आंदोलनों में हिंसा तो होती है, चौरी-चौरा वाला दम नहीं दिखता

आंदोलनों में हिंसा तो होती है, चौरी-चौरा वाला दम नहीं दिखता

अमित ओझा

5 फरवरी 1922

गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा देश अब अंगड़ाई लेने लगा था।अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ बापू के असहयोग आंदोलन की आग धीरे-धीरे पूरे मुल्क में फैलती दिख रही थी। शायद उस वक्त अंग्रेजों को भी नहीं लगा होगा कि हाथों में लाठी और खादी पहने एक शख्स पूरे देश को एक ऐसी माला में पिरो देगा, लेकिन बापू ने वो कर दिखाया था। अंग्रेजी हुकूमत परेशान थी कि तभी उत्तरप्रदेश के चौरी-चौरा में कुछ लोगों की भीड़ ने चौकी फूंक दी। करीब 22 पुलिस वाले ज़िंदा जल गए और आग की इन लपटों में ही दम तोड़ गया असहयोग आंदोलन।

ये एक नायक का फैसला था, जिसने तय कर लिया था कि चाहे आज़ादी मिलने में कुछ देर और हो जाए लेकिन हिंसा बर्दाश्त नहीं होगी। क्या आज भी हमारे नायक, समाज को दिशा दिखाने का ऐसा ही जज्बा रखते हैं। या भीड़ और उन्मादी नेताओं के आगे आगे चल रह हैं। हर आंदोलन के बाद ये सवाल सिर्फ गहरा नहीं रहा, ये सच बनकर सामने खड़ा है।
रेल की पटरियां उखाड़ देना, बसों में आग लगा देना। कई बार तो महिलाओं की इज्जत आबरू से खेल जाना, तक अब विरोध में जायज़ होता जा रहा है।

जाट आंदोलन से लेकर पद्मावत के विरोध तक हर बार हिंसा ने देश को झकझोर दिया है। लेकिन हमारे नेता कहां हैं। बस निंदा भर कर देना क्या हिंसा रोकने के लिए काफी है। या फिर राजनीति जान-बूझकर मौन है। दलित के आंदोलन में हुई हिंसा एक बार फिर ये सवाल उठा रही है कि बवाल दल-हित का है या फिर दलित हित का। मैं ये तो ज़रूर मानता हूं कि दलितों को आज भी संरक्षण की ज़रूरत है। आज भी दलित समाज (ज्यादातर) मुख्यधारा से दूर है और उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले में इतने बड़े विरोध की वजह क्या है?

उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार बनी तो उन्होंने इस कानून (एससी एसटी ऐक्ट) में कुछ नरमी बरती। फिर आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मायावती को क्या ग़लत दिख रहा है, और अगर कुछ ग़लत है भी तो क्या ये हिंसा ही इसका समाधान है? अगर नहीं तो फिर क्यों नहीं मायावती और उन जैसे तमाम दलित चिंतकों ने समाज की अगुवाई की। क्यों नहीं समाज को इसका सच बताया ? क्या वोट के लिए देश की एकता पर चोट हो रही है। क्या कमंडल के खिलाफ मंडल की आग लगाई जा रही है। सोचिए…समझिए और हो सके तो कुछ बदलिए।


 अमित ओझा। पिछले एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। टीवी टुडे नेटवर्क में लंबी पारी के बाद इन दिनों न्यूज़ नेशन में बतौर सीनियर प्रोड्यूसर कार्यरत।