एक ‘थप्पड़’ से क्या होता है, महिलाओं से ये सवाल कब तक?

एक ‘थप्पड़’ से क्या होता है, महिलाओं से ये सवाल कब तक?

बिन्दु चेरुन्गात

8 मार्च,  पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष महिला दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र के अभियान #EachForEqual के काफी करीब है, दस दिन पहले आयी अनुभव सिन्हा की फिल्म थप्पड़। यह फिल्म वास्तव में ‘मात्र एक थप्पड़’ के बारे में नहीं है, बल्कि मानव अधिकारों और पुरुष व महिला के सामान अधिकारों के बारे में बहुत गहराई से बात करती है। यह फिल्म दर्शाती है कि किस प्रकार से महिलाएँ अपनी इच्छाएं, महत्वाकांक्षाएं, भावनाएं अक्सर अपनी प्राथमिकताओं की सूची में सबसे आखिर में रखती हैं।  लेकिन एक थप्पड़, जिसका इस्तेमाल एक रूपक के हिसाब से भी किया गया है, किरदारों की अंतरात्मा को झकझोर देता है।

यदि आंकड़ों के जमाखर्च पर यकीन किया जाए, तो स्त्री-पुरुष समानता की पीढ़ी के हकीकत में वजूद में आने में 200 साल लग सकते हैं। अगर हम सभी अपने-अपने तरीके से स्त्री-पुरुष समानता के लिए प्रयास करें तो दृश्य बदल भी सकता है और इस लिहाज से अनुभव की फिल्म थप्पड़ एक सही हस्तक्षेप जान पड़ती है। फिल्म में अनुभव सिन्हा का दृष्टिकोण फिल्म को वर्गीकृत नहीं करता। मेरी नजर में यह एक नारीवादी फिल्म नहीं है, बल्कि मानवतावादी फिल्म है। उनकी फिल्में आर्टिकल 15, मुल्क ने भी हमारे समाज के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला है। फिल्म थप्पड़ से आप समझ सकते हैं कि समाज में पुरुषों और महिलाओं ने खुद को कैसे परिभाषित कर रखा है और समाज ने कौन से ‘सामान्य दायरे’ तैयार कर रखे हैं। इस सब के बीच फिल्म इस बात को सोचने को भी प्रेरित करती है कि इन ‘सामान्य दायरों’ को किसकी नजर से देखा जाए, पुरुष के लिए इनकी हदें क्या हों, स्त्री के लिए सहिष्णुता की सीमा क्या हो ?

महिला दिवस विशेष

यद्यपि थप्पड़ के मुख्य किरदार नायक दंपति अमृता और विक्रम (तापसी और पावेल) हैं। इनके साथ ही चार और दम्पतियों की कहानियों को भी परस्पर जोड़ा गया है। अमृता ने एक गृहिणी, बीवी, बेटी, बहू व नृत्य की शौकीन कलाकार के किरदार को निभाया है। विक्रम अपने कॉर्पोरेट जीवन के साथ व्यस्त हैं। अमृता काफी कुशलता एवं ख़ुशी से घर का काम संभालती हैं, अपने पति विक्रम और सास सुलक्षणा (तन्वी आज़मी) की देखभाल करती हैं। एक दूसरी जोड़ी है अभिवक्ता दम्पति नेत्रा और राजीव (माया और मानव)। अमृता की घरेलू मददगार सुनीता (गीतिका विद्या) है, जिसे आए दिन उसका पति पीटता रहता है। अंकुर और नैना ने तापसी के भाई करण और उनकी प्रेमिका स्वाति की भूमिकाएँ निभाई हैं। एक और जोड़ी है संध्या (रत्ना पाठक शाह) और सचिन (कुमुद मिश्रा), तापसी के माता-पिता के रूप में। एकल अभिभावक के रूप में शिवानी (दीया मिर्ज़ा) को अपने आप में काफी संतृप्त, सहज़ व सफल दिखाया गया है।

फिल्म ने इन विभिन्न पात्रों को खूबसूरती से चित्रित किया है। बहुत सारे दृश्य हैं जो हमारे समाज के विभिन्न तत्वों को दर्शाते हैं। स्त्री-पुरुष समानता की ओर बढ़ते हुए समाज में, अमृता के तलाकनामे में ‘मात्र एक थप्पड़’ ही मुख्य वजह है और याचिका में किसी निर्वाह-निधि की मांग नहीं है। अमृता एक ऐसी सशक्त महिला हैं जो उस शादी में नहीं रहना चाहती जिसमें वह अब प्यार को नहीं महसूस कर पाती हैंI अमृता का विश्वास है कि एक महिला के रूप में वह भविष्य की सभ्यता को भी आकर दे रही हैं, इसलिए जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि कोई अपने आत्मसम्मान से समझौता न करे। अगर एक थप्पड़ से अमृता का स्वाभिमान दाँव पर है, तो सुनीता भी हैं, जिनके लिए पति द्वारा पिटाई सामान्य है। सुनीता की सास में बदले की मनोवृत्ति दिखती है, जो अपनी शादी में पीड़ित हुईं थी, और अब जब वह अपने बेटे को बहु को पीटते हुए देखती है तो उन्हें इतिहास दोहराता नज़र आता है, पर इसका आनंद भी खूब होता है। 

