सुनो डुमरिया, क्या बोले बहुरिया?

बिहार के अररिया जिले का मिल्की डुमरिया गांव। नौनिहालों के सपनों की चिंता। फोटो- नीलू अग्रवाल
बिहार के अररिया जिले का मिल्की डुमरिया गांव। नौनिहालों के सपनों की चिंता। फोटो- नीलू अग्रवाल

                      मेरे जेहन में कोई गांव नहीं और न ही मेरी परवरिश गांव में हुई। पर हां, पिछले पंद्रह सालों से मैं गांव से रूबरू होती रही हूं, मेरे ससुराल के जरिए। मेरा ससुराल- अररिया जिले का एक साधारण सा गांव-मिल्की डुमरिया। बहुत ही आहिस्ता-आहिस्ता, परत-दर-परत मैं वहां के सामाजिक ताने-बाने को समझ रही हूं।

ससुराल में पहली बार जब मैंने अपने खेत और बगीचे देखे... रेणु मेरी आंखों मे साकार हो गए- नीलू , फोटो स्रोत-नीलू के फेसबुक से।
ससुराल में पहली बार जब मैंने अपने खेत और बगीचे देखे… रेणु मेरी आंखों मे साकार हो गए- नीलू , फोटो स्रोत-नीलू के फेसबुक से।

              गांव में आकर्षित करने के लिए तो कुछ खास नहीं, पर वहां की दो चीजें मुझे हमेशा अपनी तरफ खींचती हैं- सरल हृदय और हरे-भरे खेत। पर मैं उन खेतों में नहीं घूम सकती क्यूंकि बहुरिया हूं, वो भी मास्साब की। जी हां, मेरे ससुर, जो प्रधानाध्यापक पद से रिटायर हुए हैं। अगर वे चाहें तो गांव में शिक्षा का माहौल पैदा कर सकते हैं। गांव के बच्चों को पढ़ा सकते हैं, पर अफसोस… । गांव का रंग ही दूजा है… अरे ओकरा कन एते अल्लू भेल… ओकरा कन एते गाय-माल छै

हमारे आंगन के अलावा एक आध परिवार को छोड़ दें, तो ज़्यादातर घरों के लोग निरक्षर हैं। सरकारी स्कूलों के हालात बदतर हैं। प्राइवेट स्कूलों ने जहां शिक्षा को हौवा बना दिया है, वहीं सरकारी स्कूलों ने मानो शिक्षा को सबसे निचले पायदान पर पटक दिया हो।

तमाम सरकारी सुविधाओं से महरूम हमारा गांव अपने हाल पर ही खुश है। गांव नेपाल सीमा से लगा है और बॉर्डर पार करते ही कहानी कुछ और ही हो जाती है। महज छह किलोमीटर के फ़ासले में ज़िंदगी के तौर तरीकों का फ़ासला, मुझे हैरान करता रहा है। बदलाव की ओर कदम बढ़ाने में हिचकने वाले गांव के लोगों को पंचायती चुनावों ने राजनीति का ककहरा ज़रूर पढ़ा दिया है। चंद दबंग लोग राजनीतिक फ़ायदे के लिए हिंसा करवाते हैं, और मोहरा बनते हैं सीधे-सादे लोग।

बहुरिया हूं, ज़्यादा शिकायत करते हिचक तो होती है, लेकिन एक बात कहे बगैर जी भी नहीं मानता। एक चीज़ गांव में हर जगह बिकने लगी है, वो है दारू। गांव के युवाओं को अब इस लत ने घेरा है। काश, बर्बादी की धुन पर मचलते इन युवाओं को कोई मास्सब रोक पाते, दो थप्पड़ लगा पाते।

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नीलू अग्रवाल। नीलू ने हिंदी साहित्य से एमए और एमफिल की पढ़ाई की है। वो पटना यूनिवर्सिटी से ‘हिंदी के स्वातंत्र्योत्तर महिला उपन्यासकारों में मैत्रेयी पुष्पा का योगदान’ विषय पर शोध कर रही हैं।

3 thoughts on “सुनो डुमरिया, क्या बोले बहुरिया?

  1. Good work bhabhi lekin jimmedari aap jaise logo sai pura hoga boond boond sai hee samundar bharta hai aur ek din milki dumaria apnai mukam par pahuchega.

  2. फेसबुक पर कुछ प्रतिक्रियाएं-
    Amod Pathak- बहुत अच्छी पहल है! मुझे अब पता चला कि नीलू दीदी हिन्दी में इतनी विद्वता रखती हैं.
    Sumit Choudhary – नीलू दी , लाजवाब काम।
    Rajesh Kumar -Very good thing
    Shanki Agrawal -Nice article
    Akhilesh Kumar- अति सुन्दर ……… आगे भी जारी रखिए
    Anuradha Kumari -nice di

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