आत्मनिर्भर भारत : अवसर, सफलता और चुनौतियां

आत्मनिर्भर भारत : अवसर, सफलता और चुनौतियां

अखिलेश शर्मा

आत्मनिर्भर होना हर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का सपना होता है। किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की असल शक्ति उसकी आत्मनिर्भरता में ही है। एक आत्मनिर्भर राष्ट्र ही अपने राष्ट्र को सर्वोपरि बना सकता है। आत्मनिर्भर होने का मतलब है कि आपके पास जो स्वयं का हुनर है उसके माध्यम से एक छोटे स्तर पर खुद को आगे की ओर बढ़ाना है या फिर बड़े स्तर पर अपने परिवार, समाज और देश के लिए कुछ करना। यदि हम खुद को आत्मनिर्भर बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर सकेंगे तो इसके साथ ही साथ हम निश्चित तौर पर अपने राष्ट्र के विकास में भी अभूतपूर्व योगदान दे सकेगें। राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का भी यही सपना था कि भारत स्वदेशी चीजों को अपना कर अपनी एवं अपने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अग्रसर रहें।

आत्मनिर्भर भारत का अर्थ है स्वयं पर निर्भर होना, यानि खुद को किसी और पर आश्रित न करना। पिछले एक साल से कोरोना महामारी के दौरान पूरी दुनिया में आम जन मानस किन मुश्किलों से गुजरा है । महामारी को देखते हुए भारत को आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता अब आन पड़ी है। यदि हम इतिहास पलट के देखें तो पाएंगे की भारत प्राचीन काल से ही आत्मनिर्भर रहा है। भारत की कला और संस्कृति को देखते हुए यह बात स्पष्ट होती है। ये और बात है की मानसिक, सामाजिक, राजनितिक त्रुटियों के कारण ये कभी उभर नहीं पाया।

 “आत्मनिर्भर” शब्द कोई नया नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग के द्वारा बनाए गए सामानों और उसकी आमदनी से आए पैसों से परिवार का खर्च चलाने को ही आत्मनिर्भरता कहा जाता है। कुटीर उद्योग या घर में बनाए गए सामानों को अपने आस-पास के बाजारों में ही बेचा जाता है। अगर किसी का सामान अच्छी गुणवत्ता का होता है तो अन्य जगहों पर भी इसकी मांग होती है। जो सामान घरों में हमारे जीवन के उपयोग के लिए बनाया जाता है उसे बोलचाल की भाषा में ‘लोकल’ सामाग्री कहते हैं पर सत्य तो यही है कि ये आत्मनिर्भता का ही एक महत्वपूर्ण प्रारूप है। कुटीर उद्योग, सामग्री, मत्स्य पालन इत्यादि “आत्मनिर्भर भारत” के ही कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।

आत्मनिर्भरता की श्रेणी में खेती, मत्स्य पालन, आंगनवाडी, स्वयं सहायता समूह जैसे कार्य हमें आत्मनिर्भरता की श्रेणी में लाकर खड़ा करती हैं। इस प्रकार से हम अपने परिवार से समाज, समाज से क़स्बा, कस्बे से गांव, गांव से शहर, एक दूसरे से जोड़कर देखें तो इस प्रकार पूरे राष्ट्र के विकास में ही योगदान देते हैं। हम सहजता से मिल जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों और कच्चे मालों के द्वारा वस्तुओं का निर्माण करके अपने आसपास के बाजारों में इसे बेच सकते हैं। इससे हम लोग स्वयं के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत की राह में भी अपना योगदान दे सकते हैं और हम सब मिलकर एक आत्मनिर्भर राष्ट्र के निर्माण के सपने को मजबूत बनाने में अपना अहम् सहयोग दे सकते हैं।

अवसर

अगर किसी का सपना होता है कि वो आत्मनिर्भर बने तो वह सबसे अच्छा गुण कहा जा सकता है। माहात्मा बुद्ध भी तो अपने ज्ञान के सूत्रों में से एक सूत्र इस संस्सर में दे गए है “अप्प दीपो भवः” अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो और एक प्रकाश स्तंभ की तरह हमेशा जगमगाते रहो। पूरे विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है जहां सबसे अधिक प्राकृतिक संसाधन पाये जाते हैं, जो कि बिना किसी देश की मदद से जीवन से लेकर राष्ट्र निर्माण की वस्तुएं बना सकता है और आत्मनिर्भर के सपने को पूरी तरह से साकार कर सकता है।

