अन्नदाता के लिए आखिर संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं ?

अन्नदाता के लिए आखिर संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं ?

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के फेसबुक वॉल से साभार

मेरा रिपोर्टर-मन नहीं माना! दो दिन से तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, फिर भी पहुंच गया संसद मार्ग! किसानों से मिलने! पहले की कई किसान रैलियां हमने देखी हैं। कभी किसी दल के किसान-संगठन रैली निकालते थे या किसानों का कोई क्षेत्रीय संगठन हुक्का-पानी लेकर दिल्ली पर ‘धावा’ बोलता था! पर इस किसान मार्च में पूरे भारत के किसान थे! पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, हर जगह के किसान अपने रंग-बिरंगे झंडों के साथ वहां मौजूद थे! इनमें पुरुष, युवा, अधेड़, बुजुर्ग, हर उम्र की किसान-महिला और उनके कुछ परिजन भी साथ में थे!
किसानों की बड़ी एकता का ही दबाव था कि सत्ताधारी भाजपा को छोड़कर देश की लगभग हर प्रमुख पार्टी ने अपने नुमाइंदे को रैली में जरुर भेजा!
रैली में आए आम किसान भी अपने बड़े नेताओं की तरह तर्कसंगत ढंग से बातें करते मिले! उनके पास सूचनाएं थीं, ठोस तथ्य थे, समझ और तर्क थे। महाराष्ट्र के एक साधारण किसान को यह बात मालूम थी कि किस तरह मौजूदा सरकार इन दिनों अफगानिस्तान से प्याज मंगा रही है। इससे अपने देश के प्याज उत्पादक किसान बेहाल हो गये! इससे उनके द्वारा उत्पादित प्याज की अपेक्षित कीमत नहीं मिल रही है!
किसानों पर लंबित कर्ज की माफी को जायज बताते हुए वे मोदी सरकार के कारपोरेट-कनेक्शन, एनपीए और नीरव-चोकसी-माल्या आदि मामलों पर सवाल उठाते हैं!
यूपी से आए एक किसान ने कहा: ‘कुछ अखबारों ने हमें ‘अन्नदाता’ कहकर रैली पर अच्छी रिपोर्ट दी है। हम इसके लिए उनके शुक्रगुजार हैं। पर उन्हें लोगों को बताना चाहिए कि हमारी हालत कितनी खराब है! इसी वजह से आज भारत में कोई किसानी नहीं करना चाहता! आप देख लीजिए, नेता का बेटा-बेटी राजनीति में आने से संकोच नहीं करते, आईएएस अफसरों के बच्चे आमतौर पर हर कीमत पर आईएएस बनना चाहते हैं! पर किसान के बच्चे क्या किसान बनना चाहते हैं? बिल्कुल नहीं! इससे किसानों की हालत का अंदाज लगा सकते हैं!’ सवाल उनका जायज है: मोदी सरकार अगर व्यापार और टैक्स आदि के मामलों को लेकर संसद का विशेष सत्र आयोजित कर सकती है तो अन्नदाताओं के मामलों पर विचार के लिए संसद-सत्र क्यों नहीं हो सकता?


उर्मिलेश/ वरिष्ठ पत्रकार और लेखक । पत्रकारिता में करीब तीन दशक से ज्यादा का अनुभव। ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘हिन्दुस्तान’ में लंबे समय तक जुड़े रहे। राज्यसभा टीवी के कार्यकारी संपादक रह चुके हैं। दिन दिनों स्वतंत्र पत्रकारिता करने में मशगुल।