‘स्टार्टअप’ के दौर में तालाबंदी? ये वक़्त-‘वक़्त’ की बात है

फोटो- @DIPPGOI
फोटो- @DIPPGOI

राजीव मंडल

आप केंद्र सरकार की इस विरोधाभासी संकल्पना पर तालियां पीट सकते हैं लेकिन ‘मेक इन इंडिया” और ‘स्टार्टअप-स्टैंडअप” नीतियों की टाइमिंग पर ध्यान देना ज़रूरी है। सरकार के एजेंडे में युवाओं को रोजगार मुहैया कराना है। खाली हाथों को काम देने का विजन है। ऐसे वक्त में जब स्टार्ट अप और स्टैंड अप के नारे बुलंद है, हम बात कर रहे हैं एक वक्त की पाबंदी की ताकीद करने वाली एक कंपनी के बुरे वक़्त की।

दुख इस बात का है कि एक समय भारत की प्रतिष्ठित कम्पनी की कतार में शुमार एचएमटी लिमिटेड कंपनी पर ताला लग गया। इस बात की तसदीक खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया। इससे करीब एक हजार लोगों की रोजी-रोटी छिन रही है। सरकार एचएमटी के संयंत्रों की चल-अचल संपत्तियों को सरकारी नीतियों के अनुरूप बेचने वाली है। घाटे में चल रही एचएमटी लिमिटेड, एचएमटी चिनार वॉच लिमिटेड और एचएमटी बेयरिंग लिमिटेड को 427.48 करोड़ रुपये की सहायता दी गई है। इनके लगभग एक हजार कर्मचारियों के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने या एकमुश्त राशि लेकर सेवा से अलग होने के बाद इन्हें बंद किया जाएगा।

1961 में जापान की सिटीजन वॉच के साथ मिलकर शुरू होने वाली एचएमटी लिमिटेड कंपनी में 2000 से ही विवाद चला आ रहा था, जिसका अंत कम्पनी को बंद करने के निर्णय के साथ हुआ। सार्वजनिक उद्यम के रूप में 1961 में जापानी कंपनी सिटीजन वॉच के सहयोग से घड़ियों के निर्माण के लिए बेंगलुरु में एचएमटी की स्थापना हुई थी। यहां उत्पादित घडि़यों की पहली खेप जारी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने में इसे आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम बताया था। हालांकि यह इसके बुरे दिन कांग्रेस के शासनकाल में ही शुरू हुए, लेकिन बंदी की घोषणा नेहरू की नीतियों पर अमल करने वाले मोदी ने की। बहस इस बात पर है कि आखिर, ऐसी क्या नौबत आ गई कि कंपनी को बंद करने का निर्णय लेना पड़ा?

@mib_indiaवैसे डब्लूईएफ की यह रिपोर्ट भारतीय अर्थव्यवस्था के थोड़े बेहतर समय पर आती, तो बहस आगे बढ़ाने में मुश्किल होती। एनडीए नेतृत्व वाली नरेन्द्र मोदी सरकार को ‘भारत का विकास कराने” के वादे पर वोट मिला था, और भारतीय उद्योग ने इस नीति पर मुहर भी लगाई थी। वैसे, इन सब बातों पर ज्यादा ध्यान दिए बिना अपने अभियान पर फोकस करना होगा। नि:संदेह चीन की डगमगाती अर्थव्यवस्था और गिरते हुए बाजार ने भारत को भी प्रभावित किया है। ऊपर से रुपये की साख कमजोर होने से भारतीय उद्योगपतियों और निवेशी संस्थाओं की चिंता का बांध भी टूटता दिख रहा है। वजह है आर्थिक नीतियों में सुस्ती और सरकार के काम-काज पर राजनीतिक ग्रहण। बाजार भरोसे और समर्थन पर चलता है। निवेशकों समेत उद्योगपतियों को भी मोदी सरकार से यही आस है। इस लिहाज से सरकार के लिए रोजगार सृजन करना काफी दुष्कर होगा। हालांकि सरकार इन सब बातों पर फ्रिकमंद नहीं होगी, ऐसा भी नहीं है। इसके लिए प्रयास भी हो रहे हैं, औैर तैयारियां भी उसी के अनुरूप की जा रही हैं। लेकिन रोजगार देने के माहौल में रोजगार छीन लेने की खबर कतई अच्छी नहीं कही जाएगी। कहीं न कहीं सरकार को भी इस विषय पर मंथन करने की जरूरत है।

hmtगौर करने वाली बात यह भी है कि कई बार दूसरों की गलत नीतियों का ठीकरा न चाहते हुए आप ही के सिर फूटता है। एचएमटी कंपनी पर तालाबंदी का मसला दरअसल कुछ ऐसा ही है। एचएमटी के सुनहरे दिनों पर 1993 से ग्रहण लगना शुरू हुआ। सरकार ने नई आर्थिक नीतियों के तहत टाइटन को भारत में घडि़यां बनाने का लाइसेंस दिया। खराब प्रबंधन, कर्मचारियों की लापरवाही, अधिकारियों के भ्रष्टाचार और अदूरदर्शिता ने एचएमटी को धीरे-धीरे बाजार से बाहर करना शुरू किया और टाइटन ने भारत में 60 प्रतिशत घड़ी बाजार पर कब्जा कर लिया। प्रतिस्पर्धी बाजार में 1995 के बाद एचएमटी की स्थिति खराब होनी शुरू हो गई। एचएमटी वॉच बिजनेस ग्रुप का पुनर्गठन  वर्ष 2000 में एचएमटी वॉचेस लिमिटेड के नाम से हुआ। इसके बाद भी कंपनी नाकाम ही रही। ख़राब स्थिति को देखते हुए 2001 से ही एचएमटी में वीआरएस की प्रक्रिया शुरू हो गई।

तो क्या यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि यह सारा पाप कांग्रेस के शासनकाल में पैदा हुआ। आंकड़े तो यही गवाही दे रहे हैं। आर्थिक उदारीकरण के शुरुआती साल में ही देश की सबसे प्रतिष्ठित कंपनी के बुरे दिन शुरू हो गए थे। फिर, ऐसे उदारीकरण और उससे उत्पन्न बीमारियों का इलाज उसी वक्त क्यों नहीं किया गया? लाखों रोजगार के साधन मुहैया कराने की जिस नीति और अभियान पर सरकार इतरा रही है, उसकी समीक्षा भी करे तो बेहतर होगा। वरना एचएमटी का भूत पीछा नहीं छोड़ेगा। होना तो यह चाहिए था कि इस अभियान के दौरान ही एचएमटी की टिक-टिक बंद नहीं हो सके, इसकी कोशिश होनी चाहिए थी। अगर ऐसा हो पाता तो स्टार्टअप की आभा और दमक उठती।

(साभार- सहारा न्यूज)


rajiv mandalराजीव मंडल। सहारा न्यूज ब्यूरो में कार्यरत। करीब दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय।


स्मार्ट मोबाइल जैसे स्मार्ट विलेज… जुमले हैं, जुमलों का क्या… पढ़ने के लिए क्लिक करें