बदलाव-मधेपुरा से रायपुर तक

बदलाव के लेखों का पहला संकलन, विनय तरुण स्मृति कार्यक्रम के मौके पर लोकार्पित किया गया।
बदलाव के लेखों का पहला संकलन, विनय तरुण स्मृति कार्यक्रम के मौके पर लोकार्पित किया गया।

साल भर पहले मधेपुरा का जिला सभागार। विनय की यादों में खोए तमाम साथी। इसी बीच थोड़े संकोच के साथ badalav.com की परिकल्पना हमने साथियों के बीच साझा की। इस सूचना को साझा करने का आग्रह प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादकीय साथी रंजीत कुमार सिंह से किया गया। हम सभी के मन में थोड़ी झिझक थी, शायद। पता नहीं ऐलान के बाद हम इस वादे को निभा पाएं या नहीं।

हमारे मन में छोटी सी बात थी- बदलेगा गांव, बदलेगा देश। गांव से शहर का कनेक्शन जोड़ा जाए। संवेदना के धरातल पर। रोजी-रोटी के लिए अपने गांवों को छोड़ शहरों में बसे लोगों को थोड़ा सा ‘नॉस्टेल्जिक’ बनाया जाए। गांवों के साथ रिश्ते को कुरेदा जाए।… और धीरे-धीरे एक कनेक्ट बनता चला गया।

कुछ साथियों ने अपने-अपने संस्थानों और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच थोड़ा वक्त वेबसाइट के लिए निकालने  का संकल्प लिया। हमने शुरुआत में हर दिन एक पोस्ट का लक्ष्य रखा। ये भी एक चुनौती की तरह ही रहा। यूं तो जेहन में कई नाम हैं, पर दो साथियों का जिक्र विशेष तौर पर करना जरूरी है। अरुण और सत्येंद्र, जिन्होंने वेबसाइट को अपने रूटीन जीवन का हिस्सा बना लिया। उन्हीं की बदौलत एक पोस्ट का ये सिलसिला (साल के दो दिन के नागे को छोड़कर) भी मुमकिन हो पाया। तकनीकी तौर पर विजय यादव हमेशा हमारे साथ रहे। वरिष्ठ साथियों में बजरंग झा और गौतम मयंक का सहज मार्गदर्शन हमें मिलता रहा है।

badalav.com के ग्रामीण स्वरूप को बनाए रखने में फील्ड से तमाम साथियों ने अपने आलेख भेजे। खास तौर पर दिवाकर मुक्तिबोध, पुष्यमित्र, रुपेश कुमार, विपिन कुमार दास,  आशीष सागर दीक्षित,  कीर्ति दीक्षित जैसे साथियों ने कभी स्वयं की प्रेरणा से तो कभी हमारे आग्रह पर आलेख की निरंतरता कायम रखी। बिहार से पहाड़ तक और मध्यप्रदेश से महाराष्ट्र तक कई लेखक हमारे साथ स्वाभाविक तौर पर जुड़ते चले गए। एक साल में सौ से ज्यादा साथी अपने आलेख के जरिए बदलाव से जुड़ चुके हैं, जो वाकई एक सुखद एहसास है।

इस बीच, विचार को एक्शन रूप देने के लिए कुछ गतिविधियां भी बदलाव के बैनर तले हमने आयोजित की हैं। इस

विनय स्मृति व्याख्यानमाला में आदिवासी और हमारी पत्रकारिता विषय पर रामशरण जोशी का वक्तव्य।
विनय स्मृति व्याख्यानमाला में आदिवासी और हमारी पत्रकारिता विषय पर रामशरण जोशी का वक्तव्य।

