मन बदल तो नही गया।पर हक़ीक़त कुछ और थी ।उनका ऑटो दरअसल खराब हो गया था और इसलिए आने में वो लेट हो गए थे।

वो आये तो बैग थमाकर बोले- भाईसाहब चेक कर लीजिए। इससे पहले आशंकित मन दो बार उन पर सन्देह कर चुका था।और दोनों बार मेरा सन्देह ग़लत साबित हुआ था ।पर इस बार जीत विश्वास की थी । मैंने कोई बैग नहीं खोला।उनकी पीठ थपथपाई और बोला – भाई इतनी दूर तक चले आये, आप पर यकीन है।और मैं उनका आभार जताते हुए कुछ सम्मान राशि देकर चला आया।

काश ऐसे ही आशंकाए, सन्देह जीवन में हारते रहे।विश्वास जीतता रहे।टीकम सिंह जी जैसे लोग के चलते इंसानियत, ईमानदारी पर हमारा भरोसा मज़बूत होता रहे तो दुनिया कितनी ख़ूबसूरत होगी ना!

अरविंद सिंह/ मूल रूप से यूपी के सहारनपुर के निवासी, मीडिया से जुड़े हुए हैं, इन दिनों बतौर विशेष संवाददाता न्यूज नेशन चैनल में कार्यरत ।