जौनपुर में किसानों की जिंदगी बदलने में जुटे सत्यप्रकाश

जौनपुर में किसानों की जिंदगी बदलने में जुटे सत्यप्रकाश

रवि पाल


 

 

 

 

 

शहर की भाग दौड़ भरी जिंदगी में हर किसी को कुछ ना कुछ समझौता करना पड़ता है, किसी को समय के साथ, किसी को अपने वजूद के साथ तो किसी को घर-परिवार के साथ । लेकिन बहुत कम ही ऐसे लोग होते हैं जो सिर्फ अपने दिल की सुनते हैं और उसी रास्ते पर चलते हैं जो उनका मन करता है। बेशक इसमें कठिनाइयां आती हैं, फिर भी वो हार नहीं मानते । ऐसी ही एक शख्सियत है सत्यप्रकाश आजाद । उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में जन्मे सत्यप्रकाश ने वाराणसी में पढ़ाई-लिखाई की। दिल्ली में कुछ दिन पत्रकारिता भी की, लेकिन आखिरकार अपनी माटी की महक उनको जौनपुर खींच ले गई और आज वो किसानों के हित के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं। यही नहीं सत्यप्रकाश के पास एक बड़ी टीम है। इन लोगों ने एक गांव भी गोद लिया है। आखिर क्यों सत्यप्रकाश ने छोड़ी दिल्ली में नौकरी और क्या है उनका मकसद। बदलाव के साथी रवि पाल ने उनसे बात की।

बदलाव- आप दिल्ली में अच्छी खासी नौकरी छोड़कर घर क्यों लौट आए ? दिल्ली रास क्यों नहीं आई ?

सत्यप्रकाश सच बताऊं तो दिल्ली मुझे कभी भाई नहीं। वहां की भागदौड़, किसी के पास किसी के लिए वक्त नहीं । हम अपने दोस्तों के लिए भी वक्त नहीं निकाल पाते। ऐसी जिंदगी भी जीकर क्या करना। महानगरीय जीवन में हम मशीन की तरह व्यवहार करने लगे हैं । मैं गांव में पला-बढ़ा आज जो कुछ बन पाया हूं इसी मिट्टी की देन है, लिहाजा गांव के लिए कुछ करने की कसक हमेशा शालती रही और एक दिन बोरिया-बिस्तर बांधा और घर वापसी कर ली ।

बदलाव- कितने साल दिल्ली में रहे और क्या किया, कब लगा कि अब घर लौट चलना चाहिए ?

सत्य प्रकाश मैंने काशी विद्यापीठ से पत्रकारिता की डिग्री ली और फिर दिल्ली चला गया। ये बात करीब एक दशक पहले की है। मैंने दिल्ली में कुछ मीडिया संस्थानों में काम किया। पढ़ाई के दौरान ही समाज के लिए कुछ करने का मन करता था । 2007-10 के बीच दिल्ली में था उसी दौरान अन्ना आंदोलन से जुड़ने का सौभाग्य मिला। हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद की, लेकिन कुछ लोगों ने अन्ना को छोड़ सियासत का रास्ता अख्तियार कर लिया। लिहाजा ऐसे आंदोलनों से मोहभंग होने लगा। साथ ही मीडिया की नौकरी से तो पहले ही उकता चुका था। 2010 के आखिर में दिल्ली को अलविदा कह दिया और घर वापसी कर ली।

बदलाव- गांव लौट कर आपने यहां के जीवन में खुद को कैसे ढाला। किसानों की जिंदगी में कुछ अच्छा करने की सोच को कैसे आगे बढ़ाया ?

सत्य प्रकाश देखिए देश का अन्नदाता जब तक खुशहाल नहीं होगा तब तक विकास के सारे दावे बेबुनियाद हैं । अन्ना आंदोलन से संगठन शक्ति का अंदाजा मुझे चल गया था लिहाजा गांव लौटने के बाद मैंने देखा कि पूर्वांचल के किसानों का कोई खास संगठन नहीं है जिस वजह से वो चाहकर भी अपनी आवाज नहीं उठा पाते। लिहाजा, कुछ साथियों के साथ मिलकर 2011 में किसान मंच का गठन किया और पिछले 7 साल से किसानों के साथ ही जीवन कट रहा है।

बदलाव- आप किसानों की सारी परेशानियों की असली जड़ किसे मानते हैं ?

