16 अगस्त को जौनपुर में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग

16 अगस्त को जौनपुर में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग

विजय प्रकाश

एक बार फिर जौनपुर में बदलाव की चौपाल लगने जा रही है। पिछली बार जलालपुर के नेवादा गांव में बदलाव की चौपाल में किसानों की उत्सुकता को देखते हुए टीम बदलाव ने इस बार किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन का फैसला किया है। बदलाव की चौपाल का मकसद किसानों को आत्मनिर्भर बनाना और कुपोषित वर्ग को संतुलित आहार के लिए प्रेरित करना है। badalav.com की टीम ने बिहार के राजेंद्र प्रसाद कृषि यूनिवर्सिटी के जाने-माने कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर दयाराम से संपर्क किया और उन्होंने टीम बदलाव के अनुरोध पर जौनपुर में बदलाव की चौपाल में आने की हामी भर दी है।

डॉक्टर दयाराम से बातचीत के बाद हमने जौनपुर जिले के जलालपुर में बदलाव की चौपाल लगाने का फैसला किया । 16 अगस्त की शाम 4 बजे जलालपुर के कोंडरी बाजार में मशरूम प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा।  जिसके आयोजन का जिम्मा विजय प्रकाश, सत्य प्रकाश यादव और डॉक्टर हरि प्रकाश उठा रहे हैं। सभी किसान भाइयों का बदलाव की चौपाल में सहर्ष स्वागत रहेगा ।

बदलाव की चौपाल में किसानों को मशरूम उत्पान की बारीकियों के साथ-साथ कृषि से जुड़ी तमाम मुश्किलात पर भी चर्चा होगी और किसानों को मशरूम उत्पादन के टिप्स खुद डॉक्टर दयाराम देंगे। 

डॉक्टर दयाराम एक ऐसे कृषि वैज्ञानिक हैं जो अपने समर्पण और निष्ठा की बदौलत सहकर्मियों और बिहार के किसानों में मशरूम वैज्ञानिक के नाम से मशहूर है। ये डॉक्टर दयाराम की मेहनत का नतीजा है कि बिहार के सभी 38 जिलों में करीब 35 हजार गरीब किसान परिवार मशरूम उत्पादन से अपनी किस्मत संवारने में लगे हैं। डॉ. दयाराम के अथक प्रयास से बिहार में मशरूम का सालाना उत्पादन 3 हजार टन को पार कर गया है। राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर दयाराम मुख्य रूप से प्लांट पैथोलाजी (पौधा रोग) के  एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के महिमापुर डीह गांव के निवासी डॉक्टर दयाराम काशी हिन्दू विश्व विद्यालय वाराणसी से एमएससी एजी, पीएचडी हैं। दयाराम ने माइकोलाजी की पढ़ाई की है और उस विषय के विशेषज्ञ भी हैं।

डॉक्टर दयाराम के मुताबिक जब वो 1991 में कृषि शोध संस्थान से जुड़े तब बिहार का ग्रामीण तबका गरीबी और कुपोषण से बुरी तरह ग्रस्त था। उन्होंने यहां आकर इस स्थिति को काफी निकट से महसूस किया और फिर मशरूम के पैदावार की योजना बनाई और इस विषय पर काम किया कि भूमिहीन मजदूरों का परिवार कैसे मशरूम की पैदावार कर अपने बच्चों के लिए जरूरी पोषक तत्व की भरपाई कर पाये। मशरूम बेकार कृषि अवशेषों (भूसा, पुआल की कुट्टी) की सहायता से घरों के अंदर भी उगाया जा सकता है। शुरूआती दिनों में एक साल के भीतर यानी 1992 में ओएस्टर मशरूम उत्पादन से इस कार्यक्रम की शुरुआत की गयी। फिर 2000 में वे पूसा आ गये।  डॉ दयाराम की मेहनत रंग लाई और ओएस्टर, बटन और दुधिया प्रजाति वाले मशरूम का सफल उत्पादन शुरू हुआ जिसके जरिये साल भर आप मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं। एक कदम और आगे बढ़ते हुए इस दौरान औषधीय मशरूम पर शोध कार्य भी उन्होंने शुरू किया।

डॉक्टर दयाराम मानते हैं कि भोजन मनुष्य की पहली आवश्यकता है और इस समस्या का समाधान उनकी सर्वोपरि प्राथमिकता है। अपने इसी विचार के चलते वे बिहार के आदिवासी बहुल 8 जिलों- पश्चिम चम्पारण, सीतामढ़ी , मधुबनी, सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, जमुई, बांका और भागलपुर में अपने इस कार्यक्रम को विशेष रूप से फोकस किए हुए हैं। वैसे बिहार के सभी 38 जिलों में मशरूम का उत्पादन इनके कुशल मार्गदर्शन में किया जा रहा है। आपने बिहार की जेल में बंद कैदियों के लिए भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया है।  बेरोजगार युवक-युवतियां और छात्र-छात्राएं  डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय  के मशरूम विभाग जाकर मशरूम उत्पादन से जुड़ी जानकारी लेते रहते हैं। डाक्टर दयाराम बताते हैं कि  व्यावसायिक रूप से मशरूम का उत्पादन बेरोजगार युवकों के लिए रोजगार का बड़ा ही सुनहरा अवसर है। इसके बाइप्रोडक्ट के जरिए आमदनी बढ़ाई जा सकती है ।


विजय  प्रकाश/  मूल रूप से जौनपुर जिले के मुफ्तीगंज के निवासी । बीए, बीएड की पढ़ाई के बाद इन दिनों सामाजिक कार्यों में जुटे हैं।