कोरोना महामारी के दौर में जहां हमने पीपीई किट, वेन्टिलेटर, सेनेटाइजर, एन-95 मास्क और तो और इस आपदा में संजीवनी साबित हो चुकी वैक्सीन का निर्माण भी अपने देश में ही शुरु कर दिया है। यही नहीं स्वदेश में निर्मित वैक्सीन को कई देशों (छोटे- बड़े) को निर्यात भी किया है। इन सभी चीजों का निर्माण भारत में करना ही ये दर्शाता है कि हम वाकई आत्मनिर्भर भारत के सपने को सच कर सकते हैं। इनके उत्पादन से हमें अन्य देशों की मदद भी नहीं लेनी पड़ रही है और भारत आत्मनिर्भरता की ओर आगे कदम बढ़ा रहा है।

चुनौतियां

कोरोना वैश्‍विक महामारी के कारण पूरी तरह से अस्‍त-व्‍यस्‍त और पस्‍त हो चुकी दुनिया की अर्थव्‍यवस्‍था में जान फूंकने की जरुरत अब आन पड़ी है। हमारे माननीय प्रधानमंत्रीजी का “लोकल के लिए वोकल बनकर उसे ग्‍लोबल” बनाने का सपना भी चुनौतियों को अवसर में बदलने का मूलमंत्र साबित हो रहा है। पर यह जितना सहज दिख रहा है, उतना ही जटिल भी है। भारत के आत्‍मनिर्भर बनने की राह में अनेक कांटे और चुनौतियां हैं। सरकार को सबसे पहले उन चुनौतियों से दो-चार होना पड़ेगा तभी इस समाज में, भूमंडलीकरण के इस दौर में हम लोकल की स्‍वीकार्यता और व्‍यापकता को धरातल पर यथार्थ रूप से उतार सकते हैं।

कोरोना वायरस महामारी की मार वैसे तो सब पर पड़ी है। अमीर हो या गरीब हर कोई संकट से झूझ रहा है । वैश्‍विक महामारी कोरोना के कारण विश्व की अन्य दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था भी बेजार हो चुकी है। कोरोना महामारी से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बदहाल है। इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर और तकनीकी सिस्‍टम में भी अभूतपूर्व बदलाव की आवश्यकता है और तो और हमारे देश में वीआईपी कल्‍चर और नौकरशाही के मकड़जाल में उलझ चुके बड़े बड़े कार्य को सुधारना भी बहूत गंभीर चुनौतियों में से एक है।

गौरतलब है कि हमारे देश में अनेक उपकरण, मशीनें और कच्‍चा माल आज भी विदेशों से आयात करना पड़ता है। अगर आयात की जाने वाली मशीनों को यहीं पर बनाया जाता है तो यहां बनाने वाले उत्‍पादों की लागत बढ़ जाएगी। दूसरी ओर, महामारी के चलते देश का प्रवासी मजदूर बड़े शहरों को छोड़कर अपने गांवों को चले गए हैं। ऐसे में अनेक उद्योग, कल- कारखाने बंद हो गए हैं। सभी मजदूरों को शहरों में फिर से वापस लाना सहज नहीं होगा। इसके लिए सरकार को बेहद सशक्‍त नीति बनानी पड़ेगी। लघु और सूक्ष्‍म उद्योगों को लगाने के लिए युवा पीढ़ी की एक फौज तैयार करनी पड़ेगी जो की कोई भी जोखिम उठाने की कुवत रखती हो और यह काम देश के गांव से ही शुरू करना चाहिए, क्योंकि हमारी आधी से अधिक आबादी तो गावों में ही बस्ती है। लेकिन उसके पहले गांवों में यातायात, बिजली, पानी और इंटरनेट की बुनियादी सुविधा के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को सशक्‍त करना होगा और साथ ही वहां कच्‍चे माल की उपलब्‍धता और निर्मित माल के लिए बाजार सुलभ कराना होगा, बिचौलियों से बचाना होगा।