अगर दूसरे किरदारों के बारे में बात की जाए तो वे भी कहानी की पृष्ठभूमि को काफी मजबूत बनाते हैं। शिवानी का किरदार कहानी में एक बिलकुल अलग आयाम लेकर आता है, जो काफ़ी आत्मविश्वासी है और उन्हें लगता है कि पति के साथ उनका प्यार कितना सहज था। समाज में बरसों से चली आ रही कुछ बातें इतनी सामान्य हो गयी है कि गलत भी सही नज़र आने लगता है या इन्हें नज़रअंदाज़ कर  दिया जाता है। यदि एक महिला किरदार कई वर्षों से अपने आपको प्रेमहीन विवाह में पाती है, पर इसे भी सामान्य समझती है, तो दूसरी महिला किरदार प्रेमहीन विवाह में इसलिए हैं कि उन्हें अपनी सफलता ससुराल से विरासत में मिलती हुई नज़र आती है। समाज की यही ‘सामान्य’ रीतियां विक्रम को आश्चर्यचकित करती हैं कि अमृता के उससे तलाक का कारण ‘मात्रएक थप्पड़’ कैसे हो सकता है। विक्रम हैरान है और माफी मांगने के बजाय, वह अमृता से इस समझ की उम्मीद करता है कि वह कामकाज़ी ज़िन्दगी में परेशान था, थप्पड़ को इतनी अहमियत न दे। समाज की यही ‘सामान्य’ रीतियां अमृता की सास को अमृता से थप्पड़ को नजरअंदाज करने का अनुरोध कराती है। अमृता की माँ के लिए यह काफी असमंजस की बात थी कि अमृता विक्रम जैसे अच्छे व्यक्ति को ‘मात्र एक थप्पड़’ की वजह से तलाक कैसे दे सकती है। समाज की यही ‘सामान्य’ रीतियां हैं कि सचिन जैसा तथाकथित प्रगतिशील पति भी अपनी पत्नी की संगीत में रूचि और सीखने की इच्छा को नज़रअंदाज़ करने लगता है। अमृता के भाई के लिए, यह उसकी मूर्खता है कि ‘सिर्फ एक थप्पड़’ की वजह से वह अपनी घर-गृहस्थी को दाँव पर लगा रही हैI 

एक वकील के रूप में, नेत्रा अमृता को तलाक-याचिका में कुछ झूठे-तथ्यों को, जैसे कि घरेलू हिंसा आदि जोड़ने की नसीहत देती है। वकील को भी लगता है कि ‘मात्र एक थप्पड़’ तलाक माँगने की वजह नहीं बन सकता। दूसरी तरफ, अभिवक्ता प्रमोद गुजराल (राम कपूर) विक्रम को तलाक की याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह इस बात का प्रतिबिंब है कि तलाक हमारे समाज में कैसे बदसूरत हो जाता है। कई बार, तलाक के लिए दम्पति गलत दलीलों के साथ अदालत में सालों-साल लड़ते रहते हैं। 

नेत्रा के पति राजीव के रूप में मानव कौल हमारे समाज के पितृसत्तात्मक रीतियों को दर्शाता है, जहाँ वह अपनी पत्नी की पहचान और काबिलियत को पूरी तरह से नकार देता है और उसे लगता है कि नेत्रा का अस्तित्व उसके और उसके परिवार के बिना कुछ भी नहीं है। दूसरी तरफ सचिन का किरदार भी है जो अपनी बेटी के फैसले की कद्र भी करते हैं और भरोसा भी। फिल्म में एक सशक्त पल वह है जब विक्रम के बॉस राजहंस (हर्ष ए सिंह) अमृता को थप्पड़ मारने और उसे अपना अधिकार मान लेने पर विक्रम की नीयत पर सवाल उठाता है। 

फिल्म में हर किरदार को बहुत सोच-समझकर रचा गया है और ये किरदार विभिन्न घरों की वास्तविकता को प्रतिबिंबित करते हैं। कई पलों में एक दूसरे के alter-ego भी हैं । यदि महिलाओं को अपने स्वयं के सम्मान की रक्षा करने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाते हुए दिखाया गया है, तो पुरुषों को अपने जीवन में महिलाओं की अहमियत को स्वीकार करने के बदलाव को भी दर्शाया गया है। महिलाओं ने जो दायरे अपने लिए तैयार किए हैं, हदें तय की हैं… पुरुषों द्वारा उसका सम्मान करते हुए भी दर्शाया  गया है। 

‘थप्पड़’ का संदेश दो टूक और स्पष्ट है-  रिश्तों में शारीरिक और भावनात्मक शोषण दोनों अस्वीकार्य हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर समाज के लिए अनुभव सिन्हा का तोहफा है ‘थप्पड़’

बिन्दु चेरुन्गात । संस्कृतिकर्मी, बिजनेस कंसल्टेंट, कॉरपोरेट ट्रेनर, फिल्म समीक्षक।

3 thoughts on “एक ‘थप्पड़’ से क्या होता है, महिलाओं से ये सवाल कब तक?

  1. Critic has beautifully described and summarized the importance of such movies in today’s so called modern world. Her magnificent writing skill has depicted Importance of balanced relationships in today’s setup.Her explanation has enhanced my desire to watch movie.

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