चमोली के चितेरे की विजयगाथा

बी डी असनोड़ा

मनीष रावत, धावक
मनीष रावत, धावक

बचपन में भाई के लिए दौड़ लगाने की ललक कुछ ऐसी लगी की दौड़ते दौड़ते कब रीयो डी जनेरियो पहुँच गए पता ही नहीं चला । कदम बढ़ाते गए और मंजिलें आसान होती चली गयीं था और आज वो चितेरा ओलंपिक में दौड़ लगाने को तैयार है । उत्तराखंड (चमोली) के सागर गांव निवासी मनीष रावत पिछले दिनों वर्जीनिया से लौटे तो चेहरे पर जीत की ख़ुशी थी तो ओलम्पिक का टिकट मिलाने का जोश भी साफ नजर आ रहा था मनीष ने 5 किलोमीटर की रेस वॉकिंग में विश्व रिकॉर्ड बनाते हुये स्वर्ण पदक अपने नाम कर वतन लौटे थे . 29 अगस्त को बीजिंग में विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मनीष रावत 50 किलोमीटर वॉक में भाग लिया और 5 मिनट का सुधाकर करते हुए 27वें स्थान पर रहे। इसी के साथ अगले ओलंपिक के लिए क्वालिफाई भी हो गए।

चमोली के इस हीरो का बचपन भी कठिनाइयों से भरा था. ऊपर वाले ने इनकी भी कदम-कदम पर खूब परीक्षा ली. जब नवीं क्लास में थे तभी पिता चल बसे. पिता का साया उठने के बाद बड़े बेटे पर ही परिवार की जिम्मेदारी आ जाती है. लेकिन मनीष अभी नवीं में ही पढ़ते थे. पहाड़ के बच्चे नेचुरल एथलीट होते हैं. खेत, स्कूल और बाजार आने-जाने में ही इतनी दूरी तय करनी पड़ती है कि अकादमियों के खिलाड़ी उतनी दूरी अभ्यास में भी तय नहीं करते होंगे. 

बचपन से ही दौड़ने में दिलचस्पी 

साथ के लड़कों के साथ दौड़ने की होड़ लगाने में मजा आता था. दौड़ने का शौक तब जुनून में बदल गया जब छोटा भाई फौज में भर्ती होने के लिये तैयारी कर रहा था. उसे अभ्यास कराते-कराते मनीष खुद एथलीट बन गये. स्कूल में होने वाली खेल गतिवधियों में जोश से भाग लेते थे. इसी दौरान मुंबई में आयोजित होने वाली स्कूल एथलेटिक्स प्रतियोगिता के लिये चयन हुआ. 2006 में इस प्रतियोगिता में दौड़कर मनीष ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता का अनुभव हासिल किया. आगे चलकर ये अनुभव बहुत काम

 विश्व एथलेटिक चैपियनशिप
विश्व एथलेटिक चैपियनशिप

आया. 
अब उन्हें प्रोफेसनल प्रैक्टिस की जरूरत महसूस हो रही थी. अभी तक वो रोजाना सात किलोमीटर की दूरी तय कर गोपेश्वर स्टेडियम में अभ्यास को पहुंचते थे. अब गोपेश्वर में ही कमरा लेकर रहना शुरू किया. कड़ा अभ्यास रंग लाता जा रहा था. राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मनीष स्वर्णिम सफलताएं पाते जा रहे थे. 2014 में ओपन नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 20 किलोमीटर वॉक में जीते गये स्वर्ण पदक ने मनीष रावत के करियर की दिशा बदल दी.केरल में आयोजित नेशनल वॉकिंग चैंपियनशिप में 50 किलोमीटर वॉक में रजत पदक जीता तो ऑल इंडिया पुलिस एथलेटिक्स

श्रीमती उर्मिला देवी, मनीष रावत की मां
श्रीमती उर्मिला देवी, मनीष की मां

चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक पर कब्जा किया. अब तक की सबसे बड़ी सफलता जून-जुलाई में अमेरिका में आयोजित वर्ल्ड पुलिस एंड फायर गेम्स में मिली. मनीष रावत ने 5 किलोमीटर रेस वॉकिंग में न केवल स्वर्ण पदक जीता बल्कि विश्व रिकॉर्ड भी कायम किया.
मनीष ने अगले साल रियो डि जेनेरो में होने वाले ओलंपिक के साथ ही विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिये भी क्वालीफाई किया है. उत्तराखंड एक्सप्रेस सुरेंद्र भंडारी के बाद वो पहले पहाड़ी एथलीट होंगे जो ओलंपिक में दौड़ेंगे. एक छोटे और सुविधाओं में पिछड़े गांव के गरीब परिवार के बच्चे के लिये ये मौका आसमान मुट्ठी में करने जैसा होगा.

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उत्तराखंड के गैरसैंण के निवासी वरिष्ठ पत्रकार बी डी असनोड़ा । लंबे अरसे से वो गांव से जुड़े मुद्दों को अलग-अलग मंचों से उठाते रहे हैं।