भारत के आत्मनिर्भर बनने के सपने को साकार करने में कुछ और भी निम्न चुनौतियां हैं जिसे समझना भी जरूरी है-

लागत और गुणवत्ता – भारत के स्वयं के उत्पादों में एक समस्या है जो सबसे बड़ी है। भारत के सामान निर्माण में यह देखना जरूरी है कि क्या वास्तव में भारत में बने उत्पादों की गुणवत्ता अच्छी है और उनकी लागत कम हो सकती है।

आर्थिक समस्या – भारत में जनसंख्या और गरीबी दोनों ही एक साथ तेज गति से बढ़ रही है। किसी भी नये उत्पादन के लिए सबसे पहली आवश्यकता होती है पूंजी, हालांकि भारत में कई ऐसी योजनाएं हैं जो किसी भी नये उत्पादन या व्यवसाय को चालू करने के लिए लोन मुहैया कराती हैं। परन्तु, शुरुआती समय में देश को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि हमारी जनसंख्या का ठीक तरह से भरण पोषण करने में हम असमर्थ रहे हैं, हम अबतक अपनी जनसंख्या के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरी करने के लिए ही जूझ रहे हैं।

आधारभूत ढांचा – कई आर्थिक व व्यापार विशेषज्ञों की मानें तो उनके अनुसार, चीन से निकलने वाली कई अधिकांश कंपनियों के भारत में न आने का एक सबसे बड़ी कारण ही भारतीय औद्योगिक क्षेत्र (विशेष कर तकनीक के संदर्भ में) में एक मजबूत आधार ढांचे के अभाव को माना जाता है। हमारी बहूत भारी जनसख्या जो हमारी कमजोरी हो गई है अन्य देशों ने इसमें अवसर देख लिया है और बाहर की वस्तुओं का आयात ज्यादा मात्रा में हो रहा है। आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए हमें इस समस्या को भी सुधारने की जरूरत है।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने में मददगार पांच स्तंभ

अर्थव्यवस्था – भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था एक मिश्रित प्रकार की अर्थव्यवस्था है जिसमें परिवर्तन करना संभव है। अर्थव्यवस्था ही एक ऐसा साधन है जो भारत को आत्मनिर्भर बनने की और मोड़ सकती है।

तकनीकी – भारत में तकनीकी बहुत हद तक विकसित है और इसी तकनीक के चलते भारत विश्व शक्ति बनने का साहस रखता है। भारत की तकनीकी इसी का एक मुख्य अंग है जो भारत को आत्मनिर्भर बनाएगा।

इन्फ्रास्ट्रक्चर – भारत का इन्फ्रास्ट्रक्चर इतना मजबूत है कि यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मदद करेगा।

मांग – भारत में कच्चे माल की मांग इतनी ज्यादा बढ़ रही है कि हमें पड़ोसी देशों पर निर्भर रहना पडता है। अगर हम कच्चे माल निर्माण भारत में करते हैं तो उस स्थिति में भारत आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो सकेगा।

बढ़ती जनसंख्या– भारत की जनसंख्या भी जंगल में आग की तरह फैल रही है, इस पर नियंत्रण भी जरूरी है।

अगर भारत आत्मनिर्भर बनता है तो उस स्थिति में भारत को कई तरह के फायदे होंगे जो भारत को एक नई पहचान दिलाने मे मदद करेंगे।

आत्मनिर्भर बनने के बाद किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगे – भारत में हमारे दैनिक जीवन मे उपयोग में आने वाली वस्तुओं का आयात चीन या अन्य पड़ोसी देशों से किया जाता रहा है। अगर भारत का यह आत्मनिर्भर बनने का सपना पूरा होता है तो भारत को किसी अन्य देश के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे और भारत स्वयं ऐसी वस्तुओं का निर्माण करने लगेगा।

