बागेश्वर के गरुड़ से ओलंपिक तक

नितेंद्र सिंह रावत, धावक
नितेंद्र सिंह रावत, धावक

बी डी असनोड़ा

पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम ने कहा था कुछ बनना है तो बड़े सपने देखा करो। उनकी बातों ने बहुत सारे बच्चों को प्रेरित भी किया। ऐसा ही एक नाम है नितेंद्र सिंह रावत। जब उत्तराखंड एक्सप्रेस सुरेन्द्र भंडारी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी दौड़ से धूम मचाये हुए थे तब बागेश्वर के गरुड़ का एक लड़का नितिन उनकी तरह बनने का सपना संजो रहा था। अपनी लगन और मेहनत से वो नौजवान आज न सिर्फ अपने आदर्श का सबसे प्रिय शिष्य है बल्कि रिओ-डी-जेनेरो ओलिंपिक में भी दौड़ने जा रहा है।

बागेश्वर के गरुड़ में पैदा हुए नितेंद्र सिंह रावत का बचपन भी पहाड़ के दूसरे बच्चों की तरह सामान्य ही था। पांचवीं तक गरुड़ के सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़े नितेंद्र आगे की पढाई के लिए आर्मी स्कूल रानीखेत चले गए। यहाँ अख़बारों में अक्सर वो भारत के शीर्ष धावक सुरेन्द्र भंडारी का नाम पढ़ा करते थे। सुरेन्द्र भंडारी उस समय लम्बी दूरी में देश के नंबर वन धावक थे। वो लगातार पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे थे। उनके नाम नए रिकॉर्ड लिखे जा रहे थे। इसी से नितेंद्र बहुत प्रभावित थे। चूँकि सुरेन्द्र भंडारी उत्तराखंड के ही थे तो नितिन के मन में उनके लिए सम्मान बढ़ता ही जा रहा था। नन्हे मन में ये बात गहरे तक बैठ गयी कि उसे भी अपने आदर्श की तरह बनना है। दसवीं तक आर्मी स्कूल में पढ़ने के बाद नितेंद्र ने बारहवीं तक गरुड़ के सरकारी स्कूल में पढ़ाई की। उच्च शिक्षा के लिए फिर अल्मोड़ा आ गए। धावक बनने का सपना मन में घर कर गया था। दरअसल पहाड़ के बच्चे इतना पैदल चलते हैं कि वो नेचुरल एथलीट होते हैं। जब उन्हें सही मंच मिल जाता है तो उनकी प्रतिभा दुनिया देखती है।

दिलचस्प बात ये थी कि अभी तक नितेंद्र दौड़ की किसी प्रतियोगिता में शामिल नहीं हुए थे। 2005 में नितेंद्र सेना में भर्ती हो गए। बस यहीं से उनके सपनों को पंख लग गए। पहाड़ ने जो मजबूत फेफड़े दिए उस पर सेना की कड़ी ट्रेनिंग और अनुशासन ने सफलता की कहानी लिखनी शुरू कर दी। नितेंद्र ट्रेनिंग के बाद क्रॉस कंट्री टीम में चुन लिए गए। दुर्भाग्य से कैरियर के शुरुआत में ही उन्हें इंजरी आ गयी। टीम से बाहर होना पड़ा। ये समय बहुत हताश करने वाला था। नितेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी। 2008 में नितेंद्र ने सेना की टीम में वापसी की। छोटी-मोटी सफलताओं के साथ खेल का सफर चलता रहा। लेकिन मन में कुछ अधूरा सा लग रहा था। 2012 में ये अधूरापन ख़त्म हुआ और जीवन का सबसे बड़ा सपना भी पूरा हुआ। नितेंद्र की मुलाकात बचपन से उसके हीरो और आदर्श रहे उत्तराखंड एक्सप्रेस सुरेन्द्र सिंह भंडारी से हुई। फिर क्या था अब अर्जुन को द्रोणाचार्य मिल चुके थे। सुरेन्द्र भंडारी के मार्गदर्शन में अब बड़ी सफलताओं का सिलसिला शुरू हुआ। अभी तक राष्ट्रीय स्तर का एथलीट साल भर के अंदर अंतर्राष्ट्रीय एथलीट बन गया।

