गांधी और अंबेडकर के बीच की कड़ी थे लोहिया

गांधी और अंबेडकर के बीच की कड़ी थे लोहिया

डॉक्टर भावना

आजादी के सात दशक बाद भी हिंदुस्तान में जाति, धर्म की सियासत हो रही है। जिन नेताओं पर समाज को जोड़ने की जिम्मेदारी होती है. वही समाज में आए दिन नफरत फैलाते आपको दिख जाएंगे। जो देश संविधान के हिसाब से चलना चाहिए, उसे जाति और धर्म की धुरी पर चलाने की कोशिश हो रही है। आज अगर लोहिया होते तो मौजूदा दौर को देखकर यही सोच रहे होते कि उन्होंने ऐसे राष्ट्र की कल्पना तो कभी नहीं की। डॉ. राम मनोहर लोहिया एक महान सामाजिक चिंतक, विचारक और भविष्यद्रष्टा थे। उन्होंने समाज में हमेशा समानता की बात कही। वो हमेशा नारी को उचित स्थान देने के पक्षधर थे। उनका कहना था –“नारी को गठरी के समान नहीं बल्कि इतना शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बना अपने साथ ले चलें”।

डॉ. लोहिया ने अपने जीवन काल में अनेक सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन का नेतृत्व किया। “अंग्रेजी हटाओ ” अब तक के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलन में से एक था। इस आंदोलन के द्वारा लोहिया लाखों-करोड़ों देशवासियों को अंग्रेजी नहीं जानने की हीन-ग्रन्थि को  सदा के लिए हटाकर आत्मविश्वास से भर देना चाहते थे। उनका कहना था ” मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के  लिए छोड़ दें, जिनके मां-बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हों।” लोहिया का मानना था कि अंग्रेजी अशिक्षित जनता के बीच दूरी पैदा करती है। वे कहते थे कि हिंदी के उपयोग से लोगों में एकता की भावना  विकसित होगी और नए राष्ट्र के निर्माण से संबंधित विचारों को बढ़ावा मिलेगा। वह जात-पात के घोर विरोधी थे। उन्होंने जाति-व्यवस्था के विरोध में” रोटी और बेटी” का नारा दिया।

लोहिया का कहना था कि सभी जाति के लोग एक साथ मिलजुल कर खाना खाएंगे तथा उच्च वर्ग के लोग निम्न जाति की लड़कियों से अपने बच्चों की शादी करेंगे तभी वर्ग-विहीन समाज की स्थापना हो पाएगी। जातीयता के रंग से इतर हम मनुष्यता के रंग में लिपटे मिलेंगे। इसी के लिए उन्होंने “यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी” की स्थापना की और अमीरी- गरीबी की घटिया  सोच से अलग उच्च पदों के लिए निम्न जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया। वे समान शिक्षा के बड़े हिमायती थे। उनका कहना था कि बच्चों के लिए बेहतर सरकारी स्कूलों की स्थापना हो, जहां सभी को समान शिक्षा का अवसर मिले। डॉक्टर लोहिया पश्चिम से कोई भी सिद्धांत उधार लेकर अपने इतिहास या अपनी भाषा की व्याख्या  करना नहीं चाहते थे। हालांकि उन्होंने स्वयं जर्मनी से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। फिर भी उन्हें अपने देश की परंपरा एवं प्रतीकों से अथाह प्रेम था। शिवरात्रि के अवसर पर आयोजित होने वाला “चित्रकूट मेला” उन्हीं की संकल्पना थी।

डा. लोहिया सियासी झूठ-फरेब से अलग शुद्ध आचरण वाले व्यक्ति थे। वे  एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने अपनी ही पार्टी के नेताओं के त्यागपत्र देने की मांग कर दी थी। क्योंकि इसी सरकार के शासनकाल में आंदोलनकारियों पर गोली चलाई गई थी। लोहिया का कहना था कि “हिंदुस्तान की राजनीति में तब सफाई और भलाई आएगी जब किसी पार्टी के खराब काम की निंदा उसी पार्टी के लोग करेंगे।” वे पक्ष के साथ-साथ विपक्ष को भी मजबूत देखना चाहते थे। वह हमेशा कहते कि ” जिंदा कौमें सरकार बदलने के लिए 5 साल तक इंतजार नहीं करती”। डॉ. लोहिया अनेक सिद्धांतों, कार्यक्रमों एवं क्रांतियों के जनक माने जाते हैं।

