चुनावी मौज-भोरकवा चाय के चुस्की, सांझ ढले देसी ठर्रा…

 

गोरखपुर के बड़हलगंज से रंजेश शाही की रिपोर्ट

voting 2यूपी में पंचायत चुनाव को लेकर हलचल तेज हो गई है । पंचायत चुनाव के लिए गांव की गलियों में सियासी फिजा बनने लगी है । गली चौबारों पर बनी चाय की दुकानों पर सियासी संसद सजने लगी है, हर तरफ बस चर्चा हो रही है तो चुनाव की। सबसे अहम मुद्दा है आरक्षण का, क्योंकि आरक्षण का फॉर्मूला तो तय हो गया है लेकिन कौन सी सीट सुरक्षित होगी इस बारे में अभी तक फैसला नहीं हुआ है। लिहाजा हर कोई अंदाजा लगा रहा है, पिछड़ी जाति के लोग अपने हिसाब से जोड़-घटा रहे हैं, तो अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग अपने तरीके से। वहीं जनरल कोटे के भाईजी भी सुरक्षित सीटों के बाद सामान्य को लेकर गुणा-गणित खूब कर रहे हैं ।

2015 पंचायत चुनाव में 59 हजार 164 ग्राम प्रधान,  7 लाख 43 हजार 297 पंचायत सदस्य,  78 हजार 75 क्षेत्र पंचायत सदस्य और 3 हजार 134 जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव होगा। पूरे उत्तर प्रदेश में 11 करोड़ मतदाता  8 लाख 84 हज़ार 410 प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। स्टेट इलेक्शन कमिशन ने इस बार 1500 मतदाता के पीछे एक ब्लॉक लेवल अधिकारी को तैनात करने का फ़ैसला लिया है। पहले तीन हज़ार मतदाता पर एक ब्लॉक लेवल का अधिकारी होता था। 2015 के चुनाव में करीब 80 हज़ार ब्लॉक लेवल अधिकारी तैनात होंगे। 

गांवों की फिजा बिल्कुल बदल चुकी है, आप किसी में गांव में चले जाओ सब जगह माहौल एक सा नज़र आएगा । संभावित उम्मीदवार अपनी व्यूह रचना करने लगे हैं। जो सबल है वो साम, दाम, दंड की जुगत में जुटे हैं । सबसे ज़्यादा मौज उन लोगों की है, जो सुबह अपने मनपसंद लोगों के घर जाकर चौपाल लगा रहे हैं तो शाम को दाम की नीति वालों के अड्डे पर ‘मदिरापान’ का  जयकारा लगा रहे हैं। ऐसे लोगों की हर रात अभी से दीवाली जैसा हो गई है । चुनाव आयोग के सामने गांव की इसी जुगलबंदी को तोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके लिए उसे अपने गुप्तचर गांव में सक्रिय करने होंगे, गांव की गलियों में अपने एजेंट तैयार किए बिना इसे ख़त्म करना मुश्किल होगा ।

यूपी में होने वाले पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है । सत्ताधारी समाजवादी पार्टी हो या फिर लोकसभा चुनाव में 73 सीटें जीतकर दमदार वापसी का संकेत देने वाली बीजेपी या फिर संसदीय चुनाव में विलुप्त हो चुकी बीएसपी, सभी अपना पूरा दमखम पंचायत चुनाव में दिखाने की जुगत में हैं । कुछ राज्यों में हुए निकाय चुनाव में जीत को बीजेपी जिस तरह राष्ट्रीय जीत करार देने में जुटी है, उससे ये समझना मुश्किल नहीं कि यूपी में वो कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ेगी ।

ये सिर्फ पंचायत चुनाव नहीं विधानसभा का सेमीफाइनल है, इसलिए समाज के सभी वर्गों के साथ चुनाव आयोग को भी चौकन्ना रहना होगा ताकि लोकतंत्र के गांव की निर्मलता और पवित्रता कायम रखी जा सके।


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