अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और क्लारा जेट्किन की कहानी

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस और क्लारा जेट्किन की कहानी


ब्रह्मानंद ठाकुर

8 मार्च यानी अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस। यह महिला दिवस क्लारा जेट्किन के नाम से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। 1910 में कोपनहेगन में दूसरा इंटरनेशनल महिला सम्मेलन आयोजित हुआ था । क्लारा इसकी सचिव थीं और इसी सम्मेलन में उन्होंने एक प्रस्ताव रखा था जिसमें हर साल 8 मार्च को अन्तर्राष्टीय महिला दिवस मनाने की बात कही गई थी। हालांकि उस समय यह प्रस्ताव महिलाओं के मताधिकार की मांग को लेकर लाया गया था। बाद के दिनों में यह अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं के हर तरह के अधिकार और शोषण-उत्पीड़न से मुक्ति की मांग से जुड़ गया।

क्लारा जेट्किन ने महिला दिवस मनाने के लिए 8 मार्च का दिन ही आखिर क्यों प्रस्तावित किया ? इसके पीछे एक ऐतिहासिक घटना को मुख्य कारण बताया जाता है। 8 मार्च, 1908 के दिन अमरिका के न्यूयार्क शहर में वस्त्र उद्योगों में कार्यरत महिला मजदूरों ने वोट के अधिकार की मांग को लेकर एक विशाल प्रदर्शन किया था। इसी के साथ प्रदर्शनकारी महिलाओं ने ताकतवर वस्त्र उद्योग यूनियन बनाने का भी फैसला किया था। यही कारण था कि क्लारा जेट्किन ने 8 मार्च की तारीख को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए उपयुक्त समझा और उस इन्टरनेशनल में इस आशय का प्रस्ताव लाया। वह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। इस प्रस्ताव के बाद पहला अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 1911 को मनाया गया। तब से हर साल 8 मार्च के दिन अन्तर्रष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है दुनिया की तमाम महिलाओं को लैंगिक भेदभाव,शोषण और सभी तरह के उत्पीड़न से मुक्ति का संकल्प लेना।

अब कुछ जानकारी क्लरा जेट्किन के सम्बंध में। क्लारा का जन्म 1857 में 13 जुलाई को जर्मनी के बुनकर और गरीब किसान बहुल एक छोटे गांव विडराउ में हुआ था। उसके पिता का नाम गाट फ्राइड इजनर था। वह अपने पिता की दूसरी पत्नी जोसफाइन विटेल की संतान थी जो पढ़ी- लिखी और प्रगतिशील महिला थी।क्लारा के व्यक्तित्व निर्माण में उसकी मां का अहम योगदान रहा। क्लारा पर एंगेल्स की पुस्तक ‘ परिवार, निजी सम्पत्ति और राजसत्ता की उत्पत्ति’ का बड़ा प्रभाव पड़ा। इस किताब के पढ़ने के बाद वह मार्क्सवादी विचारधारा से काफी प्रभावित हुई। एंगेल्स की उक्त पुस्तक को पढ़कर ही वह इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि नारी उत्पीडन का कारण पुरुषों का महिला की अपेक्षा ताकतवर होना नहीं, बल्कि निजी सम्पत्ति का आविर्भाव है। उन्होंने कहा कि निजी सम्पत्ति पूंजीवाद की देन है। उन्होंने माना कि सर्वहारा महिला समाज की पूर्ण मुक्तिकेवल समाजवादी समाज व्यवस्था में ही सम्भव है। समाजवादी व्यवस्था में ही सम्पत्ति शाली और सम्पत्तिहीन, पुरुष और महिला के बीच, शारीरिक श्रम और बौद्धिक श्रम करने वालों के बीच पूंजी और श्रम के बीच सामाजिक द्वन्द्व का विलोप हो सकता है। इसलिए जरूरी है पूंजीवाद का जड़मूल से खात्मा कर समाजवादी व्यवस्था की स्थापधा करने की।

इसी समाजवादी समाज व्यवस्था में महिलाएं अपने खुद के सुसंगतपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण कर सकेंगी। उनका यह भी कहना था कि सम्पूर्ण महिला समाज की पूर्ण मानवता के लिए आखिरी लड़ाई नारीवाद के मोर्चे पर नहीं, बल्कि पूंजी के शासन के खिलाफ लड़ने की जरुरत है।
आज पूंजीवाद खुद ही मरनासन्न होकर अपने वजूद की रक्षा के लिए पूरी मानवता को संकट के दौर में ला दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का यही संदेश है कि विश्व मानवता की रक्षा के लिए पूंजीवाद विरोधी समाजवादी क्रांति सफल करने का आंदोलन किया जाए।

ब्रह्मानंद ठाकुर।बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।