कतार में खड़े हो समझते रहिए बट्टा खाते का गणित

कतार में खड़े हो समझते रहिए बट्टा खाते का गणित

फोटो- नरेंद्र देव ।अंबेडकरनगर । सुबह 5.45 बजे लाइन में खेड़ लोग
फोटो- नरेंद्र देव ।अंबेडकरनगर । सुबह 5.45 बजे लाइन में खेड़ लोग

आशीष सागर

नोटबंदी के बाद से तो ऐसा लग रहा है जैसे शहर और गांव की दूरियां मिट गईं। ऐसा इसलिए क्योंकि महानगर से लेकर गांव के गलियों तक अगर कुछ नजर आ रहा है तो वो है लाइन में खड़े लोग। पीएम मोदी की अपील के बाद से लोग पूरे धैर्य के साथ कतार में लगे हैं। आलम ये है कि कहीं देर रात से लोग बैंक के बाहर बैठे नजर आ रहे हैं तो कहीं सुबह 5 बजे से ही बैंक खुलने का इंतज़ार हो रहा है। सरकारी आदेश के मुताबिक बैंको को 8 बजे सुबह खुल जाना चाहिए लेकिन कामकाज 10 बजे से ही शुरू हो पा रहा है। कई इलाकों में तो लाइन इतनी लंबी है कि नंबर आ जाए तो लोग खुद को खुशकिस्मत समझते हैं। हालांकि वित्त मंत्री जेटली की नजर से देखें तो सिर्फ शुरुआत के दो दिन दिक्कत थी उसके बाद हालात सामान्य हो गए। हो सकता है जेटली साहब सिर्फ आजकल अपने कुछ पसंदीदा न्यूज चैनल देखकर सुकून महसूस कर रहे हों । जबकि सच्चाई इसके उलट है ।

बांदा में हर दिन लाइन का यही हाल

अब यूपी के बांदा जिले की ही बात करें तो यहां आलम ये है कि बैंकों के पास जनता को बांटने के लिए पैसे ही नहीं हैं। नोटबंदी के नौवें दिन बांदा के सिविल लाइन इलाहाबाद बैंक में लाइन में खड़े लोगों को देने के लिए नोट नहीं बचे। जबकि जमा इतना ज्यादा हो गया कि नोट रखने की जगह नहीं थी। कमोबेश यही आलम बांदा शहर से लेकर गांव की गलियों तक है। अब तो हालात ये होते जा रहे हैं कि एटीएम के बाहर मारपीट और लूटपाट भी होने लगी है। यहां 15 नवम्बर को एक किसान से  सात हजार रूपये बैंक जाते समय छिन लिए गए। गाँव के गरीब, किसान और जिनके घरों में शादी-विवाह है उनकी दुर्दशा सबसे ज्यादा है। अब जाकर सरकार को उनके दर्द का एहसास हुआ और शादी-विवाह वाले घरों में निकासी की सीमा बढ़ाकर ढाई लाख रुपये की गई।

गांवों में किसान बेहाल है। बुआई का मौसम है। न तो बीज खरीदने का पैसा है और ना ही खेत की जुताई देने के लिए कोई इंतजाम। ऐसे में किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है। अगर बुआई समय से नहीं हुई तो फसल अच्छी नहीं होगी और जब फसल ठीक नहीं होगी तो 5 महीने बाद गरीब किसान खायेगा क्या? किसानों की इसी फिक्र को देखते हुए सरकार को 10 दिन बाद तरस आया और नौकरीपेशा लोगों के मुकाबले एक हजार रुपये ज्यादा निकालने की छूट दे दी। शायद सरकार को फैसला लागू करने से पहले लोगों की मुश्किलों का अंदाजा नहीं रहा होगा, यही वजह है कि अब हर दिन नियमों में बदलाव किया जा रहा है ।

नई सहूलियत के मुताबिक जिन किसानों को फसल लोन मिला है वो खाते से हर हफ्ते अब 25 हजार रुपये निकाल सकते हैं, साथ ही जिन किसानों को खाते में फसल का पैसा चेक या ऑन लाइन ट्रांसफर हुआ है वो भी 25 हजार तक निकाल सकते हैं। फसल बीमा की किश्त जमा करने की समय सीमा 15 दिन बढ़ा दी गई है। इसके अलावा जिनके घर शादी है वो केवाईसी खाते से ढाई लाख रुपये तक निकाल सकते हैं। जबकि पंजीकृत व्यापारियों को हर हफ्ते 50 हजार रुपये तक निकालने की मंजूरी है। यही नहीं चुनिंदा पेट्रोल पंपों पर अब एटीएम जैसी सुविधा मिलेगी ।

साभार- प्रवासना डॉट कॉम
साभार- प्रवासना डॉट कॉम

एक तरफ सरकार ने ब्लैकमनी खत्म करने के नाम पर देश को लाइन में खड़ा कर दिया तो वहीं दूसरी ओर देश के साथ धोखाधड़ी करने वाले पूंजीपतियों के साथ नरमी की खबरें आ रही हैं। आपको याद होगा जब जनधन खाते खुले और उसमें करोड़ों रुपये जमा हुए तो एक झटके में बैंकों ने वो पैसा उठाकर बड़े उद्योगपतियों को दे दिया। अब खबर है कि सरकार ने माल्या समेत तमाम बड़े पूंजीपतियों का करीब 7 हजार करोड़ का कर्ज बट्टा खाता में डलवाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। सामान्य शब्द में कहें तो एक तरह से माफ कर दिया है। एक तरफ बुंदेलखंड में किसानों के 10-20 हजार रुपये कर्ज वसूली के लिए बैंक पिछले दिनों लगातार दबाव बना रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ जनता के पैसे को डिफाल्टरों पर सरकार लुटा रही है। हालांकि मीडिया में ख़बरें आने के बाद एसबीआई और सरकार को सफाई देनी पड़ी और कर्जमाफी को तकनीकी शब्दों से जोड़ कर बताया गया कि माल्या समेत तमाम बड़े बकायादारों को बट्टा सूची में डाला गया है। अब ये बट्टा सूची क्या है ये तो बैंक और आर्थिक जानकार ही बेहतर बता सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो सरकार को चाहिए कि किसानों के कर्ज को भी बट्टा सूची में डाल दिया जाए। कम से कम किसान माल्या जैसे भगोड़े तो नहीं हैं। खैर अब इस नोटबंदी का देश की अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ेगा, इससे कितना कालाधन सरकारी खजाने में जमा होगा, भष्टाचार में कितनी कमी आती है इन सभी सवालों के जवाब के लिए इंतजार करना होगा । फिलहाल लाइन में लगे रहिए और जबतक हो सके धैर्य बनाए रखिए ।


ashish profile-2बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट फेसबुक पर एकला चलो रेके नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected]  पर संवाद कर सकते हैं।