देशी उद्योग में बढ़ोतरी – भारत के आत्मनिर्भर बनने से भारत में कई तरह की वस्तुओं का निर्माण होगा और भारत में उद्योग भी बढ़ेंगे। भारत उन वस्तुओं को विदेश में भी भेज सकेगा और इससे भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

रोजगार के अवसर – आत्मनिर्भर से भारत में देशी और घरेलू उद्योग बढ़ेंगे जिस वजह से भारत में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और देश के कुशल और सक्षम लोगों को इससे रोजगार भी मिलेगा। इससे देश के आर्थिक हालात भी सुधर सकेंगे।

गरीबी से मुक्त होगा – देश में आत्मनिर्भरता से उद्योगों के साथ साथ युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। इससे देश में निश्चित रूप से गरीबी भी कम हो सकेगी।

पैसों की कमाई – भारत के आत्मनिर्भर बनने से देश में व्यापार के अवसर तो बढ़ेंगे ही साथ ही इससे देश को अच्छी कमाई भी होगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।

आयात की जगह निर्यात बढ़ेगा – भारत के आत्मनिर्भर बनने से पहले देश अब तक जिन वस्तुओं का आयात करता था अब यदि भारत उसका निर्यात करने लगेगा तो देश में विदेशी मुद्रा का भंडार भी बढ़ेगा।

आपदा के समय संकट मोचक बनेगा खजाना – आत्मनिर्भर बनने से भारत में रोजगार बढ़ेगा और देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी जिससे संकट के समय वह धन देश की रक्षार्थ काम आ सकेगा आखिर देश का खजाना तो देशवासियों की ही खून पसीने की कमाई है और ये देश वासियों को ही सरकार द्वारा विभिन्न विकास योजनाओं के रूप में लौटाया जाता है।

एक सफल व्यक्ति की बहुत बड़ी पहचान होती है कि वह अपने कौशल को बढ़ाने का कोई भी मौका जाने नहीं देता और सदैव नया मौका ढूंढता रहता है। जिस युवाओं में कौशल के प्रति अगर आकर्षण नहीं है, कुछ नया सीखने की ललक नहीं है तो उसका जीवन ठहर सा जायेगा, जीवन में रुकावट आ जायेगी। एक प्रकार से व्यक्ति अपने जीवन व व्यक्तित्व को बोझ सा बना देगा। खुद के लिए ही नहीं अपने स्वजनों के लिए भी बोझ बन जाएगा।

अतः अब वह समय आ गया है जब विभिन्न विधाओं में पारंगत होकर महाभारत के अर्जुन की भांति लक्ष्य भेदन की दिशा में आगे बढ़ें। कौशल के प्रति आकर्षण जीवन जीने की वास्तविक ताकत देता है, जीने का उत्साह देता है। ज्ञान व कौशल केवल रोजी-रोटी और पैसे कमाने का जरिया मात्र नहीं है। जीने के लिए कौशल हमारी प्रेरणा बनता है। यह हमें नवीन ऊर्जा देने का काम करती हैं।

आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता राष्ट्र के नागरिकों द्वारा राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों को आत्मसात् करते हुए स्वदेशी व कौशल के मार्ग पर चलकर ही प्राप्त की जा सकती है। हमें हर हाल में वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ भारतीय व प्राचीन परंपरागत विभिन्न कौशलयुक्त विधाओं को भी समन्वित रूप से साथ लेकर आगे बढ़ना होगा जिससे विकराल होती समस्या का उचित व उपयोगी समाधान मिल सके।

अतः अंत में कहा जा सकता है की हम जिस राष्ट्र की मिट्टी में पले बढ़े हुए हैं जिस राष्ट्र का हमने खाया है, क्यों ना उस राष्ट्र का कर्ज हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर भारत को विकासशील नहीं बल्कि विकसित देशों में शामिल करें।तभी हम पूरी तरह से कह पाएंगे कि हां मैं भारत का निवासी हूं,एवं आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक दृष्टिकोण से स्वतंत्र देश का आत्मनिर्भर नागरिक हूं।

अखिलेश शर्मा/केनरा बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक रह चुके हैं । संप्रति नई दिल्ली में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्त सेवा विभाग में प्रतिनियुक्ति ।