सात बरस बाद ‘मुंहबोले’ बाबा से मिलेंगे राहुल ?

IMG-20160122-WA0006सुनीता द्विवेदी

क्या आपने कभी बुंदेलखंड में राहुल के गाँव के बारे में सुना है?  राहुल गांधी जो देश की प्रमुख पार्टी कांग्रेस के राजनीतिक वारिस हैं, उनका बुंदेलखंड के बांदा में एक गाँव है। एक बाबा भी है जो सात साल से बेटे राहुल का इंतजार कर रहा है। पहली बार आए थे तो एक बाप की मुरझायी आंखों में उजड़ा बुंदेलखंड देखा था। बेटा होने का अहसास दिलाए और ये वादा करके लौटे कि इन मुरझायी आंखों में नमी मैं लाऊंगा। तब दुख के आंसू नहीं, आंखों में खुशी के पानी होंगे। कहने को तो गांधी परिवार की विरासत के तौर पर यूपी के रायबरेली और अमेठी का जिक्र होता आया है लेकिन बांदा के इस गाँव से अपना रिश्ता राहुल ने खुद जोड़ा था। माधौपुर, जी राहुल गांधी का गाँव माधौपुर। यूपी के बुंदेलखंड इलाके में बांदा जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर माधौपुर गाँव केन नदी के किनारे मिट्टी के टीलों के ऊपर बसा है। लगभग 1600 की आबादी वाले इस गाँव में करीब 900 वोटर हैं। नदी किनारे टीलों में बसाहट होने के कारण गाँव की उबड़खाबड़ जमीन खेती करने लायक नहीं है। जीवनयापन करने के लिए गाँव के लोग अक्सर नदी पार कर लकड़ी बीनने जाते हैं। गाँव में अधिकाँश लोग बूढ़े हैं।

RahulGandhiयह वहीं गाँव है जिसे साल 2008 में राहुल ने अपना बताकर गोद लिया था। टीबी के मरीज अच्छेलाल बताते हैं कि उस रोज जब लोग चारपाई पर लादकर उसे ले गए थे तो उसने अपना पूरा दुखड़ा राहुल को सुनाया। उसे लगता था अब दुःख के बादल छंट जायेंगे लेकिन हुआ उसके ठीक उलट। कुछ दिन तक तो बीमारी का इलाज मुफ्त हुआ लेकिन अब बीमारी ने खाने के लाले कर दिए हैं। इलाज के लिए न पैसे हैं न कमाई का कोई साधन।“ बकौल अच्छेलाल राहुल ने खुद को उनका बेटे जैसा बताया था, क्योंकि उसी वक्त अच्छेलाल के जवान बेटे की भूख से मौत हुई थी। पत्नी कल्ली लकड़ी बीनकर किसी तरह घर का गुजारा करती है। दोनों को लगता है कि उनको सिर्फ छला गया है, राहुल माधौपुर को भूल गए।
राहुल गांधी को अपना गाँव आज याद है भी या नहीं लेकिन गाँववालों के लिए जैसे यह कल की ही बात हो। राहुल गांधी अब 23
जनवरी को फिर बुंदेलखंड आ रहे हैं। उन्होंने ट्वीट करके इसकी जानकारी खुद देश को दी है। ऐसे में माधौपुर के लोगों की यादें बरबस ही ताजा हो गयीं। राहुल पिछली बार 2008 में बुंदेलखंड आये थे और अब जब 2016 में फिर से आ रहे हैं, इलाका तब भी भीषण सूखे की चपेट में था, किसान तब भी आत्महत्या कर रहे थे, सूरत-ए-हाल तब भी यही था और आज भी वही है। बदलने के नाम पर अगर कुछ बदला है तो वो है सिर्फ तारीख। साल 2008 में जनवरी का ही महीना था जब राहुल गांधी इस गाँव में 16 तारीख को आसमान से उम्मीदों के सूरज बनकर उतरे थे। लेकिन कोई क्या जानता था नए रिश्तों की गर्मी इतनी जल्दी ठंडी हो जायेगी। अब लोगों को लगता है कि राहुल गांधी अपने माधौपुर को भूल गए। कहीं न कहीं उनको इस बात का मलाल भी है। आना तो दूर उन्होंने अपने गाँव के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया। राहुल गांधी ने तब कईयों का दुखड़ा तो सुना और हाथ भी मिलाया लेकिन शायद दिल नहीं मिला पाए।

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गाँव में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो राहुल गांधी के गाँव से मुंह मोड़ लेने से मायूस तो हैं लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी है। माधौपुर गाँव के मुन्ना कहते हैं कि “राहुल गांधी कुछ तो दे कर जायेंगे। मैं उनके लिए तब बाजरे की रोटी और सब्जी लेकर गए थे।“ लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों और जनवरी 2008 में राहुल गांधी के दौरे को कवर करने वाले स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि जब-जब चुनाव नजदीक होता है राहुल ऐसे दौरे करते रहते हैं। वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक सुधीर निगम मानते हैं कि ऐसे दौरे महज राजनीतिक होते हैं जिनमें भावनाओं का तड़का लगाया जाता है। गाँव को गोद लेना मात्र स्टंट है। इस बार भी राहुल का दौरा 2017 के लिए है।

चुनावी बयार में राहुल तो राहुल कांग्रेस का कोई स्थानीय नेता भी आज तक गाँव में झाँकने भी नहीं आया। कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष दलजीत सिंह गाँव को भूलने के प्रश्न पर राहुल गांधी के दिलवाए बुंदेलखंड पैकेज का जिक्र कर पैसे के घालमेल का जिक्र करते हैं। दोबारा पूछने पर कहा कि अगर गाँव वालों को कोई शिकायत है तो उसे कांग्रेस के स्थानीय विधायक के साथ मिलकर दूर करवाएंगे। लेकिन यूपी में सत्तारूढ़ सपा पर प्रदेश में किसानों की न सुनने और लूट-खसोट करने का आरोप भी मढ़ दिया। वहीं सपा विधायक विशंभर यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जब राहुल कुछ कर सकते थे तब तो किया नहीं अब पता नहीं बुंदेलखंड क्या करने आ रहे हैं। कांग्रेस का चरित्र ही झूठ बोलने का रहा है।“ IMG-20160122-WA0008

किसानों के खेतों में भले ही नेताओं के उड़नखटोलों को जमीन मिल जाए लेकिन दिल में उतरने के लिए नेताओं को कुछ करके दिखाना होगा। सूखे और किसानों की आत्महत्या में तड़पता बुंदेलखंड पहले ही दर्द से बेजार था। ऐसे में वोटों के जुगाड़ में राजनेताओं का इस तरह आना बुंदेलखंड के लोगों को बिलकुल नहीं रास आता। हो सकता है राहुल का सामना इस बार पुराने किए वादों से हो जाए, जिसका जवाब वह यूपी में कांग्रेस की सरकार बनाने को कहकर दे सकते हैं! लेकिन दौरों से बुंदेलखंड का दर्द कम नहीं होगा। कुछ करना होगा तभी हालात बदलेंगे।

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सुनीता द्विवेदी। उत्तरप्रदेश के बांदा की निवासी हैं। हिंदी से एमए और बीएड की डिग्री लेने के बाद इन दिनों सामाजिक बदलाव की चेतना जगा रही हैं । सार्थकता की संभावनाएं तलाशने और लोगों में उम्मीद जगाने में सुनीता यकीन रखती हैं ।