महाकवि जानकी वल्लभ और पिता की यादें

महाकवि जानकी वल्लभ और पिता की यादें

महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म जनवरी 1916 में हुआ था। निधन 2011 में हुआ। इस तरह देखा जाए तो उनके जन्म का यह 101वां वर्ष है। पिछले साल शताब्दी वर्ष मनाया गया था। राज्यपाल समेत कई दिग्गजों का मुजफ्फरपुर में मेला लगा था। महाकवि पर संस्मरण की इस शृंखला का दूसरा हिस्सा एम अखलाक ने तैयार किया है। कोशिश ये कि सबकुछ महाकवि की जुबानी पाठकों तक पहुंचे। महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने एक इंटरव्यू में खुद से जुड़े इस किस्से को साझा किया था।

शास्त्री जी कहते हैं- गया से 40 मील आगे एक गांव है मैगरा। फिर समझाते हुए अंग्रेजी में स्पेलिंग भी बताते हैं, एमएआईजीआरए। शायद पुरातनकाल में यह मायाग्राम रहा हो, और समय के साथ मैगरा बन गया हो। गौतमबुद्ध वाली जगह से हूं। मां को मैंने कभी नहीं जाना। मेरी मां बचपन में  ही मुझे छोड़ कर चली गई। एक दिन घर में लकड़ी नहीं थी, उन दिनों लकड़ी पर भोजन पकता था। पिताजी कहीं जा रहे थे, मां ने उनसे कहा, किसी को बोल दो लकड़ी दे जाएगा। नहीं तो भोजन नहीं बन पाएगा। क्रोध से पिताजी ने कहा कि सामने जो लकड़ी है उसी को जला लो। वह लकड़ी पूजा में प्रयोग के लिए किसी चीज की थी। काफी कीमती।

… दूसरे दिन मां को सांप ने काटा। मां चली गई। 5 वर्ष का रहा होऊंगा मैं। मेरे पिताजी महापुरुष थे। मेरे पिता इतने बहादुर निकले कि लोगों के लाख कहने और समझाने पर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की। किसके लिए? मेरे लिए। लड़के के लिए। अखंड मंडलाकार रह गए। पूजनीय थे। चले गए पिताजी, मैंने पिता का मंदिर बनवा लिया। वो देखो सामने। ये मंदिर मैंने अपने पिता की याद में बनवाया है। मैं कभी मंदिर में नहीं गया और न ही किसी देवता को पूजा। मेरे भगवान मेरे पिता हैं। उन्होंने कभी मेरा नाम नहीं लिया। बस एक ही बार बोले, तब चलें न जानकी वल्लभ? और चल पड़े!

दुनिया में ऐसा पिता कहां मिलता है! सबसे बड़ी बात है कि यों कहने के लिए पिता होते हैं, वो नहीं थे, बकायदा पिता थे! बहुत बड़े विद्वान थे। छोटी उम्र में मां चली गई। मेरा जीवन चौपट हो गया था। मातृविहीन बालक था मैं। किसी के कहने पर शादी के लिए तैयार नहीं थे। किसी काम के लिए तैयार नहीं थे। सब काम मेरा गड़बड़ा गया। उन्होंने मां की भूमिका भी निभाई। मेरे लिए मेरे पिता ही मां थे और बाप भी। जब मैं मुजफ्फरपुर आ गया तो उनको भी अपने पास ले आया।”


प्रस्तुति- एम अखलाक। मुजफ्फरपुर के दैनिक जागरण में वरिष्ठ पद पर कार्यरत एम अखलाक कला-संस्कृति से गहरा जुड़ाव रखते हैं। वो लोक कलाकारों के साथ गांव-जवार के नाम से बड़ा सांस्कृतिक आंदोलन चला रहे हैं। उनसे 09835092826 पर संपर्क किया जा सकता है।

3 thoughts on “महाकवि जानकी वल्लभ और पिता की यादें

  1. शाश्त्रीजी के बचपन की दर्दनाक कहानी कहने के लिए अखलाक जी को साधुवाद ।वे अपने से मिलने आनेवाले हर संवेदनशील आदमी को अपने जीवन से जुडी बातें जरूर बताते थे ।खास कर बुढापे के दिनो मे ।

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