सबूत मांगने पर हाय तौबा मचाने वालों को रामायण से सीख लेने की जरूरत

सबूत मांगने पर हाय तौबा मचाने वालों को रामायण से सीख लेने की जरूरत

पीयूष बबेले के फेसबुक वॉल से साभार

सबूत पर चिढ़ने वालों को भारतीय परंपरा का ज्ञान नहीं है और कम से कम रामायण का तो उन्हें रत्ती भर अंदाजा नहीं है। जो लोग सबूत मांगने को देश विरोधी समझते हैं उन्हें रामचरितमानस पढ़नी चाहिए। हनुमान जी जब सबसे पहले भगवान राम से मिले तो उन्होंने अपना भेष बदला हुआ था। वह ब्राह्मण के रूप में मिले और पहले कंफर्म किया है कि जो व्यक्ति आए हैं वह भगवान राम जी हैं या नहीं। जब पुष्टि हो गई तभी वह उनके चरणों में गिरे।  इसी तरह हनुमान जी जब अशोक वाटिका पहुंचे तो सीता जी ने उन पर शक किया लेकिनजब हनुमानजी ने राम की दी हुई निशानी माता सीता को दिखाई तब उन्होंने हनुमान जी पर विश्वास किया।

यही नहीं लंका दहन कर जब हनुमान जी वापस लौटे तो अपनी सफलता के सबूत के तौर पर उन्होंने सीता जी की निशानी भगवान राम को दी। इन सारे मामलों में हनुमान जी तत्परता से सबूत पेश करते रहे क्योंकि उन्हें पता था इसके बिना अगर प्रभु राम मान भी जाएं तो जमाना कैसे मानेगा। आज जो लोग सबूत मांगने पर हाथ पैर पटकने लगते हैं उन्हें बजरंगबली से कुछ सीखना चाहिए।इसके उलट सबूत मांगने वालों का मुंह बंद कराने का प्रसंग भी रामायण में आता है। जब भगवान राम ने मारीच को मार दिया और वह हा लक्ष्मण कहने लगा। लक्ष्मण जी ने इस आवाज पर शक किया और इसकी पुष्टि करनी चाही। लेकिन सीता जी ने उल्टे लक्ष्मण पर ही लांछन लगा दिया। नतीजा यह हुआ कि लक्ष्मण जी भारी मन से राम के पास चले गए और यहां सीता हरण हो गया। अगर सीता जी ने लक्ष्मण को सबूत हासिल करने दिए होते तो सारा कांड ही नहीं होता। इसलिए हे बुद्धिमान के शिरोमणि भक्त जनों थोड़ा भगवान की भी सुनो।