NITENDRA SINGH2013 में फेडरेशन कप में गोल्ड मेडल जीता। इसी साल थाईलैंड में एशियन ग्रैंड प्रिक्स में 5000 मीटर की दौड़ गोल्ड मेडल जीता। थाईलैंड में ही एशियन ग्रैंड प्रिक्स में 3000 मीटर की दौड़ गोल्ड मेडल जीता। ये सिलसिला श्रीलंका में भी जारी रहा। इसी स्पर्धा में वहां भी गोल्ड मेडल जीता। 2013 नितेंद्र के करिअर का स्वर्णिम साल था तो घुटने में चोट भी आ गयी। नौबत यहाँ तक आ गयी की सर्जरी करवानी पड़ी। ठीक यही उनके गुरु सुरेन्द्र सिंह भंडारी के साथ भी हुआ था। सुरेन्द्र को सही सलाह और इलाज नहीं मिल सका था, इसलिए उनका चमकदार करिअर असमय समाप्त हो गया था, वो भी तब जब वो अपनी सफलता के शीर्ष पर थे। यहाँ कोच सुरेन्द्र भंडारी का अनुभव काम आया। उनकी अनुभवी और सही सलाह से नितेंद्र साल भर के अंदर ही ट्रैक पर वापसी करने में सफल हुए। इस दौरान घरवालों और मित्रों ने लगातार उनका हौसला बढ़ाये रखा। 2014 में ट्रैक पर वापसी हुई। दिल्ली ओपन नेशनल में गोल्ड मेडल जीता। 2015 में साउथ कोरिया में वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स में आठवां स्थान पाने के साथ ही नितेंद्र ने ओलिंपिक के लिए क़्वालीफाई कर लिया। 2015 में ही एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में स्वर्ण पदक जीतकर नितिन ने तहलका मचा दिया। देश के लिए ओलिंपिक में दौड़ना हर एथलीट का सपना होता है। मैराथन में ओलिंपिक के लिए क्वालीफाई करने के साथ ही नितेंद्र का सपना भी पूरा हो गया है। अब रिओ-डी-जेनेरो में अच्छे प्रदर्शन के लिए नितिन अपने कोच के साथ खूब पसीना बहा रहे हैं।

नितेंद्र ने मुंबई मैराथन में नया कोर्स रिकॉर्ड बनाया। उन्होंने 2 घंटे 15 मिनट 48 सेकंड का समय निकाल राम सिंह यादव का चार साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा। राम सिंह ने 2 घंटे 16 मिनट 59 सेकंड का समय लिया था। नितेंद्र को पहला स्थान पाने पर 5 लाख का इनाम मिला। नया कोर्स रिकॉर्ड बनाने के लिये डेढ लाख रुपये मिले। ओवर ऑल 10वां स्थान पाने पर भी इनाम मिले।

दोस्तों के साथ धावक नितेंद्र सिंह रावत
दोस्तों के साथ धावक नितेंद्र सिंह रावत

अपने परिवार को खूब प्यार करने वाले नितेंद्र की दो बहने हैं। दोनों की शादी हो चुकी है। माँ गृहणी हैं तो पापा कांट्रेक्टर हैं। नितेंद्र कहते हैं- “पापा खेल के बारे में ज्यादा नहीं जानते लेकिन हमेशा हौसला बढ़ाते रहते हैं।“ एक घटना का जिक्र करते हुए नितिन की आँखों में आंसू आ जाते हैं। नितेंद्र बताते हैं की 2010 में भू-स्खलन में मकान टूट गया, लेकिन घरवालों ने उन्हें इसलिए नहीं बताया कि उसका ध्यान अपनी ट्रेनिंग से हट जायेगा। दूसरे खेलों में क्रिकेट को पसंद करने वाले नितिन रोज 50 किलोमीटर दौड़ते हैं। उनका प्रैक्टिस सेशन आठ घंटे का होता है। युवाओं को वो आगे बढ़ने के लिए हमेशा सौ फ़ीसदी मेहनत करने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि सौ फीसदी मेहनत होगी तभी सफलता मिलेगी। नितिन आपने उत्तराखंड के साथ ही देश का भी नाम रोशन किया है।


बी डी असनोड़ा , उत्तराखंड के गैरसैंण के निवासी। पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता। लंबे अरसे से वो गांव से जुड़े मुद्दों को अलग-अलग मंचों से उठाते रहे हैं।