‘अल-नीनो’ के बाद ‘ला नीना’, किसानों के शत्रु ‘भाई-बहन’?

फोटो-आशीष सागर दीक्षित के फेसबुक वॉल से
फोटो-आशीष सागर दीक्षित के फेसबुक वॉल से

सत्येंद्र कुमार यादव

भाई ने बिन पानी सब सून किया। अब बहन पानी में सब कुछ डूबो सकती है। इस बार गेहूं काट लीजिए लेकिन धान की बुआई के समय पानी के लिए शायद तरसना पड़ जाए। हो सकता है कि इस बार भी सूखे की मार झेलनी पड़े। रोपाई के समय बारिश नहीं होगी लेकिन जब कटाई का वक्त आएगा तो इतनी बारिश होगी कि फसलें नष्ट हो सकती हैं।

‘तूफानी भाई’ जा रहा है, ‘बहन’ आफत बनकर आ रही है!

हम बात कर रहे हैं अल-नीनो और ला-नीना की। दोनों ‘भाई-बहन’ हैं। पिछले पंद्रह दिन से मौसम से जुड़ी खबरों को पढ़ रहा हूं। कई रिपोर्ट में ला-नीना के खतरे के बारे में आगाह किया गया हैकरीब डेढ़ दशक से भारत सूखे की मार झेल रहा है। इसका कारण अल-नीनो है। अल-नीनो का असर जहां भी रहता है वहां सूखे की मार पड़ती है। इस साल भी यूपी, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश में किसानों पर सूखे की मार पड़ी। तूफ़ान ने भी फसलों को बुरी तरह से तबाह कर दिया। असमय ओले पड़ने से भी फसलें नष्ट हो गईं। यानि किसानों को चारों ओर से मौसम की मार पड़ी। इसकी वजह अल-नीनो ही था। अल नीनो अब भारत समेत पड़ोसी देशों से विदा हो रहा है लेकिन उसकी बहन ला-नीना आ रही है।

स्पेनी भाषा के भौगोलिक शब्द अल-नीनो का अर्थ छोटा लड़का और ला-नीना का छोटी लड़की है। ये शब्द उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में केंद्रीय और पूर्वी प्रशांत महासागरीय जल के औसत सतही तापमान से जुड़ा है। अमेरिकी एजेंसी NOAA की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि 2015 में भारत, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में पड़े सूखे में अल-नीनो की बड़ी भूमिका थी। 2016 के मध्य तक इसका असर रहेगा।

इसका मतलब ये हुआ कि गेहूं की कटाई के बाद जब धान की रोपाई का वक्त आएगा तब तक अल-नीनो का असर रहेगा। यानि धान की रोपाई के समय बारिश कम होने की आशंका है। रिपोर्ट के मुताबिक अल-नीनो का असर जुलाई के अंत तक भारतीय उप महाद्वीप से ख़त्म हो सकता है। जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के शुरुआत में ला-नीना आएगी। ला-नीना के आने से भारत समेत एशिया और ऑस्ट्रेलिया में भरपूर पानी बरसेगा। इस बारिश का खनन और अनाज बाजार पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का आंकलन है कि ला-नीना के आने से बुंदेलखंड में धरती की प्यास बुझ सकती है। बुंदलेखंड में फसलें लहलहा सकती हैं।

उत्तर भारत में भारी बारिश की संभभावना, दक्षिण में सूखे के आसार, फोटो- intellicast.com
उत्तर भारत में भारी बारिश की संभभावना, दक्षिण में सूखे के आसार, फोटो- intellicast.com

अल-नीनो की बहन ला-नीना भाई के स्वभाव के विपरित है। इसके आने पर विषुवतीय प्रशांत महासागर के पूर्वी तथा मध्य भाग में समुद्री सतह के औसत तापमान में असामान्य रूप से ठंडी स्थिति पाई जाती है।

ला-नीना का प्रभाव 2016-17 में दिखाई दे सकता है। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि ला-नीना की सक्रियता से भारत में भारी मानसून की स्थिति बन सकती है। 2010 में ला-नीना के कारण भारत में मानसून के बाद भी बारिश हुई थी। भारी बारिश की वजह से प्याज, गेहूं, अरहर, दलहन की पैदावार और लौह अयस्क के खनन पर विपरीत असर पड़ा। आकलन है कि अगर ला-नीना का प्रभाव ज्यादा रहा तो फसलें बुरी तरह से बर्बाद हो सकती हैं। दुनिया करीब बीस साल से किसानों के दुश्मन अल-नीनो का सामना कर रही है। इसके कारण भारत, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया को भीषण सूखे का सामना करना पड़ा। वहीं अमेरिका, यूरोप में इसका असर उल्टा हुआ। यूके, अमेरिका में जबरदस्त तूफान का सामना करना पड़ा। जिसके वजह से फसलों और घरों को काफी नुकसान पहुंचा। ला-नीना के कारण, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका में जमकर पानी बरसेगा।

भारत ही नहीं दुनिया के किसानों के लिए आफत है ला-नीना

ला-नीना के असर से दक्षिण-पूर्व एशिया में भारी बारिश होगी। इंडोनेशिया, पापुआ न्यू गिनी, थाइलैंड में पॉम आयल, कोयला, टिन के उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा। वहीं  ला-नीना ऑस्ट्रेलिया में भी कोयला, गेहूं और गन्ना को बर्बाद कर सकती है। दक्षिण अफ्रीका भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। यहां भी मक्के और गन्ने की फसल को चौपट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। अमेरिका में जरूरत से ज्यादा बारिश होगी। यहां ला-नीना शीत गेहूं के लिए लाभदायक होगी, लेकिन शुष्क और गर्म महीनों में मक्के, सोयाबीन, गेहूं की लिए ये विलेन साबित होगी। वहीं कोलंबिया में ला-नीना की वजह से कॉफी की फसल नष्ट हो सकती है। अर्जेंटीना और दक्षिण ब्राजील में भी मक्के और सोयाबीन के लिए खतरा बनकर आ सकती ला-नीना।

गौरतलब है कि 2010-11 में ला-नीना से ऑस्ट्रेलिया में जबरदस्त वर्षा हुई। इससे वहां के थर्मल और कोयला खानें पानी में डूब गई। कोलंबिया में कॉफी के पौधों में फंगस लग गया। अमेरिकी एजेंसी NOAA के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया मौसम विभाग ने कहा कि समुद्र की सतह की स्थितियां जुलाई तक सामान्य होगी। लिहाजा अगली सर्दियों में ला-नीना के सक्रिय होने का अनुमान 79 फ़ीसदी है। इसके आने से भारत के किसानों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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सत्येंद्र कुमार यादव, फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व छात्र। सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता से आप लोगों को हैरान करते हैं। उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।