सिलसिले में अरुण यादव ने जौनपुर में बदलाव की चौपाल का आयोजन किया तो वहीं सत्येंद्र कुमार यादव ने देवरिया में ऐसी ही कोशिश की। गांवों के साथ इस तरह के संवाद में हमें काफी अच्छा फीडबैक मिला है। हम उन गांवों में बदलाव का एक अनौपचारिक समूह बनाए जाने पर भी विचार कर रहे हैं, जहां हमारे कुछ साथी सक्रिय हैं। या हममें से कोई एक अगुवाई करने को तैयार है।

मार्च 2016 में हमने ‘जेएनयू प्रकरण और मीडिया’ विषय पर एक संगोष्ठी गाजियाबाद में की थी। इस आयोजन में वरिष्ठ लेखक उदय प्रकाश, अहा जिंदगी के संपादक आलोक श्रीवास्तव समेत कई बुद्धिजीवियों का सान्निध्य मिला। ऐसी छोटी गोष्ठियों का सिलसिला भी कायम रखा जा सकता है।

बदलाव के साथियों ने मई-जून 2016 में एक और पहल की। बच्चों के लिए एक नया अनौपचारिक समूह- बदलाव बाल क्लब – गाजियाबाद में बनाया गया। समर कैंप में 20 बच्चों ने भाग लिया। ये एक नया अनुभव था। बदलाव बाल क्लब और बदलाव युवा क्लब की संकल्पना को साकार करने के लिए मधेपुरा में रुपेश कुमार और बिजनौर में निशांत यादव से भी बात हुई। वो सैद्धांतिक रूप से  इस पर सहमत हैं और जल्द ही हो सकता है कि इन दो जगहों पर हमारी गतिविधियां आकार ले सकें।

कभी ‘दस्तक’ के बैनर तले हम सभी साथी यूं ही लोकतांत्रिक तरीके से कई योजनाओं को अंजाम दिया करते थे। अब ‘बदलाव’ भी कमोबेश वैसे ही ढांचे पर ‘दस्तक’ दे रहा है। सभी साथियों के विचारों के लिए स्पेस कायम रखने की कोशिश करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि कुछ तकनीकी और आर्थिक जरूरत के लिहाज से हम इसे अगले साल तक व्यवस्थित रूप देने की कोशिश कर सकते हैं। अभी तक साथियों के आर्थिक चंदे से ही बदलाव के छोटे-मोटे खर्चे चल रहे हैं।

हमें कहने में कोई संकोच नहीं कि ये सब एक स्वाभाविक सहज प्रवाह के तौर पर मुमकिन हो रहा है। हम किसी बंधे-बंधाएं ढांचे में न तो सोच रहे हैं और न ही हमने पहले से बहुत मुकम्मल एक्शन प्लान तैयार कर रखा है। बावजूद इसके बदलाव का दायरा बढ़ रहा है। लोग इसके साथ अपनेपन का रिश्ता कायम कर रहे हैं। हम प्रगतिशील सोच के साथ सकारात्मक दिशा में कदम दर कदम बढ़ाने को प्रस्तुत हैं। आज भी और कल भी।

आखिर में एक बार फिर रंजीत और अखिलेश्वर के हाथों में ‘बैटन’ है। ये छोटी सी पुस्तिका इन्हीं दो साथियों ने डिजाइन की है। मधेपुरा में भी रंजीत ही सूत्रधार थे। आज भी वही सूत्रधार की भूमिका में हैं, फिर से।

प्रेरणा के तौर पर सूत्र वही है- हमारा-आपका प्यारा विनय। पता नहीं ऐसा क्या है उस ‘विनैया’ में कि हम सभी बार-बार एकजुट हो जाते हैं। वो ताकत देता है, वो प्यार करता है और वो कहता रहता है-  मैं तुम सब में हूं, तुम सब मुझमे हो। साथी चलते चलो, मैं तुम्हारे साथ हूं…

One thought on “बदलाव-मधेपुरा से रायपुर तक

  1. Many congratulations for remarkable success towards Change……let’s move ahead for this Mission of Bdlega gaanv Badlega Desh……..All the very best……I am always there for Badlaav…….Missi

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