ऐ गांव विकास चाहता है, बता तेरी जाति क्या है?

ऐ गांव विकास चाहता है, बता तेरी जाति क्या है?

आशीष सागर दीक्षित

हिंदुस्तान आजादी की 70वीं सालगिरह मनाने जा रहा है। एक बार फिर देश के मुखिया लालकिले की प्राचीर से गांव को शहर बनाने का सपना दिखाएंगे। ऊर्जा मंत्री हर गांव में बिजली पहुंचाने का दंभ भरेंगे तो स्वास्थ्य और शिक्षा घर-घर तक पहुंचाने का हसीन सपना दिखाया जाएगा, लेकिन हिंदुस्तान का दिल यानी गांव कितना बदहाल है ये जानने की ना तो किसी के पास नीति है और ना ही नीयत। अभी हाल में यूपी की योगी सरकार ने प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त बनाने का दावा किया, लेकिन जहां सड़कें ही नहीं है उसकी सुध शायद सरकार को नहीं है। क्योंकि यहां सड़कें भी जाति और बिरादरी देखकर बनने लगी हैं।

खासकर बुंदेलखंड में तो यही हाल है। बांदा जिले में सड़क और स्वास्थ्य का हाल जानने के लिए हम अलग-अलग इलाकों में निकल पड़े। बांदा जिले के नरैनी से करीब बीस किलोमीटर दूर है नौगंवा पंचायत। बारिश के मौसम में पानी में भींगते हम मजरा मान सिंह का पुरवा पहुंचे। गाँव में एक ही ठाकुर परिवार है और एक नाई फिर भी इस पुरवा का नाम बड़ी जाति से लेकर माऊ मान सिंह का पुरवा नाम धरा गया। बात यहीं तक होती तो कोई बात नहीं लेकिन हद तो तब हो गई जब पता चला कि यहां जाति के आधार पर सड़कें और बिजली भी मिलती है ।

गांव में घुसते ही हमारे सामने जो मंजर दिखा उसे आप इन तस्वीरों में देख सकते हैं। कीचड़ भरे रास्ते से निकलते इन बच्चों को देख एक ही बात जेहन में आई, क्या ऐसे ही पढ़ेगा इंडिया और ऐसे ही रास्तों पर बढ़ेगा इंडिया। खैर गांव के चौराहा का हाल देखा तो गाँव के देवकुमार, रामरूप, तुलसी से सुखारिन पुरवा जाने का रास्ता पूछ बैठे। गांववालों ने सवाल किया- का करिहो ऐस मौसम में वहां जाके। यहां गाड़ी खड़ी कर देयो और बैठ जाओ कल मा, आगे रस्ता नहीं है। जंगल पार करके कमर से पानी है पुरवा तक। हमने पूछा यहां सड़क क्यों नहीं है तो जवाब मिला जंगल विभाग रस्ता नहीं देता। अभी पिछले सप्ताह गाँव में एक की भैस खो गई रहे, पुलिस वाले आये इहां तक, रास्ता देखके गाली देते हुए बोले- घोर जंगल में रहते हैं वापस चलो।  फिर थाने जो किये हो नहीं मालूम। प्राथमिक स्कूल की छुट्टी का समय हुआ था तो ये नजारा भी देखने को मिला । बच्चे कीचड़ के बीच से होते हुए स्कूल से अपने घर जा रहे थे। सुखारिन पुरवा जाने वाले मार्ग पर कुछ दूर पे बजरी पड़ी है, बाकी सरकारी व्यवस्था ने कर दिया है । दो किलोमीटर कीचड़ में घुटने तक घुसकर सुखारिन पुरवा जाना होगा। इस पुरवा में आज भी बिजली नहीं है ।

पटेल इस मजरे में सर्वाधिक हैं जिनके पास महंगे दाम वाली भैंस तो है पर सड़क और बिजली उनके लिए अच्छे दिन की बात है। मालूम रहे वर्तमान बीजेपी विधायक को पटेल ही वोट नरैनी में ज्यादा किये हैं। इनके पूर्व लगातार गयाचरण दिनकर बीएसपी से विधायक रहे। उधर पंचायत की प्रधान गुड़िया भदौरिया हैं, पति धर्मेन्द्र जेल में हैं। दस्यु ठोकिया के मददगार होने के आरोप में सजा काट रहे हैं। कहते हैं जेल से प्रधानी चलती है। उसके अपने पुरवे में सड़क, बिजली, सौर उर्जा सब चकाचक है लेकिन बांकी के 6 मजरे करौला, छिगरिया पुरवा बिजली, सड़क से वंचित है।  इस पंचायत की कुल आबादी 3500 के आस-पास है।  सुखारिन पुरवा में करीब 300 लोग बसते हैं जिनकी सुध जिला प्रसाशन बाँदा के अफसरान कब लेंगे ये वो वही बेहतर बतला सकते हैं। गौरतलब है कि बाँदा के डीएम इन दिनों मटका शौचालय के जरिए ( ओडीएफ बावत- खुले में शौच मुक्त गाँव ) स्वच्छ बाँदा-सुन्दर बाँदा का अभियान चला रहे हैं। नरैनी के ऐसे ही 6 और पंचायत में बिजली आज तक नहीं पहुंची है। बच्चे अंधियारे में ही रात गुजार रहे हैं।

अब जरा स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल भी जान लीजिए । बुन्देलखण्ड के जिला बाँदा सदर विधानसभा क्षेत्र का एक गांव है रेउना। जो जिला मुख्यालय से बमुश्किल 10 किलोमीटर दूर है। सीमान्त किसान अक्षय लाल कुशवाहा यहाँ के रहवासी हैं। बीते दो अगस्त अक्षयलाल की गर्भवती पत्नी (उम्र 32 साल) ने गाँव की आशा मीरा की निगरानी में अपने 9 माह के मृत बच्चे को जना। प्रसव के समय आशा पंचायत की बैठक में थी। घर में प्रसव होते ही महिला की हालत बिगड़ने लगी। आनन-फानन में पीड़ित परिवार ने टेम्पो किया और महुआ पीएचसी पहुंचा। पीएचसी तैनात नर्स अनामिका ने मृत बच्चे का नारा काटा लेकिन कन्हाई ( बच्चेदानी की थैली) को सही नहीं किया।  पत्नी की तबियत बिगड़ती देख अक्षय ने नर्स से बाँदा रिफर करने की अपील की। लिहाजा नर्स ने 108 नंबर पर फोन करने को कहा। किसान अक्षय ने तीन बार फोन किया लेकिन रिसीव नहीं हुआ। जब चौथी बार फोन उठा तो एंबुलेंस सर्विस से जवाब मिला कि वो खाली नहीं है। किसान ने डेढ़ सौ में टेम्पो किया और रक्त स्राव होती पत्नी को मृत बच्चे के साथ जिला अस्पताल बाँदा लेकर पहुंचा। अस्पताल में उसके कागज बने लेकिन दरवाजे से अन्दर दाखिल होते ही रानी चलन बसी। गाँव की आशा, एएनएम, उनके मार्फ़त चल रही सरकारी स्वास्थ्य योजना का प्रचार, गैर सरकारी प्रयास के बावजूद रानी का बच्चे के साथ मर जाना इस सिस्टम के असफल होने का प्रमाण है।


ashish profile-2बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट फेसबुक पर एकला चलो रेके नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] पर संवाद कर सकते हैं।