आजादी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय नेता रहे लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जनपद के अकबरपुर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक एवं गांधीजी के अनुयायी थे। वे जब गांधीजी से मिलने जाते तो अपने पुत्र लोहिया को भी साथ ले जाते थे। लोहिया के बाल मन पर गांधी जी के विराट व्यक्तित्व का गहरा असर हुआ। ढाई साल की उम्र में ही लोहिया की माता चंदा देवी का देहांत हो गया था।

वे हमेशा ही अन्याय के विरुद्ध बिगुल बजाते रहे। उन्होंने एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया, जो इस प्रकार है। 

1  नर-नारी की समानता के लिए क्रांति

2- चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आर्थिक और दिमागी असमानता के खिलाफ क्रांति।

3- संस्कारगत जन्मजात  जाति-प्रथा के खिलाफ और पिछड़ों को विशेष अवसर के लिए क्रांति।

4-  परदेसी गुलामी के खिलाफ और स्वतंत्रता और विश्व लोकराज के लिए क्रांति।

5-  निजी पूंजी की विषमताओं के खिलाफ और आर्थिक समानता के लिए तथा योजना द्वारा पैदावार बढ़ाने के लिए क्रांति।

6-  निजी जीवन में अन्यायी  हस्तक्षेप के खिलाफ और लोकतंत्रीय  पद्धति के लिए क्रांति।

7- अस्त्र-शस्त्र के खिलाफ तथा सत्याग्रह के लिए क्रांति।

कृषि संबंधित समस्याओं को आपसी निपटारे के लिए उन्होंने ” हिंद किसान पंचायत” का भी गठन किया। वे  एक ऐसे कद्दावर नेता रूप में जाने जाते थे, जिन्होंने अपने दम पर राजनीति का रुख बदल दिया। स्वतंत्रता के बाद भी वे चुप नहीं बैठे। एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी की तरह राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपना योगदान देते रहे। उन्होंने आम-जनता से कुओं, नहरों एवं सड़कों के निर्माण के लिए अपील की। वे बहुत निडर और साहसी  व्यक्ति थे। उन्होंने ” 3 आना 15 आना” के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर होने वाले खर्च की राशि के लिए आवाज उठाई, जो आज भी चर्चित है।

लोहिया एक ऐसे युगपुरुष थे जिनका चिंतन साहस और कल्पनाशीलता अनुकरणीय है। व्यक्ति और समाज की स्वतंत्रता और तरक्की के लिए विवेकपूर्ण संघर्ष ही डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के संपूर्ण राजनीतिक जीवन का संदेश है। वे अन्याय का ताउम्र साहस के साथ प्रतिकार करते रहे। वे अकेले ही बड़ी से बड़ी ताकतों से टकरा जाते थे। इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती थी। पर, इन्होंने कभी  भी इसकी कोई परवाह नहीं की ।

दरअसल लोहिया गांधी और अंबेडकर के बीच सेतु का काम करते हैं। वे स्वतंत्रता संग्राम की तरह जाति-व्यवस्था के विरुद्ध संग्राम को भी जरूरी मानते थे। वे देश-भक्ति के साथ-साथ सामाजिक न्याय के बड़े समर्थक थे। उनका सपना  वर्ग- विहीन समाज का था। जहां मनुष्य इतिहास के उत्थान और पतन के चक्र से सर्वथा मुक्त हो, एक ऐसे विश्व का गठन कर सकें जहां जात-पात, लिंग तथा राष्ट्र में गैर-बराबरी का कोई स्थान न हो ।


डॉक्टर भावना। बिहार के मुजफ्फरपुर की मूल निवासी। पत्रकारिता और लेखन से गहरा नाता। साहित्य के क्षेत्र में कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं ।