‘डायन’ बता कर मत करना ‘मर्डर’

-पुष्यमित्र के फेसबुक वॉल से

dayan-1विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर मैंने फेसबुक पर कई मित्रों के शुभकामना संदेश देखे। कुछ साथी यह बताते रहे कि आज भी भारत में आदिवासियों के शोषण की प्रक्रिया जारी है। उन्हें बड़े पैमाने पर अपनी ज़मीन से बेदखल किया जा रहा है। इन तमाम बातों से सहमति जताते हुए मैं इस मौके पर अपने सभी आदिवासी मित्रों से थोड़ी कड़वी बातें कहना चाहता हूँ। मैं इसके लिए आप तमाम लोगों से पहले ही क्षमा मांग ले रहा हूँ। यह बात आदिवासी समाज में गहराई तक पैठ बना चुके अंधविश्वास के बारे में है।

हाल ही में खबर आई थी डायन बिसाही के संदेह में झारखंड में पांच महिलाओं की हत्या कर दी गयी। दूर दराज के इलाके में हुई इस घटना को समुचित मीडिया कवरेज नहीं मिला। मगर यह कोई साधारण घटना नहीं है। सरकारी और कार्पोरेट दमन की चक्की में पहले से ही पिस रहा समाज हमारे अपने लोगों के लिए भी कम क्रूर नहीं है, यह इस घटना से जाहिर है। और यह कोई अपवाद किस्म की वारदात नहीं है। झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर उनकी हत्या, उनके साथ अमानवीय व्यवहार की घटनाएँ इतनी आम हैं कि अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में नक्सली वारदातों में जितनी हत्याएं हुई हैं उससे थोड़ी ही कम हत्याएं डायन बिसाही के नाम पर हुई हैं।

पंचायतनामा साप्ताहिक पत्रिका में हमने झारखंड में आदिवासी समाज के बीच फैले अंधविश्वास को लेकर बहुत विस्तार से खबरें की थीं। उस दौरान हमें पता चला कि आदिवासियों में ओझा गुनी के प्रति निर्भरता दूसरे समाज के मुकाबले कई गुना अधिक है। लोग कोई भी काम ओझा से पूछे बगैर नहीं करते हैं। ओझा ही लोगों के जीवन को संचालित करते हैं। गांव गांव में छोटे छोटे ओझा हैं और बड़े ओझाओं के एजेंट हैं। वे हर घटना की व्याख्या करते हैं। बात बात पर अनुष्ठान कराते हैं। लिहाजा किसी महिला को डायन करार देना उनके लिए सबसे सहज काम है।

समाज की हजारों महिलायें डायन करार दिए जाने की प्रताड़ना झेल रही हैं। जमशेदपुर में एक ऐसी महिला छूटनी ने उन तमाम महिलाओं का समूह बनाया है जिन्हें समाज ने डायन करार देकर गांव से बाहर कर दिया है। वे उनके हक़ की लड़ाई लड़ती हैं।

झारखंड में अलग राज्य निर्माण के साथ साथ नशामुक्ति जैसे सामाजिक आन्दोलन भी चलते रहे हैं। मगर यहाँ के नेताओं ने कभी गंभीरता से इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया। क्या विश्व आदिवासी दिवस जैसे मौके पर हमलोग इस दिशा में ठोस कदम उठाने की तैयारी कर सकते हैं?

PUSHYA PROFILE-2


 

टिप्पणी पुष्यमित्र की है, जिनसे 09771927097 पर संपर्क किया जा सकता है। पुष्यमित्र पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय में हैं और गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है।

One thought on “‘डायन’ बता कर मत करना ‘मर्डर’

  1. फेसबुक पर कुछ प्रतिक्रियाएं

    1. चंदन शर्मा- बिहार-झारखंड में आज भी हर दिन यह हो रहा है…शर्मनाक.

    2. Amod Pathak- अंधविश्वास व क्रुरता का दुर्भाग्यपूर्ण समन्वय है यह ! सोचने वाली बात है कि डायन होने का ठप्पा महिलाओं पर ही क्यों लगता है. वैसे यह कटु-सत्य है कि अक्सर एक महिला ही दूसरी महिला को डायन ठहराती है. कुछ लोग इस बात की आड़ में दुश्मनी की कोई पुरानी कसर भी निकालते हैं. डायन होने का आक्षेप प्रायः अकेली और कुपोषण की शिकार अधेड़ महिलाओं पर लगता है जो और भी दुखद है. क़ानून की तत्परता के साथ-साथ जागरूकता एवं उचित शिक्षा के सिवा कोई चारा नहीं है कि ऐसी घटना रुके.

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