सत्य प्रकाश- देखिए मैं पूरे देश के किसानों के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन हां पूर्वांचल के किसानों की सबसे बड़ी समस्या है- जानकारी का अभाव। यहां अमूमन हर किसान गेहूं, चावल से आगे किसी और फसल के उत्पादन के बारे में कम ही सोचता है। इसलिए जब दूसरी फसलों का उत्पादन करेगा ही नहीं तो भला उसके बाजार को कैसे समझेगा।

सरकारें बदलती है, लेकिन सिस्टम नहीं। किसानों को अपने छोटे-छोटे काम के लिए रिश्वत देने को मजबूर होना पड़ता है। कृषि विभाग के अधिकारी सुनते नहीं, ऑफिस में बैठे ही सारा डाटा मेंटेन कर देते हैं। हालांकि कुछ अधिकारी अच्छा काम कर रहे हैं, जिनकी वजह से हम लोग भी किसानों के बीच अच्छी चीजें और जानकारी पहुंचा पा रहे हैं, लेकिन जरूरत है पूरे सिस्टम को ईमानदार बनाने की।

बदलाव- आपका संगठन किस जिले में काम करता है ?

सत्य प्रकाश अभी तो हमारा फोकस जौनपुर जिले पर है। जिले के सभी 21 ब्लॉक तक हमारी टीम अपनी पहुंच बना चुकी है। हमने इन 7 सालों में किसानों की मुश्किलों को देखा और समझा है। लिहाजा अब हमारी कोशिश किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की है, इसके लिए हम नाबार्ड की भी मदद ले रहे हैं?

नाबार्ड किसी एक किसान को सीधे आर्थिक सहायत और तकीनीकी सहायता नहीं पहुंचाता। वो समूह की मदद करता है और उसे आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करता है। इसलिए जब हमने नाबार्ड के काम करने के तरीके को समझा तो सबसे पहले गांवों में छोटे-छोटे समूह बनाने पर जोर देने लगे। सच बताऊं तो मैं ये देखकर हैरान रह जाता हूं कि हम गांव-गांव दिनभर भटकते हैं और एक गांव से समूह बनाने के लिए 8-10 लोग भी नहीं मिलते। दरअसल पूर्वांचल के किसान ने अभी तक समूह की ताकत को ज्यादा महसूस नहीं किया है।

पहले लोग हमारी बातों पर भरोसा नहीं करते थे। लिहाजा हम लोग मशरूम, फूलों की खेती, मत्स्य पालन, पशु पालन जैसा सफल व्यवसाय करने वाले किसानों को लोगों के बीच लेकर गए। आज हमारे संगठन से सीधे तौर पर करीब 1500 किसान जुड़ चुके हैं। साथ ही तमाम ऐसे किसान हैं, जो हमारा सहयोग भी कर रहे हैं ताकि दूसरे किसान जागरूक हो सकें।

बदलाव- आपके संगठन की अगली योजना क्या है ?

सत्य प्रकाश- इस समय हम किसानों की अपनी खुद की कंपनी बनाने में जुटे हैं। नाबार्ड की मदद से एक कंपनी बनाई है जिसका मकसद किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाना और उत्पाद की मार्केटिंग करना है। यही नहीं छोटे-छोटे समूहों को अगरबत्ती, मोमबत्ती, मच्छरदानी बनाने जैसे तमाम व्यवसाय की ट्रेनिंग भी दी जा रही है ताकि जिनके पास खेत नहीं हैं वो भी आत्मनिर्भर बन सकें। हम गांधी के आदर्शों पर चलने वाले लोग हैं जिनसे हमें कुछ अलग करने की प्रेरणा मिलती है। अगर हम गांधी को अपना आदर्श मानते हैं तो भगत सिंह और आजाद से प्रेरणा लेते हैं जिससे सोच और ऊर्जा दोनों हमें मिलती है और उसी की बदौलत काम कर रहे हैं।


रवि पाल/ मैनपुरी के मास्टर्स इन फ्लावर नाम से चर्चित । एमबीए की पढ़ाई करने के बाद नोएडा में कुछ दिन नौकरी की और बाद में नौकरी छोड़ गांव आकर फूलों की खेती करने लगे । आज 100 से ज्यादा किसानों को फूलों की खेती का प्रशिक्षण दे चुके हैं और करीब 90 एकड़ में फूलों की खेती करा रहे हैं ।